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लिथियम के बाजार में चीन के ‘एकाधिकारी’ को ख़त्म करने के लिए तैयार हैं भारत और ऑस्ट्रेलिया

‘दुश्मन’ को जड़ से ख़त्म करने की रणनीति तैयार है!

Deeksha Sharma द्वारा Deeksha Sharma
5 July 2022
in विश्व
lithiyam

Source- TFIPOST.in

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आज बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के बीच दुनिया अपना ध्यान ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों की ओर लगा रही है। जीवाश्म ईंधन की कमी से लड़ने के लिए दुनिया अब सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा जैसे ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर केंद्रित कर रही है। दुनिया अब कुछ ऐसा चाहती है जो ऊर्जा के पुन: उपयोग योग्य स्रोत हो, बजाय इसके कि एक बार उपयोग करने के बाद समाप्त हो जाए। लिथियम और कोबाल्ट धातु ऐसे ही दुर्लभ पृथ्वी खनिज हैं जो ‘कुछ पुन: प्रयोज्य’ की मांग को पूरा कर सकते हैं।

लिथियम और कोबाल्ट दोनों ही ऐसी दुर्लभ पृथ्वी धातुएं हैं जिन्हें हम अपने दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली विभिन्न चीजों के निर्माण में करते हैं। जहाँ लिथियम का उपयोग मोबाइल फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए रिचार्जेबल बैटरी और हृदय पेसमेकर, खिलौने और घड़ियों जैसी कुछ गैर-रिचार्जेबल बैटरियों में भी किया जाता है। वहीं कोबाल्ट का उपयोग मुख्य रूप से लिथियम-आयन बैटरी में और चुंबकीय और उच्च शक्ति वाले मिश्र धातुओं के निर्माण में किया जाता है।

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लिथियम बाजार में प्रभुत्व का मुकाबला

आज जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जब ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों की बात चलती है तो सबसे पहले इलेक्ट्रिक वाहनों का ख़याल आता है. इलेक्ट्रिक वाहन जिनकी मांग पिछले कुछ समय में काफी बढ़ गई है, उसमें लिथियम और कोबाल्ट जैसी महत्वपूर्ण धातुओं का इस्तेमाल होता है। लिथियम का सबसे बड़ा संग्रह 8 मिलियन टन के साथ चिली, अमेरिका में है जबकि चीन के पास केवल एक मिलियन टन ही लिथियम संग्रह है. बावजूद इसके पिछले दो दशकों में, चीन लिथियम बैटरी बाजार पर हावी हो गया है। आज चीन वैश्विक लिथियम प्रसंस्करण और शोधन में अग्रणी है और लिथियम बाजार को नियंत्रित करता है.

ऐसे में आपके मन में प्रश्न उठा होगा कि आखिर चीन ने यह कैसे किया? दरअसल, पर्यावरण संबंधी चिंताओं में वृद्धि के परिणामस्वरूप चीन ने उत्सर्जन को कम करने के लिए अपने सभी प्रमुख शहरों से पारंपरिक जीवाश्म ईंधन से चलने वाले स्कूटरों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे चीन में ई-स्कूटर बनाने के लिए लिथियम की मांग और बढ़ी है और लिथियम की बिक्री में वृद्धि हुई। इसके अलावा, चीन में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे मोबाइल और लैपटॉप की उच्च बिक्री होती है जो अपने संचालन के लिए लिथियम-आयन बैटरी का उपयोग करते हैं। इसी के चले आज चीन लिथियम बाजार में अग्रणी है.

लेकिन अब चीन के लिथियम क्षेत्र के इस वर्चस्व को ख़त्म करने के लिए भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने हाथ मिला लिया है. संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देश उन आपूर्ति श्रृंखलाओं पर चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों के नए स्रोत विकसित करने पर जोर दे रहे हैं।

और पढ़ें: चीन ने ऑस्ट्रेलियाई कोयले पर लगाया बैन तो भारत ने उसे खरीद चीनी दांव को किया फेल

ऑस्ट्रेलिया और भारत महत्वपूर्ण साझेदारी

इसकी खबर स्वयं ऑस्ट्रेलिया के संसाधन मंत्री ने दी जब उन्होंने बताया, “ऑस्ट्रेलिया और भारत महत्वपूर्ण धातु परियोजनाओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं को विकसित करने में अपने सहयोग को मजबूत करने के लिए एक साझेदारी पर सहमत हुए हैं। मंत्री मेडेलीन किंग के अनुसार क्रिटिकल मिनरल फर्म खानिज विदेश इंडिया लिमिटेड और ऑस्ट्रेलिया के क्रिटिकल मिनरल्स फैसिलिटेशन ऑफिस (सीएमएफओ) के बीच हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने तीन साल की निवेश साझेदारी के लिए $ 3.98 मिलियन अमेरिकी डॉलर का वादा किया है। समझौते के अनुसार भारतीय कंपनी और सीएमएफओ दोनों संयुक्त रूप से ऑस्ट्रेलिया की लिथियम और कोबाल्ट खनिज संपत्तियों में 6 मिलियन डॉलर की प्रारंभिक राशि के साथ ऑस्ट्रेलिया की लिथियम और कोबाल्ट खनिज संपत्तियों में अध्ययन को वित्त पोषित करेंगे।

ऑस्ट्रेलिया के पास 2.7 मिलियन टन लिथियम संग्रह है जो चिली के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लिथियम कोष है. जबकि भारत भी अपनी भारी आबादी के साथ इलेक्ट्रिक वाहन और मोबाइल, लैपटॉप आदि की बढ़ती मांग के कारण लिथियम- कोबाल्ट से बनने वाले उपकरणों के लिए एक बड़े बाजार के रूप में उभर रहा है. ऐसे में यदि यह अध्ययन सफल होता है और अमेरिका की टेक्नोलॉजी भी साथ मिल जाती है तो चीन जो पिछले विस वर्षों से लिथियम मार्किट पर शीर्ष पर बैठा है वह अधिक दिन वहां नहीं टिकेगा.

भारत पिछले कुछ वर्षों से नई तकनीकों और ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रहा है। इसकी हरित, सौर और जलविद्युत परियोजनाएं ऐसे कुछ उदाहरण हैं। इसके अलावा भारत सेमीकंडक्टर्स और अब लिथियम कोबाल्ट जैसे नए बाजारों में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा है क्योंकि वह अच्छी तरह जानता है कि यही कल का भविष्य है। भारत जिस तरह से इस तरह की परियोजनाओं और प्रौद्योगिकियों में इतने आक्रामक तरीके से निवेश कर रहा है, वह समय से पहले सोचने और शीर्ष पर रहने की उत्सुकता और सक्षमता को दर्शाता है।

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