प्रश्न है, एक राज्य से, उसके नेता यहां तक कि पूरे समाज से कि क्या कोई राजनितिक दल किसी विपक्षी नेता या दल का विरोध करते-करते उस विरोध में इतना अंधा हो सकता है कि वह स्वयं के देश के विरुद्ध ही चला जाए? क्या किसी एक दल का नेता दूसरे नेता को कुर्सी से हटाने के लिए इस हद तक गिर सकता है कि जिस देश में वह रह रहा है और जिस धरती से उपजा अन्न खा रहा है उसी देश को दो हिस्सों में बांटने पर उतारू हो जाये? कम से कम, तमिलनाडु में सत्ताधारी डीएमके के नेता ए राजा के एक बयान को सुनकर तो ऐसा ही लग रहा है।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे DMK के कृत्य और इस पार्टी के नेताओं के बयानों से ऐसा प्रतीत होने लगा है कि इनका अब एक मात्र लक्ष्य भारत से तमिलनाडु को “अलग” करना रह गया है।
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ए राजा ने दिया है ऐसा बयान
दरअसल, ए राजा का कहना है कि “मैं केंद्र से हमें स्वायत्तता प्रदान करने का आग्रह करता हूं। हम तब तक अपनी लड़ाई नहीं रोकेंगे जब तक तमिलनाडु को राज्य की स्वायत्तता नहीं मिल जाती। उन्होंने कहा कि भारत से अलग तमिलनाडु की वकालत उनके वैचारिक नेता पेरियार ने की थी। हालांकि, हमने लोकतंत्र और भारत की एकता के लिए उस मांग को अब तक अलग रखा है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह करता हूं कि हमें मांग को पुनर्जीवित करने के लिए मजबूर न करें। कृपया हमें राज्य की स्वायत्तता दें।”
ऐसा नहीं है कि द्रमुक सांसद ए राजा ने ये शब्द किसी छोटी मोटी रैली में या किसी निजी वार्तालाप में कहे हैं। जी नहीं, उन्होंने तो यह भाषण नमक्कल में द्रमुक के स्थानीय निकाय कार्यकर्ताओं के लिए एक कार्यक्रम के दौरान दिया। जितनी हैरानी इस बयान को सुनकर हो रही है उससे अधिक आश्चर्य तो इस बात को लेकर हो रहा है कि पार्टी के नेता ने यह बयान जिस समय दिया था उस समय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन मंच पर ही बैठे थे। किसी भी मंत्री या स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री ने ए राजा के इस बयान को न तो रोका और न ही इसका विरोध किया। ऐसा लग रहा था मानो ए राजा मुख्यमंत्री स्टालिन के ही मन की बात कह रहे हों। प्रश्न उठता है कि क्या स्टालिन राजा की बात का समर्थन कर रहे हैं?
हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है कि तमिलनाडु में ऐसे विरोधाभासी शब्द गूंजे हों। इससे पहले DMK के एक वरिष्ठ सांसद, TKS एलंगोवन ने भाषा युद्ध छेड़ने वाला एक नया विवाद खड़ा कर दिया था जब उन्होंने दावा किया कि हिंदी अविकसित राज्यों की भाषा है। एलंगोवन ने भी अभद्र टिप्पणी करते हुए कहा था कि हिंदी बोलने से हम शूद्र बन जाएंगे। पेरियार जिनको द्रविड़ आंदोलन का जनक भी कहा जाता है और तो और कट्टर हिंदू विरोधी के रूप में भी उन्हें जाना जाता था। आज उन्हीं पेरियार को संदर्भित करते हुए DMK के नेता तमिलनाडु के लिए स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं।
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उत्तर भारत के लोगों के प्रति घृणा से भरे हैं ये नेता
यही नहीं, डीएमके के नेताओं के कई ऐसे बयान हैं जो न केवल हिंदी भाषा विरोधी हैं बल्कि उत्तर भारत के लोगों के प्रति भी घृणा से भरे हैं। डीएमके के काल में तमिलनाडु राज्य के कई मंदिरों को तोडा गया और हिन्दू विचारधारा वाले लोगों को प्रताड़ित किया गया लेकिन सरकार ने इस मामले में कुछ नहीं किया। जब गोपीनाथ नाम के एक यूट्यूबर ने टूटे मंदिरों और खंडित देवमूर्तियों को फिर से सही करवाने का प्रयास किया तो उसे स्टालिन की पार्टी ने जेल भिजवा दिया।
अब तमिलनाडु और डीएमके की स्थिति देखकर केवल एक ही प्रश्न उठता है कि तमिलनाडु की इस पार्टी का जो विरोध आज तक उत्तर भारत और हिंदी के लिए हुआ करता था क्या अब वह देश विरोध में परिवर्तित हो गया है? डीएमके जिसका विरोध पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा से है क्या उसके अंदर का यह विष इतना बढ़ गया है कि अब वे देश के ही टुकड़े करने को आतुर हो गए हैं? क्या एक स्वायत्त तमिलनाडु की बचकानी और विवादित मांग करने वाली इस पार्टी का अंतिम लक्ष्य पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए भारत को तोड़ने और बांटने का है? या फिर ये लोग यह समझने में असमर्थ हैं कि एक नेता जब बोलता है तो उसके शब्द लोगों को प्रभावित करते हैं। जो लोग उन्हें सुन रहे हैं क्या ए राजा का यह बयान उनके मन मस्तिष्क में विभाजन का विष पैदा नहीं करेगा? या फिर अपनी वोट बैंक को बचाए रखने और कुर्सी पर बने रहने के लिए देश को तोड़ने पर उतारू लोगों को अपने आलावा कुछ दिखता ही नहीं है?
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