आज भारत को आज़ाद हुए कितने वर्ष हो गए हैं लेकिन क्या भारत मानसिक रूप से ब्रिटिश की गुलामी से आज़ाद हो पाया है? ऐसा क्यों है कि आज भी लोग अपनी भाषा बोलने में शर्म महसूस करते हैं लेकिन जो अंग्रेजी बोलता है उसे बुद्धिमान और ऊंचे कद का समझते हैं? ऐसा क्यों है कि आज भी भारत में लोग और नेता भाषाओँ के आधार पर एक दूसरे को नीचे दिखाने से नहीं चूकते? शायद इन सभी प्रश्नों का उत्तर है कि ये पीडियां स्वयं का इतिहास ही भूल गई हैं। यदि जम्मू से लेकर कन्याकुमारी को कुछ जोड़ता है तो वह है इस देश का इतिहास है। अंग्रेज़ों के खिलाफ की गई उनकी क्रान्ति और कई वीरों का बलिदान।
जब 1947 से पहले भारत अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था तब उस दौरान भारत की कई भाषाओं में कई कवियों, क्रांतिकारियों ने कुछ गीत, कवितायेँ और साहित्य लिखे जो अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों को बताते थे। यह ब्रिटिश शासन को डर था कि कहीं ये कविताएँ और गीत भारतीयों में ब्रिटिश सरकार के प्रति इतना आक्रोश न भर दे कि लोग एकजुट होकर उनके खिलाफ हो जाएँ क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो उनका शासन भारत में अधिक दिनों तक नहीं ठहर पायेगा। इसी के डर से उन्होंने उन सभी देशभक्ति गीतों और साहित्यों पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
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अब मिलेगा उचित सम्मान
हालाँकि सेनानियों के बलिदान और प्रयत्नों से भारत स्वतंत्र हुआ। अब भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष होने जा रहे हैं और इस दौरान इन सालों में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन हैं किसी भी सरकार का ध्यान उन कविताओं पर नहीं गया जो आज़ादी के लिए लड़ने वालों ने लिखीं थीं। लेकिन अब मोदी सरकार ने स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को चिह्नित करने के लिए साहित्य के इस निकाय के एक हिस्से को पुनर्जीवित करने की ठान ली है। इन लेखों को लोकप्रिय बनाने के लिए कई केंद्रीय मंत्रियों को भी इसके प्रचार मे लगाया गया है।
संस्कृति मंत्रालय ने 75-सप्ताह तक चलने वाले अमृत महोत्सव समारोह के लिए उन कविताओं, लेखों और प्रकाशनों की पहचान की है, जिन पर ब्रिटिश राज ने प्रतिबंध लगाया था और उन्हें कैटलॉग के रूप में एक साथ रखा है, जिसे राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है। ये रचनाएँ नौ क्षेत्रीय भाषाओं – बंगाली, गुजराती, हिंदी, मराठी, कन्नड़, उड़िया, पंजाबी, सिंधी, तेलुगु, तमिल और उर्दू में उपलब्ध हैं। इस अनुभाग में संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी, संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी, सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और स्वास्थ्य मंत्री मनसुख माण्डवीय सहित नौ केंद्रीय मंत्री ये कविताएं पढ़ रहे हैं।
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ऐसा पहली बार किसी सरकार ने किया है
जहाँ अनुराग ठाकुर “आजादी की बंसुरी” पुस्तक से हिंदी कविता “राष्ट्रीय पताका” का पाठ कर रहे हैं, वहीं रेड्डी वद्दाधि सीतारामंजनेयुलु और पुदीपेढ़ी काशी विश्वनाथ शास्त्री की तेलुगु कविता “भारत माता गीतम” का पाठ करते हैं। प्रधान ने ओडिया कवि गंगाधर मिश्रा द्वारा “दरिद्र नियान” का पाठ किया, मंडाविया ने कवि झावेरचंद मेघानी की पुस्तक सिंधुडो से गुजराती कविता “कसुंबी नो रंग” का पाठ किया।
अधिकारियों का कहना है कि ये ज्यादातर क्रांतिकारी रचनाएँ हैं जिन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखा गया था और इन्हें ब्रिटिश शासन “भारत में अपने साम्राज्य की सुरक्षा” के लिए “खतरनाक” मानता था। संस्कृति सचिव गोविंद मोहन कहते हैं: “आज़ादी का अमृत महोत्सव के 66 सप्ताह में, 47,000 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं – स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों की स्मृति से लेकर उनके स्थानीय इतिहास के दस्तावेजीकरण और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान से लेकर कविता और प्रतिबंधित साहित्य भी इसका हिस्सा होंगे। “
शायद यह पहली बार है जब भारत की कोई सरकार ऊब गुमनाम क्रांतिकारियों की खोज में है जिन्होंने इस देश के लिए अपना बलिदान दिया है। सरकार का यह कदम बहुत सराहनीय है क्योंकि इससे लोगों को न केवल इतिहास के उन वीरों की गाथा पता चलेगी बल्कि उनके विचार और संघर्ष से भी वे अवगत होंगे। साथ ही कैसे उस समय लोगों की भाषाएं, बोली, रेहान- सहन आदि अलग होने के बाद भी उनका लक्ष्य केवल एक था- भारत की आज़ादी।
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