पाइरेट्स ऑफ़ द कैरेबियन [Pirates of The Carribean] स्मरण है? फिल्म के पहले भाग में नायिका यानी एलिजाबेथ को उपहार में एक विशेष वस्त्र पहनने को दिया जाता है, जिसका नाम होता है कॉर्सेट। उस वस्त्र के लिए उसके पिता गवर्नर स्वान कहते हैं, ‘ये लंदन में लेटेस्ट फैशन हैं’। परंतु उसे पहनते ही एलिजाबेथ का दम घुटने लगता है और अपने मंगेतर के समक्ष बात करने से पूर्व ही वह बेसुध होकर समुद्र में गिर जाती है।
आखिर इसकी चर्चा क्यों?
आप सोच रहे होंगे कि इसकी चर्चा क्यों की जा रही है? आज जो पाश्चात्य संस्कृति हमें आधुनिकता का पाठ पढ़ाती है- पितृसत्ता पर हमें लंबे चौड़े लेक्चर देती है, ये वही रूढ़िवादी पश्चिमी जगत है जो कभी संदेह मात्र होने पर अपनी महिलाओं को ‘डायन’ यानी ‘विच’ (Witch) बताकर मृत्युदंड दे देते थे, उन्हें ऐसी यातनाएं देते थे कि आप भी सोचने को मजबूर हो जाएंगे कि यह वास्तव में मानव ही थे न? हम आपको परिचित कराते हैं कि कैसे यूरोपीय, विशेषकर ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने अपनी कुत्सित पितृसत्ता यानी ‘Patriarchy’ केरल पर थोपी और शनै:-शनै: ये सम्पूर्ण भारत का हिस्सा बन गया।
एक लेख में हमने आपको परिचित कराया था कि कैसे राजा रवि वर्मा अपने भांजों हेतु वधु ढूंढ रहे थे। अब राजा रवि वर्मा के दो भांजे थे जिनमें से एक ठीक वैसे ही दिखते थे जैसा आपने राजा रवि वर्मा के चित्र में बने श्रीराम को देखा था। धर्मशास्त्र के प्रकांड पंडित, नीति शस्त्र में निपुण, इस व्यक्ति का नाम था राजा राज वर्मा और इनके अनुज थे राजा राम वर्मा, जो नीति और धर्म शास्त्र में निपुण तो अवश्य थे, परंतु रूप में इनका और राजा राज वर्मा का दूर-दूर तक कोई मुकाबला न था।
जब त्रावणकोर की कुँवरी के समक्ष अपना वर चुनने को कहा गया तो सोचिए, उनका विकल्प क्या रहा होगा? आपके अनुसार तो राजा राज वर्मा ही होगा न। रूपवान भी हैं, गुणवान भी हैं, परंतु हुआ ठीक उल्टा। राजा राज वर्मा का रूपवान होना ही उसके लिए अभिशाप समान हो गया और उनके स्थान पर राजा राम वर्मा को वर के रूप में चुना गया। अब प्रभु की लीला थी, वही जाने कि ये कैसे संभव था?
यहां पितृसत्तात्मक के ठीक उलट मातृसत्तात्मक व्यवस्था थी। क्योंकि पुरुष अधिकतम युद्ध में व्यस्त रहते थे, इसलिए सत्ता/प्रशासन का अधिकार अधिकतम रानी के पास रहता था और स्त्री का कद इस राज्य में पुरुष के समान और कुछ परिस्थतियों में तो पुरुष से कहीं अधिक होता था। DW के एक विश्लेषणात्मक लेख के अंश अनुसार, “यह बात नायर समुदाय और नंबूदिरी ब्राह्मणों में अधिक देखी जाती थी। भारत के अन्य भागों की भांति यहां कोई विधवा प्रथा नहीं थी, न ही उन पर पति के परिवार के साथ रहने का कोई दबाव था। वह जिनके साथ रहना चाहें, जैसे रहना चाहें, रह सकती थीं। उनके वस्त्रों, उनके जीवनशैली पर कोई प्रतिबंध, कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता था।”
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महिलाओं को पूर्ण स्वतंत्रता थी
अकल्पनीय! अविश्वसनीय! क्या आज के भारत में ऐसा कोई सोच भी सकता है? परंतु केरल में, विशेषकर त्रावणकोर रीति में यही नीति चलती थी। आपको जानकर अचरज होगा कि केरल में केवल महिलाओं को अपने अनुसार संबंध रखने की ही नहीं, अपितु संबंध चलाने और अपने अनुसार जीवन जीने की संपूर्ण स्वतंत्रता थी।
तिरुवनंतपुरम के श्रीनारायण कॉलेज में समाजशास्त्र की सहायक प्रोफेसर डॉक्टर लेख एनबी के अनुसार चूंकि महिलाएं बच्चों को जन्म देती थीं, इसीलिए उनका महत्व परिवार में अधिक होता था। महिलाएं यदि चाहें तो स्वयं के घरों में विवाहेत्तर भी निवास कर सकती थीं और विवाह के पश्चात वर को महिला के घर वास करने का निर्णय करना पड़ता था। क्या आज के कथित नारीवादी ऐसी कल्पना भी कर सकते हैं? कदापि नहीं।
नायर समुदाय की महिलाओं में जातिवाद या रूढ़िवाद जैसी कोई भावना ही नहीं थी। वे भूमि स्वामिनी भी थी, उनका अपना महत्व भी था और वे कभी भी किसी पुरुष पर निर्भर नहीं रहती थीं। कई लोगों को आश्चर्य होगा परंतु जिसे आज लिव इन कहते हैं, आज से युगों पूर्व केरल में महिलाएं ‘संबंधनम’ में रहती थीं।
‘संबंधनम’ का क्या अर्थ है? ‘संबंधनम’ अर्थात महिलाएं एक से अधिक पुरुषों से संबंध रख सकती थीं और उन्हें वैवाहिक प्रणाली में रहने को बाध्य भी नहीं होना पड़ता था। ये सुनने में आपको तनिक अजीब लग सकता है परंतु ये भी भारत का एक रूप था। इस बारे में मनु एस पिल्लई ने अपनी पुस्तक- ‘द आइवरी थ्रोन’ में विस्तार से चर्चा की है।
तो फिर ऐसा क्या हुआ कि इतने बहुमुखी, प्रगतिशील समाज को हटा दिया गया? ऐसा क्या हुआ जिसके कारण केरल, जो विश्वगुरु भारत का प्रतीक चिह्न था, आज रूढ़िवाद और धर्मांधता का अनंत सागर बन चुका है? इसका कारण स्पष्ट है – यूरोपीय साम्राज्यवाद। केरल पर अनेक प्रकार के आक्रमण हुए, जिनमें अरबी, तुर्की, यहां तक कि अफगानी तक सम्मिलित थे। परंतु जो घात यूरोपीय साम्राज्यवादियों, विशेषकर ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने केरल को पहुंचाया, वैसा घात शायद ही किसी अन्य सभ्यता ने पहुंचाया होगा।
जैसे कि पायरेट्स ऑफ द कैरेबियन में दिखाया गया था, अंग्रेज़ी महिलाओं के परिधान एवं सभ्यता दम घोंटू होते थे। वे बस नाममात्र के प्रगतिशील थे, वास्तव में कट्टरपंथियों को छोड़ दिया जाए तो उनसे अधिक रूढ़िवादी तो शायद ही कोई संसार में रहा होगा।
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कट्टरपंथियों ने खूब उपद्रव मचाया था
मनु एस पिल्लई के विश्लेषण अनुसार, “त्रावणकोर वंश के राजा महाराज तक एक प्रणाली के अनुसार विवाह करते थे। प्रांत में लैंगिकता मानो उत्सव समान था और शुद्धता इतनी भी महत्वपूर्ण नहीं थी। परंतु अंग्रेज़ों को यह स्वीकार्य नहीं था। जो भी नायर अंग्रेज़ी संस्थानों में पढ़ने जाते थे, उन्हें अपने विचारों, अपने पीढ़ियों और अपने सामाजिक संस्थाओं के लिए अंग्रेजों के ताने और उलाहने सुनने पड़ते थे। उन्हें तरह-तरह के अपशब्द सुनाए जाते थे। धीरे-धीरे अंग्रेज़ों का प्रभुत्व और 1925 आते आते इस प्रणाली का विनाश सुनिश्चित हो गया। ये वही समय था जब मालाबार में मोपलाह ‘क्रांति’ के नाम पर कट्टरपंथियों ने उपद्रव मचाया था और हजारों निर्दोष हिंदुओं की बलि चढ़ी थी। आज जो केरल पितृसत्ता का प्रतीक बना हुआ है, आज जिस केरल में कट्टरपंथ सर चढ़कर बोल रहा है, उसके पीछे केवल और केवल एक ही कारण है– ब्रिटिश साम्राज्यवाद और इसके लिए यदि वे नाक रगड़कर भी क्षमा मांगे तो भी वे क्षमा योग्य नहीं।
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