कोई भी गुनाह तब तक ही विलुप्त रह सकता है जब तक उसके बारे में समाज बात करना शुरू नहीं कर देता, यह तो फिर भी सोशल मीडिया का ज़माना है जहां छोटे से छोटे पैमाने पर जांचना परखना आम सा हो गया है। अब बंगाल की राजनीति को ही देख लें तो पता चलता है कि कौन कितने पानी में है और कौन उस पानी में आकंठ डूबा हुआ है। पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग भर्ती घोटाले में गिरफ्तार होने के पांच दिन बाद, तृणमूल कांग्रेस ने गुरुवार को पार्थ चटर्जी को उनके मंत्री पद से मुक्त कर दिया और उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया है। शुरुआती जांच से लेकर अब तक उन पर कई आरोप और सबूत पुख्ता रूप से जांच में जुटाए जा चुके हैं।
न माया मिली न राम!
दरअसल, भारत की राजनीति का सबसे बड़ा कटुसत्य ही यह है कि यहां रिश्वत, भ्रष्टाचार और लूट खसोट बड़ी आम बात हो चुकी है। अपने काम को पूर्ण करवाने के लिए लोग रिश्वत जैसा मार्ग अपनाते हैं और राजनेता, नौकरशाह और सरकारी अधिकारी इसका फायदा उठाते हैं। लेकिन यह भी सर्वविदित है कि यहां का किया हुआ यहीं भोगना पड़ता है, पार्थ चटर्जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। न माया मिली न राम।
राजनीति में दोस्ती का कोई औचित्य नहीं होता, यह पार्थ चटर्जी के कारनामों के बाद टीएमसी के रुख से स्पष्ट हो गया है। जो पार्थ टीएमसी में ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के बाद सबसे माने हुए नेता का कद रखते थे आज वो न घर के रहे न घाट के वाली स्थिति में पहुंच चुके हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों और पैसों के अंबार और पहाड़ के सामने आने के बाद टीएमसी को जनता के भारी विरोध के बाद इस दबाव के आगे झुकना ही पड़ा। टीएमसी ने अपने भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री पार्थ चटर्जी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ ही पार्टी के तमाम पदों से मुक्ति दे दी।
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राज्य सरकार की एक अधिसूचना में कहा गया है कि चटर्जी को तत्काल प्रभाव से चार विभागों के प्रभारी मंत्री के पद से मुक्त कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “पार्थ दा [पार्थ चटर्जी] के सभी विभाग अब मेरे रहेंगे। चटर्जी जिन विभागों के प्रभारी थे, उनमें उद्योग और वाणिज्य और संसदीय कार्य शामिल थे।
निश्चित रूप से पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के आवास पर अवैध रूप से कमाए गए धन की तस्वीरों ने आम जनता का मजाक उड़ाया है। इससे न केवल टीएमसी के मतदाताओं को झटका लगा है बल्कि यह भी प्रतीत हो रहा है कि स्वयं को बचाने के लिए पार्थ चटर्जी को बलि का बकरा बना उनकी बलि देने के लिए टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व ने असल में खेला कर दिया। गौरतलब है कि पार्थ चटर्जी टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के विश्वासपात्रों में से एक हैं। पार्टी में उनका कद सीएम ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक के बाद दूसरे नंबर पर है।
सुश्री बनर्जी पर 23 जुलाई को गिरफ्तारी के बाद से ही तृणमूल के हैवीवेट के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ रहा था। 69 वर्षीय मुख्यमंत्री और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के बाद पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहे हैं। इससे पहले दिन में, प्रवक्ता कुणाल घोष सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने तृणमूल के हैवीवेट के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के छापे और नकदी की जब्ती के बाद से तृणमूल नेतृत्व श्री चटर्जी से दूरी बनाने की कोशिश कर रहा है।
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अर्पिता मुखर्जी के आवास से नकद रुपये जब्त किए गए
ज्ञात हो कि बुधवार शाम को ईडी ने पूर्व मंत्री की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के एक आवास से 28 करोड़ रुपये नकद जब्त किए। यह दूसरा प्रकरण था जब मुखर्जी के एक आवास से नकदी बरामद की गयी। इससे पूर्व 22 जुलाई को, मुखर्जी के अन्य आवास से 21.90 करोड़ रुपये की नकदी और आभूषण जब्त किए गए थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। अब तक दो जगहों से जब्त की गयी नकदी और जेवरात की राशि 50 करोड़ रुपये के पार पहुंच चुकी है।
अपनी जान बचाने के लिए तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि, “अनुशासनात्मक समिति के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि उनको [पार्थ चटर्जी] जांच लंबित रहने तक पार्टी से निलंबित कर दिया जाना चाहिए।” बनर्जी ने मामले में समयबद्ध जांच की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा, “हम सभी जानना चाहते हैं कि बरामद धन का स्रोत क्या है।” बनर्जी ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य बताते हैं कि वह (चटर्जी) शामिल हो सकते हैं और तृणमूल कांग्रेस ने इस मामले में उनके खिलाफ कार्रवाई करके राज्य के लोगों को संदेह का लाभ दिया है।”
अभी इतना सब कहने वाले तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ऐसी बात इसलिए कर रहे हैं ताकि उनकी और उनकी बुआ ममता बनर्जी पर जांच की आंच न आने पाए पर सत्य तो यह है कि यह वो टीएमसी है जहां ममता बनर्जी के बिना कहे एक पत्ता नहीं हिलता है ऐसे में टीएमसी के इतने विश्वासपात्र पार्थ चटर्जी, ममता की ही कैबिनेट का हिस्सा होते हुआ, उन्हीं की नाक के नीचे इतना बड़ा खेला कर रहे थे और उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी ऐसा तो बिल्कुल असंभव लगता है। ऐसे में कल को यह पुष्टि हो कि पार्थ को ममता की शह मिली हुई थी उसी के परिणामस्वरूप वो यह करोड़ों का गबन कर पाए तो इसमें कोई अचंभे की बात नहीं होगी।
सारगर्भित बात यह है कि मिल रहे सबूतों से ईडी को छापेमारी जल्द खत्म होने के आसार तो दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। उक्त सभी सबूत और प्रमाण पार्थ चटर्जी और उनसे जुड़े लोगों के इस भ्रष्टाचार में सम्मिलित होने के साथ ही जनता के गुनहगार सिद्ध हो रहे हैं। वस्तुतः अब यह पार्थ चटर्जी के लिए सभी मार्गों का अंत है।
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