भारत एक ऐसा देश है जहां न केवल चिकित्सा और आयुर्विज्ञान का जन्म हुआ बल्कि यह देश आज दवाओं के एक बड़े कारखाने के रूप में दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है. कोरोना के लंबे लॉकडाउन के बाद एक बार फिर कई देशों में वैश्विक पर्यटन फिर से उड़ान भर रहा है. एक बार फिर देश अलग रणनीति के साथ पर्यटकों को लुभाने में लगे हैं और अब इस दौड़ में भारत भी शामिल हो गया है. इस वर्ष भारत सरकार चिकित्सा पर्यटन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है. चिकित्सा पर्यटन वह खंड है जिसका बाजार लगभग $60-80 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है. हर वर्ष कई लोग बेहतर और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा उपचारों के लिए अन्य देशों में जाते हैं. इसके अलावा सस्ते और बेहतर उपचार की खोज भी उन्हें विदेश ले जाती है. वर्ष 2017 में ग्लोबल वेलनेस इंस्टीट्यूट के अनुमानों के अनुसार, वेलनेस टूरिज्म का आकार और पैमाना और भी बड़ा है और यह लगभग 639 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है.
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मेडिकल टूरिज्म को ध्यान में रखते हुए इस बार सरकार एक नयी रणनीति पर काम कर रही है जिसके तहत अधिक से अधिक विदेशी अपनी चिकित्सा के लिए भारत आ सकेंगे. इस लक्ष्य को साधने के लिए भारत सरकार का ध्यान तीन बिंदुओं पर है-
- मेडिकल वैल्यू ट्रैवल (MVT) को सुव्यवस्थित करना. इसी श्रृंखला के तहत महामारी से पहले वर्ष 2019 में 0.7 मिलियन विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया गया था.
- सरकार भारत में इलाज हेतु विदेश से आने वाले लोगों को बढ़ावा देने के लिए एक अलग लोगो “हील इन इंडिया” के साथ परियोजना को वैश्विक स्तर पर औपचारिक रूप से लॉन्च करने को तैयार है.
- नयी नीति के अनुसार भारत में ‘मेडिकल टूरिज्म’ केवल इलाज और चिकित्सा तक ही सीमित नहीं होगा बल्कि यह आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, जो भारत की जड़ें हैं, उन पर भी ध्यान देगा.
साथ ही आयुष मंत्रालय मेडिकल टूरिस्ट को एक अलग “आयुष वीजा” देने पर विचार कर रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वयं आयुष वीजा को लेकर अपनी बातें प्रमुखता से रखी थी. भारत के अत्याधुनिक अस्पताल, प्रतिष्ठित डॉक्टर, सस्ती और अच्छी दवाएं और इलाज में कम लागत, ये वैसे कारण हैं जो दुनिया भर के रोगियों को मुख्य रूप से पश्चिम एशिया, अफ्रीका और दक्षिण एशिया के लोगों को आकर्षित कर रहा है. इस सेगमेंट में भारत के लिए प्रमुख चुनौती सिंगापुर, मलेशिया और थाईलैंड हैं जबकि मैक्सिको, ब्राजील और तुर्की जैसे गंतव्य भी अंतरराष्ट्रीय रोगियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करते हैं.
भारत के चिकित्सा पर्यटन में सरकारी नियमों की कमी एक बड़ी बाधा है जिसके परिणामस्वरूप निम्न गुणवत्ता वाले सेवा प्रदाताओं और बिचौलियों की संख्या बढ़ रही है, जिससे भारत के मेडिकल टूरिज्म सेक्टर को नुकसान हो रहा है लेकिन भारत की चिकित्सा क्षेत्र की गुणवत्ता को कोई भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता और फिर चाहे वह पडोसी देश पाकिस्तान ही क्यों न हो.
वैश्विक चिकित्सा पर्यटन बाजार पर कब्जा जमा रहा है भारत
हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, अफशीन गुल नाम की पाकिस्तानी नागरिक जब केवल 10 महीने की थी तो अपनी बहन की बाहों से दुर्घटनावश गिरने के बाद उनकी गर्दन 90 डिग्री पर झुक गई. 12 वर्ष तक वो चल न सकी, न बात करती थी और न ही कुछ खा पाती थी. वो सात भाई-बहनों में सबसे छोटी थी, वह कभी स्कूल नहीं गई. उनके माता-पिता उन्हें विभिन्न डॉक्टरों के पास ले गए लेकिन सब व्यर्थ रहा. पाकिस्तान सरकार और निजी अस्पतालों ने भी इलाज का आश्वासन देने के बाद कोई सहायता नहीं की. लेकिन फिर एक दिन उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल से स्पाइनल सर्जरी के विशेषज्ञ डॉ राजगोपालन कृष्णन का फ़ोन आया जिन्होंने अफशीन की सर्जरी मुफ्त में करने की पेशकश की. आज चार महीने बाद अफशीन चल-फिर सकती है और बात कर रही है और उसके परिवार के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है.
यह कोई पहला ऐसा जटिल केस नहीं है जिसे भारतीय डॉक्टरों ने सुलझाया हो. हर वर्ष कई ऐसे मरीज दुनियाभर से भारत आते हैं जो अपनी बीमारी को लेकर हार मान चुके होते हैं और भारत उनकी आखिरी उम्मीद होता है. ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय चिकित्सा दिनों-दिन नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है. इतना ही नहीं, भारत के बनाये कोरोना के वैक्सीन कई देशों में जा रहे हैं और स्वयं भारत आज कोरोना के 200 करोड़ टीकाकरण का लक्ष्य पूरा कर चुका है जो कि एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. आज भारत का चिकित्सा क्षेत्र एक ग्लोबल मार्केट बनता जा रहा है और इस क्षेत्र की सफलता भारत की अर्थव्यवस्था और देश के वैश्विक स्तर को और ऊपर उठाने की ताकत रखती है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भारत वैश्विक चिकित्सा पर्यटन बाजार पर कब्जा जमाने की ओर अग्रसर हो चुका है.
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