आर्मीनिया को सुरक्षा सहायता प्रदान कर एर्दोगन को चुनौती देने के लिए तैयार है भारत

मलेशिया और इंडोनेशिया के बाद अब आर्मीनिया ने भारत से लगाई हथियारों की गुहार !

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Source- TFIPOST.in

तुर्की उन देशों की सूची में शामिल है, जिसे भारत के एक बड़े दुश्मन की तरह देखा जाता है। कई मौकों पर ऐसा देखने को मिला है जब तुर्की का रवैया भारत विरोधी रहा है। वे पाकिस्तान का काफी अच्छा दोस्त भी है। इसलिए तुर्की बीच-बीच में कश्मीर के मुद्दे पर भी अपनी टांग अड़ाते हुए भारत के विरुद्ध जहर उगलने का प्रयास करता रहता है। भारत द्वारा बार-बार हड़काए जाने के बाद भी तुर्की के व्यवहार में जरा भी बदलाव नहीं आता। तुर्की के इसी भारत विरोधी रवैये का जवाब देने के लिए अलग ही तरीका निकाला है। भारत, तुर्की के दुश्मन देश आर्मीनिया को पूरी तरह से अपने पाले में लाने के प्रयासों में जुटा है।

दरअसल, आर्मीनिया इस वक्त तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान के चक्रव्यूह में बुरी तरह से फंस चुका है। ऐसे में उसे मदद की सख्त जरूरत है। इस कारण आर्मीनिया ने भारत से हथियारों की आपूर्ति को लेकर मदद की गुहार लगाई है। आर्मीनिया और भारत पहले से काफी अच्छे दोस्त है। दोनों देशों के बीच के संबंध काफी अच्छे है। इस बीच आर्मीनिया के एक रक्षा प्रतिनिधिमंडल ने भारत का दौरा किया। इस दौरे का मकसद भारत से लड़ाकू विमान समेत अन्य हथियार खरीदने की संभावनाओं को लेकर चर्चा करना था। आर्मीनिया चाहता है कि मुश्किल हालातों में भारत उसके साथ आए और हथियार देकर उसकी मदद करें। इससे पहले पिछले महीने भी यह दल सैन्य उपकरणों की खरीददारी की एक सूची के साथ भारत के दौरे पर आया था। हालांकि तब खास तौर पर ड्रोन विमानों को खरीदने के मुद्दे पर बातचीत की गई थी।

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आर्मीनिया और अजरबैजान यह दो देश है, जिनके बीच नागर्नो-काराबाख इलाके को लेकर तनाव बना हुआ है। दोनों देश इस हिस्से पर अपना-अपना कब्जा जमाना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय रूप से नागोर्नो-काराबाख इलाका अजरबैजान का हिस्‍सा माना जाता है, परंतु उस पर आर्मीनिया के जातीय गुटों ने कब्‍जा किया हुआ है। वर्ष 1991 में इलाके में रहने वाले लोगों ने स्वयं को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित कर आर्मीनिया का हिस्सा घोषित कर दिया था। अजरबैजान ने इसे स्वीकार करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच संघर्ष बना हुआ है।

वर्ष 2020 में कराबाख की जंग में अजरबैजान ने अर्मेनिया पर हावी हो गया था। तुर्की के टीबी-2 ड्रोन के जरिए उसने भयंकर तबाही मचाई और आर्मीनिया की सेना की शामत ला दी थी। तुर्की के ड्रोन विमानों ने आर्मीनिया के तोप, टैंक और अन्‍य घातक हथियारों को नष्‍ट कर दिया था। हालांकि जब युद्ध ने भयंकर रूख ले लिया तो इसमें रूस ने हस्तक्षेप करते हुए दोनों देशों के बीच शांति समझौता कराया। परंतु जब रूस का यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू हो गया और वे उसमें उलझ गया, तो अजरबैजान ने एक बार फिर अपना दबाव बनाना तेज कर दिया। ऐसे में अब आर्मीनिया को मदद की जरूरत है और इसके लिए वे भारत के पास आया है। वे भारत से हथियार खरीदना चाहता है और देखा जाए तो भारत के लिए आर्मीनिया की सहायता करना फायदे का सौदा होगा। इससे दोनों देशों के संबंध मजबूत होंगे। इस संबंध में भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक बयान देते हुए कहा था कि “लंबी अवधि के लिए भारत और आर्मीनिया सैन्य सहयोग करने पर विचार विमर्श कर रहे है, जिससे रिश्तों को और मजबूत किया जा सके।”

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देखा जाए तो आर्मीनिया, भारत के लिए काफी अहमियत रखता है। वे केवल भारत का अच्छा दोस्त ही नहीं है, बल्कि तुर्की के विरुद्ध एक संतुलन बनाने वाला भी देश है। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन भारत के विरुद्ध कई बार जहर उगलते हुए नजर आए है। वहीं वे कश्मीर के मुद्दे को लेकर भी पाकिस्तान के साथ खड़े रहते हैं। यही नहीं कश्मीर से अनुच्छेद-370 निरस्त करने वाले भारत सरकार के फैसले को लेकर भी तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत विरोधी रूख अपनाया था।

इससे साफ है कि तुर्की का रवैया भारत विरोधी है। ऐसे में भारत के लिए यह जरूरी हो जाता है कि तुर्की को उसकी हरकतों का जवाब देने के लिए तैयार रहे। इसलिए भारत ने आर्मीनिया को अपने पाले में लाने की कोशिशें शुरू कर दी। कहते हैं ना कि दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है। बस इसी रणनीति पर भारत काम कर रह है और तुर्की के दुश्मन आर्मीनिया के साथ अपने संबंध और मजबूत करने में जुटा है, जिससे वे हर वक्त भारत के साथ खड़ा रहे।

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