कहते है कि किसी देश की कमान अगर मजबूत हाथों में हो तो देश नित नए ऊंचाईयों पर पहुंचता है। वहीं, अगर कोई कमजोर व्यक्ति देश का नेतृत्व करने लग जाए तो उसका बेड़ागर्क होने से कोई नहीं बचा सकता। आज के समय में देखें तो यूक्रेन दूसरी वाली स्थिति में है। वो यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ही हैं, जिनके कारण यूक्रेन युद्ध के दलदल में बुरी तरह से फंसा हुआ है। जेलेंस्की की एक जिद्द ने यूक्रेन को युद्ध की आग में झोंककर रख दिया और आज वह देश एकदम बर्बादी की कगार पर पहुंच चुका है। जेलेंस्की चाहते थे कि वो यूक्रेन को नाटो में शामिल कराए। उनकी इसी जिद ने रूस को भड़का दिया जिसके बाद उसने यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया था जो अभी तक चल रहा है।
इस युद्ध के दौरान जेलेंस्की दुनिया के आगे मासूम बनने के प्रयास करते रहें और पूरी दुनिया से सहानुभूति बटोरने में जुटे रहें। भारत को भी उन्होंने अपने पाले में लाने की बहुत कोशिश की परंतु जब जेलेंस्की के तमाम पैंतरे बेअसर हो गए और भारत पर उसका कोई असर नहीं पड़ा तो अब वो भारत के विरुद्ध कदम उठाने में लगे हैं। कुछ दिन पहले यूक्रेनी राष्ट्रपति ने भारत समेत कई देशों में तैनात यूक्रेन के राजदूतों को बर्खास्त करने का फैसला लिया था। उसके बाद अब जेलेंस्की ने भारतीयों को ब्लैकलिस्ट करना भी शुरू कर दिया है।
हाल ही में यह खबर आई है कि यूक्रेनी सरकार ने अलग-अलग देशों के ऐसे कई लोगों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है जो रूस का समर्थन कर रहे थे। रूसी प्रोपेगेंडा फैलाने के आरोप में तीन भारतीयों को भी ब्लैकलिस्ट किया गया है। इस सूची को सेंटर फॉर काउंटरिंग डिश इन्फॉर्मेशन (CCD) की ओर से प्रकाशित किया गया जिसकी स्थापना पिछले साल जेलेंस्की ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के एक विभाग के तौर पर की थी।
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75 लोगों को किया गया ब्लैकलिस्ट
सूची में कुल 75 लोगों के नाम शामिल हैं जिन्हें यूक्रेन द्वारा रूसी प्रोपेगेंडा फैलाने के आरोप में ब्लैकलिस्ट किया गया है। इसमें भारत के तीन लोगों के भी नाम शामिल हैं जिनमें एक नाम भारत के पूर्व राजनयिक पीएस राघवन का भी है। यहां जान लें कि पीएस राघवन रूस में भारत के राजदूत भी रहे हैं। वो वर्ष 2014 से 2016 तक रूस में भारत के राजदूत के तौर पर जिम्मा संभाल रहे थे। उन्हें सूची में शामिल करने का कारण एक बयान बना जिसमें उन्होंने कहा था कि “रूस के खिलाफ यूक्रेन, रूस के खिलाफ नाटो की तरह है।“
इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के सलाहकार रह चुके सैम पित्रोदा को भी यूक्रेन द्वारा ब्लैकलिस्ट किया गया है। सैम पित्रोदा ने अपने एक बयान में कहा था कि “दुनिया को रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ समझौता करना चाहिए।“ इस बयान के कारण ही उन्हें इस सूची में शामिल किया गया है। लिस्ट में तीसरा नाम पत्रकार सईद नकवी का है। सईद नकवी ने कहा था कि यूक्रेन की सेना की जीत एक भ्रम और प्रोपेगेंडा से ज्यादा कुछ नहीं है। इस बयान की वजह से यूक्रेन ने उन्हें भी ब्लैकलिस्ट कर दिया है।
इसका मतलब यह हुआ है कि यूक्रेन जिन लोगों को अपनी तरफ लाने में सफल नहीं हुआ, उसने उन सबके विरुद्ध कार्रवाई की। परंतु यहां सवाल यही है कि आखिर यूक्रेन के इस एक्शन से किसे फर्क पड़ेगा? अगर जेलेंस्की यह सोच रहे हैं कि वो इन कदमों और कार्रवाई के माध्यम से भारत का रुख बदलने का दबाव बनाएंगे तो यह महज उनका भ्रम ही है। क्योंकि जिस भारत को अमेरिका नहीं झुका पाया उसे जेलेंस्की कैसे झुका पाएंगे। जेलेंस्की को यह मालूम होना चाहिए कि उनके इन कदमों का भारत पर तनिक भी असर नहीं पड़ेगा। वो भारत का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे, उल्टा ऐसा करना उन्हें महंगा पड़ सकता है।
पिछले 5 महीने से चल रहा है युद्ध
आपको बताते चलें कि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध 5 महीने पहले शुरू हुआ था। 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया। जंग को 155 दिन बीत चुके हैं और इस अवधि के दौरान रूस के हाथों यूक्रेन पूरी तरह से तबाह हो चुका है। रूसी हमलों में अब तक हजारों की संख्या में यूक्रेनी नागरिक मारे जा चुके हैं। लाखों लोग बेघर हो गए और वे दूसरे देशों में शरण लेने को मजबूर हो गए। रूसी हमलों ने यूक्रेन के कई बड़े शहर तबाह कर दिए। देखा जाए तो इन सबके बड़े जिम्मेदार यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ही हैं, जिन्होंने पहले तो अपने देश को युद्ध की आग में झोंका और फिर उसे युद्ध के दौरान संभालने में बुरी तरह से नाकाम साबित होते नजर आए।
रूस के साथ युद्ध के दौरान लंबे वक्त तक जेलेंस्की दुनिया के आगे मदद करने के लिए गिड़गिड़ाते रहे। भारत को अपने पाले में लाने के लिए जेलेंस्की ने बहुत प्रयास किए परंतु भारत पर उनकी दबाव नीति का जरा भी असर नहीं पड़ा। भारत युद्ध को लेकर शुरू से अब तक एक ही स्टैंड पर कायम रहा है। भारत ने न तो रूस का साथ दिया और न ही यूक्रेन का। रूस ने कभी कोशिश भी नहीं की कि भारत उसके पक्ष में बोले परंतु जेलेंस्की ऐसा कई बार करते नजर आए। जेलेंस्की भारत से मदद की आस लगाए बैठे रहें परंतु भारत युद्ध को लेकर शुरू से ही अपनी स्पष्ट नीति पर अड़ा रहा है और अंत तक उसी स्टैंड पर कायम भी रहेगा।
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