जिससे व्यापार करते हैं उससे धोखा बिलकुल नहीं करना चाहिए. हालाँकि चीन को ‘भूमि विस्तार’ की ऐसी बुरी लत लगी हुई है कि चीन आज तक व्यापार के इस नियम को न समझ सका है न ही इस पर अमल कर पाया है. इसी कारण से भारत जो चीन के लिए एक बहुत बड़ी मार्केट साबित हो सकता था, भारत जिसके साथ व्यापार चीन की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने की ताकत रखता था उसी व्यापार को चीन ने अपने हाथों से बिगाड़ दिया. वह कहते हैं न ‘अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना’ हालाँकि चीन ने तो कुल्हाड़ी पर ही पैर मार दिया और अब पछता रहा है.
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चीन के सपनों पर भारत ने फेरा पानी
दरअसल, चीन की ‘ग्रेट वॉल मोटर’ नामक वाहन निर्माता कंपनी भारत में $1 बिलियन का निवेश करना चाह रही थी. इसके लिए जनवरी 2020 में देश के द्विवार्षिक ऑटो शो के दौरान ग्रेट वॉल की भारत प्रवेश योजना की घोषणा बड़ी धूमधाम से की गई थी और उसने लोगों को काम पर रखना भी शुरू कर दिया था जो कि भारत में कंपनी का निवेश और मार्केटिंग आदि की देखरेख करने वाले थे। चीनी एसयूवी निर्माता की वैश्विक विस्तार योजनाओं के लिए भारत एक प्रमुख बाजार था और कंपनी ने भारत में एक ऐसे संयंत्र की कल्पना की थी जो चीन के बाहर इसका सबसे बड़ा संयंत्र होने वाला था. भारत, चीनी कंपनी ग्रेट वॉल के लिए प्रमुख बाजार के रूप में उभरने को था.
लेकिन चीनी कंपनी के इस सपने पर चीन ने अपने आप ही पानी फेर लिया जब उसने अपनी आर्मी को भेजकर लद्दाख में भूमि अधिग्रहण करने के प्रयास में भारतीय सैनिकों को क्षति पहुँचाई। हालाँकि बॉर्डर पर तो चीन ने भारतीय सेना के हाथों मुँह की खायी ही लेकिन अब चीन की कंपनियां भी चीन की इस मूर्खता और भारत के आक्रोश का शिकार हो रही हैं.
लद्दाख सीमा पर हुए भारत और चीन के टकराव के बाद मानो चीनी कंपनियों पर भारत की टेढ़ी नज़र पड़ गयी है जिसके बाद पहले तो कई चीनी कंपनी को बैन किया गया और टिकटॉक की चीनी पैरेंट कंपनी बाइट डांस को भी भारत में टिकटॉक पर प्रतिबंध के परिणामस्वरूप दैनिक आधार पर $500,000 का वित्तीय नुकसान हुआ. आखिर में टिकटॉक को भारत से अलविदा कहना ही पड़ा और आजतक टिकटॉक को भारत की मार्केट खोने का दुःख है क्योंकि एक अकेले भारत से जितना पैसा वह कमाता था उतना वह आज तक किसी देश से नहीं कमा सका है.
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हदों को पार करके भारत मे अब व्यापार नहीं
लद्दाख सीमा पर हुए टकराव के महीनों बाद, भारत सरकार ने एक और फैसला लिया जिसके तहत भारत की सीमा से सटे देशों, विशेषकर चीन द्वारा कोई भी कंपनी भारत में खोले जाने से पहले उसे कई जांच प्रक्रिया से गुजरना होगा। ऐसे सीमावर्ती देशों से आने वाले हर निवेश पर अब पैनी नज़र रखी जाने लगी जिसके कारण अब न के बराबर ही किसी चीनी कंपनी को भारत में व्यापार की इजाज़त मिल रही है. इसके बाद से ऑटो और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अरबों डॉलर की पूंजी का प्रवाह रुक गया। भारत सरकार का यह कदम COVID-19 महामारी के दौरान अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिए भी था।
चीनी वाहन निर्माता जो 2020 से भारतीय बाजार में प्रवेश करने की योजना बना रहा था, अब बीजिंग से निवेश की नई दिल्ली की बढ़ती जांच के कारण भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी प्राप्त करने में विफल रहा है। आखिर में ग्रेट वॉल ने प्लांट डील को रद्द कर दिया। इस तरह से वह चीनी कंपनी जो संभवतः भारत में करोड़ों का कारोबार कर सकती थी उसे उसके देश की सरकार के कुकृत्यों का दंड भरना पड़ा.
चीन को यह समझना होगा कि अगर उसे भारत के साथ व्यापार करना है तो ईमानदारी से अपनी सीमाओं में रहकर करना होगा. उसकी दोमुंही चालें भारत सहन नहीं करेगा. और जिस तरह से भारत ने पिछले दो वर्षों में चीनी कंपनियों को भारत से बाहर का दरवाज़ा दिखाया है वह इसका प्रमाण है की भारत धोखेबाज़ों के साथ कोई रिश्ते नहीं रखता.
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