दिल्ली NCR के आसपास भारी संख्या में अवैध रोहिंग्याओं के होने का साक्ष्य है ‘मानेसर की घटना’

जांच की उठी मांग तो ‘अवैध रोहिंग्या’ रातों-रात हो गये फरार

Gurugram Manesar

सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार… ये वो हंटर है जिससे घुसपैठियों की कमर टूट जाती है। वो रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठिए जो कि देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा माने जाते रहे हैं उन्हें अब इसी हंटर का सामना करते हुए पलायन करना पड़ा है। मुस्लिम बहुल इलाकों से हिंदुओं को भगा देना या फिर वहां से निकल जाने के लिए उन्हें मजबूर कर देना, इस तरह की खबरें तो आपने कई बार सुनी होंगी। लेकिन अब हमारे देश की बदलती तस्वीर यह है कि यहां अब जो भी घुसपैठिया या यह कहें कि जो भी रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठिए और कुत्सित मन से भरे कट्टरपंथी होंगे उसकी खैर नहीं।

पलायन की खबरें सामने आयी हैं

दरअसल, गुरुग्राम के मानेसर से करीब 50 रोहिंग्या मुस्लिम परिवारों के पलायन की खबरें सामने आयी हैं। वहीं दावा यह किया गया है कि मानेसर में एक पंचायत ने इन परिवारों का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार कर दिया था। ध्यान देने वाली बात है कि गुरुग्राम का मानेसर एक इंडस्ट्रियल क्षेत्र है जिसके चलते इसे नौकरियों का गढ़ माना जाता है लेकिन यहां की पंचायत में यह मुद्दा उठा कि आखिर झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोग कौन है और जब उनसे पूछताछ की गयी और पहचान पत्र दिखाने को कहा गया तो धीरे-धीरे लोग गायब होने लगे।

ये घुसपैठिए कहीं भी काम मांगने जाते तो इनसे पहचान पत्र मांगा जाता पर इनके पास तो पहचान पत्र होता ही नहीं था। इतना ही नहीं लोग पहचान पत्र के आधार पर पुलिस वेरिफिकेशन भी कराने की मांग करते हैं जिसके चलते घुसपैठियों का यहां रहना मुश्किल हो गया था। ऐसे में लगातार खुलती पोल के चलते अब तक करीब 50 से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों का परिवार मानेसर छोड़ असम में जा बसा और दावे यह भी हैं कि अब इलाके में 7-10 मुस्लिम परिवार ही बचे हैं।

इस मुद्दे के सामने आने के बाद यहां की इंडस्ट्रीज को वामपन्थियों द्वारा निशाने पर लिया जा रहा है कि कंपनियों ने मुस्लिमों के साथ मतभेद किया जिसके चलते मुस्लिमों को पलायन करना पड़ा। जिसके बाद मारूति सुजुकी से लेकर लगभग सभी दिग्गज कंपनियों ने स्पष्ट किया है कि वे धार्मिक आधार पर  मजदूरों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं करती हैं। इस मुद्दे को लेकर मजदूर संघ को भी निशाने पर लिया गया कि संघ सांप्रदायिक हो गया है।

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मानेसर के सभी मजदूर संघ आक्रोशित हैं

वहीं मुस्लिमों के पलायन और मजदूर संघ पर लगे आरोपों को लेकर मानेसर के सभी मजदूर संघ भी आक्रोशित हैं उनका कहना है कि “जो खुद सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए जाने जाते रहे हैं वो हमें कट्टर ठहरा के बेहूदा आरोप लगा रहे हैं।” मुस्लिमों के इस पलायन को लेकर वामपंथी मीडिया लगातार दक्षिणपंथी संगठनों को निशाने पर ले रहा है। जो यह दिखाता है कि राजधानी दिल्ली के आस-पास किस तादाद में रोहिंग्या घुसपैठियों ने अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है कि उनके समर्थन में वामपंथी एक्टिव हो जाते हैं जबकि यथार्थ यह है कि ये रोहिंग्या मुस्लिम आंतरिक सुरक्षा के लिए एक चुनौती हैं।

अब यथार्थ को समझा जाय तो मानेसर में हिंदुवादी संगठऩों की सक्रियता रोहिंग्या मुस्लिमों पर भारी पड़ी है क्योंकि पहले पंचायत हुई और अवैध रूप से रहने वालों का हुक्का पानी बंद करने का आह्वान किया गया तो वहीं दूसरी ओर प्रशासन से भी इस मामले में कार्रवाई की मांग की गयी। पंचायत ने दावा किया कि मानेसर के इंडस्ट्रियल क्षेत्र में जिहादी तत्वों ने घुसपैठ की थी लेकिन वे उन्हें निकालने के लिए काम करेंगे और अब रोहिंग्या मुस्लिमों के भागने की खबरें भी आयी हैं।

ध्यान देने वाली बात ये है कि यहां मानेसर में रहकर ये रोहिंग्या अवैध धर्मान्तरण का काम करने के साथ ही क्षेत्र का सामाजिक माहौल भी खराब कर रहे हैं। इसके अलावा ये कट्टरपंथी अपने आर्थिक स्वार्थ के लिए हिन्दू देवी देवताओं के नाम पर दुकानें खोलकर धंधा करते हैं जिससे उनकी असलियत की पहचान न हो सके।

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पंचायत ने स्पष्ट तौर पर यह प्रस्ताव पारित किया था कि लोग दस्तावेज दिखाकर या तो सत्यापन करा लें या फिर जल्द से जल्द भाग जाएं नतीजा ये कि रोहिंग्या मुस्लिम भाग गए। ये लोग आनन-फानन में ही भागे थे। इन गतिविधियों से एक बात तो स्पष्ट होता दिख रहा है कि आखिर किस कदर इन रोहिंग्या मुस्लिमों ने दिल्ली एनसीआर के आस-पास अपनी जड़ें मजबूत की हुई हैं। ऐसे में आवश्यकता है कि पंचायतों से इतर झुग्गी बस्तियों में छिपे इन जिहादियों की पहचान के लिए सामाजिक संगठनों से इतर प्रशासन भी सक्रिय हो जिससे रोहिंग्याओं की पहचान की जा सके।

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