श्रीलंका, एक ऐसा देश जो आज अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए भी संघर्ष कर रहा है उसकी स्थिति जितनी दयनीय है उतनी ही उसके पूर्व मंत्री की मूढ़ता उसकी इस हालत की जिम्मेदार है जिसने अपने सभी शुभचिंतकों की चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया और अपने देश को चीन के हाथों बर्बाद करने के बाद मुसीबत में छोड़कर गायब हो गया।
हालाँकि श्रीलंका अचानक इस गरीबी में नहीं गिरा जहाँ आज उसके पास खाने को भोजन भी नहीं है। श्रीलंका के पतन की कहानी तीन चरणों में पूरी हुई। पहला चरण था जब श्रीलंका ने चीन से एक के बाद एक क़र्ज़ लेना शुरू किया। दूसरा चरण था जब श्रीलंका ने अपने देश की ज़मीन और बंदरगाह चीन के हवाले कर दिए जिससे कि धीरे-धीरे श्रीलंका पर चीन आधिपत्य पाने लगा। इसका तीसरा चरण था जब श्रीलंका चीन के क़र्ज़ जाल में इस कदर फंस गया कि उसका क़र्ज़ चुकाने के लिए जब देश ने कोशिश की तो उसके स्वयं के देश में महंगाई दिनों दिन बढ़ने लगी। महंगाई इस कदर बढ़ गई कि अन्न और पेट्रोल जैसी आम जरूरतों के दाम आसमान छूने लगे। बस, इसके बाद जो श्रीलंका की गाड़ी पटरी से पलटी है वह अभी तक संभल नहीं पा रही।
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श्रीलंका और नेपाल की स्थिति कैसे सामान है?
इस समय नेपाल में महंगाई इतनी बढ़ रही है कि सीमावर्ती क्षेत्रों से लोग सामान खरीदने भारत आ रहे हैं। नेपाल में सत्ता में रही के पी ओली की कम्युनिस्ट पार्टी जो चीन समर्थक रही है उसने चीन से एक बड़ा क़र्ज़ लिया था। हमेशा चीन के गुणगान करने वाली इस पार्टी ने अप्रत्यक्ष रूप से चीन के हाथों इतनी शक्ति दे दी कि आज चीन नेपाल की सीमा के अंदर घुसकर नेपाली गाँव पर कब्ज़ा कर उन्हें अपना बता रहा है लेकिन नेपाल की मुंह से चूं भी नहीं निकल रहा है।
जुलाई में आई एक खबर के अनुसार, नेपाल के गोरखा जिले के चुमानुबरी गांव -1 के रुइला सीमा चौकी में चीनी प्रशासन ने 200 मीटर की बाड़ और एक खंड पर एक गेट लगा दिया। यह जगह पिछले सप्ताह तक नेपाल की थी लेकिन अब बाड़ लगाने के बाद अब यह चीन के कब्जे में आ गई है। पहले इस सीमा खंड का उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा एक गाँव से दूसरे गाँव में जाने के लिए किया जाता था लेकिन पिछले महीने से, चीनी सैनिक जो बाड़ वाले क्षेत्रों में तैनात हैं, वे नेपाल के लोगों को बाढ़ पार करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं, उनका कहना है कि “यह चीनी क्षेत्र है, तुम यहाँ नहीं आ सकते”।
यह है चीन की सलामी स्लाइसिंग स्ट्रेटेजी। एक ऐसी रणनीति जिसके द्वारा चीन दूसरे देश के क्षेत्र के छोटे-छोटे हिस्सों पर अधिग्रहण करने की कोशिश करता है। वह एक-एक कदम दूसरे की भूमि में बढ़ता है जिससे कि दूसरे का ध्यान चीन की गतिविधियों पर अधिक न जाए और भूमि के एक हिस्से को चीन कब अपने कब्ज़े में ले लेता है। नेपाल के साथ भी चीन ने ऐसा ही किया है। जहाँ श्रीलंका में ऐसा करने के लिए उसने ज़मीने लीज़ पर लीं, परियोजनाएं तैयार कीं और बंदरगाह पर कब्ज़ा किया वहीं सीमा से जुड़ा नेपाल उसके लिए और आसान निशाना है जिसपर कब्ज़ा करने में न उसे इतनी मेहनत लगेगी और न ही देरी।
नेपाल पर अधिग्रहण के तीन चरण पूरे होते दिख रहे हैं। जिनके अनुसार चीन ने नेपाल के लिए भी क़र्ज़ जाल बुन दिया है, नेपाल की भूमि पर अधिग्रहण करने वह अपने कदम बढ़ा चुका है और अब नेपाल में खाद्य पदार्थों से लेकर पेट्रोल डीज़ल तक के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठना तो स्वाभाविक है कि ‘क्या नेपाल अगला श्रीलंका बनने वाला है?’
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नेपाल जल्दी नहीं संभला तो श्रीलंका जैसी हालत होगी
नेपाल चीन और भारत के बीच में खड़ा देश है। भारत और चीन इस समय दो कट्टर दुश्मनों से कम नहीं। साथ ही भारत के नेपाल से अच्छे संबंध और कई नेपाली भारतीय सेना में सेवानिवृत हैं, इन दोनों कारणों के चलते भारत कभी नहीं चाहेगा कि नेपाल चीन के चंगुल में फंसे। इसके लिए भारत समय-समय पर नेपाल की सहायता भी करता रहा है। लेकिन यदि नेपाल की पार्टियां चीन समर्थक बनकर उभरती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब नेपाल भी श्रीलंका की भांति अस्थिरता और अराजकता के बीच में फंसा होगा। अगर पाकिस्तान के साथ अगला श्रीलंका बनने की इस रेस से नेपाल बचना चाहता है तो आवश्यक है कि चीन समर्थक मंत्रियों को न चुनकर किसी ऐसे को चुने जो नेपाल के हित में बात करना जानता हो और चीन की धमकियों का सामना करने से न डरता हो।
हालाँकि चीन के तीन चरणों में फैलाये इस जाल में फंसने के आलावा भी नेपाल और श्रीलंका में कुछ समानताएं हैं। भाई-भतीजावाद, जो ओली सरकार के समय में अत्यधिक देखने मै मिला, क्रोनी कैपिटलिज्म- जहां निजी कंपनियां इतनी शक्तिशाली होती हैं कि वे अपने उद्योग को और बढ़ाने के लिए सरकार को अपने पक्ष में फैसला लेने को बाध्य कर देती हैं और भ्रष्टाचार वे कुछ समस्याएँ हैं जिन्होंने श्रीलंका को चीन की ओर धकेलने में अपनी भूमिका निभाई थी और यही समस्याएँ नेपाल में भी साफ़ नज़र आती हैं। नेपाल और पाकिस्तान यदि जल्दी न संभाले तो अगला श्रीलंका उन्हीं में से एक होगा।
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