केंद्र सरकार के द्वारा हाल ही में घरेलू रिफाइनरी कंपनियों पर विंडफॉल टैक्स लगाया गया है। पेट्रोल, डीजल और एयर टर्बाइन फ्यूल (ATF) के निर्यात पर सरकार द्वारा यह विंडफॉल टैक्स लगाया गया है। सरकार द्वारा पेट्रोल और एटीएफ के निर्यात पर 6 रूपये प्रति लीटर और डीजल के निर्यात पर 13 रुपये प्रति लीटर का टैक्स लगाया गया है। इसके अलावा सरकार ने घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर 23,250 रुपये प्रति टन अतिरिक्त कर लगाया है। इस कदम के पीछे का उद्देश्य घरेलू बाजार में इन उत्पादों की जरूरतों को बढ़ाना है। सरकार के इस कदम से रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी घरेलू तेल कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई है क्योंकि उन्हें अब अधिक टैक्स चुकाना पड़ेगा।
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क्या होता है विंडफॉल टैक्स?
सबसे पहले जान लेते है कि आखिर यह विंडफॉल टैक्स होता क्या है? विंडफॉल टैक्स उन कंपनियों पर लगाया जाता है जो अप्रत्याशित स्थिति में अप्रत्याशित लाभ कमा रही होती हैं। जैसे कि अभी रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तमाम देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए। इसके साथ ही भारत ने इसका लाभ उठाते हुए रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल आयात किया। देश की सरकारी और खास तौर से प्राइवेट तेल रिफाइनरी कंपनियां ने रूस से सस्ते दाम में कच्चा तेल आयात किया और इसे रिफाइन करने के बाद ऊंचे दाम पर विदेशों में पेट्रोल, डीजल और हवाई ईंधन बेच रही हैं। ऐसा कर यह कंपनियां जमकर मुनाफा कमा रही हैं परंतु इसके साथ ही दूसरे देशों में अधिक पेट्रोल-डीजल बेचने के कारण देश के कुछ राज्यों में ईंधन को लेकर संकट खड़ा होने लगा है। इसके अलावा घरेलू कच्चे तेल का निर्यात कर भी कंपनियां काफी लाभ कमा रही हैं। तेलशोधन कंपनियों की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए ही सरकार द्वारा डीजल, पेट्रोल और विमान ईंधन (ATF) के निर्यात पर यह विंडफॉल टैक्स लगाया गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट कहा है कि तेल कंपनियां मुनाफा कमाए सरकार को इससे कोई समस्या नहीं है परंतु इसके साथ ही घरेलू स्तर पर तेल की उपलब्धता भी जरूरी है। केंद्रीय मंत्री ने अपने एक बयान में कहा, “मुनाफे को लेकर हमें कोई ऐतराज नहीं है लेकिन घरेलू स्तर पर तेल उपलब्ध नहीं हो रहा है। कंपनियों के द्वारा कच्चे तेल का निर्यात कर असाधारण लाभ भी कमाया जा रहा है। हमारे अपने नागरिकों का भी कुछ हिस्सा बनता है। इसी वजह से हमने यह द्विपक्षीय दृष्टिकोण अपनाया है।” वित्त मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार ने जो टैक्स लगाया है वो आयात को हतोत्साहित करने के लिए नहीं है। साथ ही निश्चित तौर पर यह कदम मुनाफा कमाने के खिलाफ भी नहीं है परंतु असाधारण समय में ऐसे कदमों की आवश्यकता पड़ती है।
पूरी तरह से भरा हुआ है स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व
ध्यान देने वाली बात है कि तेल कंपनियां सरकार द्वारा लगाए गए इस टैक्स के विरोध में है और कंपनियों द्वारा इसे वापस लेने की मांग भी उठाई जा रही है। परंतु राजस्व अधिकारी तरुण बजाज द्वारा स्पष्ट किया गया है कि तेल की कीमत अगर 40 डॉलर प्रति बैरल गिर जाती है तो ही टैक्स को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार हर 15 दिनों में टैक्स की समीक्षा करेगी जिसके बाद इस पर कोई निर्णय लिया जाएगा। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI) के अनुसार घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन और ईंधन निर्यात पर भारत के अप्रत्याशित कर से सरकार को एक ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होने की संभावना है।
ज्ञात हो कि मई 2022 में आम जनता को पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से राहत देने के लिए सरकार ने पेट्रोल पर 8 रुपये और डीजल पर 6 रुपये उत्पाद शुल्क में कटौती की थी। इस फैसले से सरकार के राजस्व में एक लाख करोड़ की कमी का ही अनुमान था। अब तेल कंपनियों पर लगाए गए इस टैक्स के माध्यम से सरकार उत्पाद शुल्क में कटौती से हुए नुकसान की भरपाई कर सकती है। यानी उत्पाद शुल्क में कटौती कर सरकार द्वारा आम जनता को राहत भी दे दी गई और इससे राजस्व में आई कमी को विंडफॉल टैक्स के जरिए भरने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा अप्रैल-मई 2020 में जब कच्चे तेल की कीमतें कम थी तो भारत ने इसका भी फायदा उठाया था और स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व को पूरी क्षमता से भरा था। इसके द्वारा लगभग 5,000 करोड़ रुपए की बचत की गई थी और इसका इस्तेमाल किसी भी आपात स्थिति में किया जा सकता है।
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भारत की स्थिति सबसे बेहतर
गौरतलब है कि इस वक्त दुनिया वैश्विक मंदी की गिरफ्त में है। वैश्विक महामारी कोरोना और रूस-यूक्रेन युद्ध इसके प्रमुख कारण माने जा रहे हैं। अमेरिका जैसी महाशक्तियां भी इस दौरान घुटने टेकती नजर आ रही है परंतु यह मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का ही परिणाम है कि आज भारत अन्य देशों की तुलना में काफी बेहतर स्थिति में स्वयं को देख रहा है। कोरोना महामारी ने अन्य देशों की तरह भारत की अर्थव्यवस्था को भी गहरी चोट पहुंचाई लेकिन भारत इससे उबर कर अब द्रुत गति से भाग रहा है। हालांकि, अब देश इससे काफी तेजी से उभरता हुआ नजर आ रहा है। दुनिया भी कोरोना के कहर से उभर ही रही थी कि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई और पश्चिमी देशों की हालत खराब हो गई।
पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग करने की रणनीति अपनाई और उस पर हजारों तरह के प्रतिबंध लगा दिए परंतु इस दौरान भी भारत शुरू से लेकर अभी तक अपने स्टैंड पर कायम रहा है। पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत ने युद्ध के दौरान रूस के साथ अपनी दोस्ती और लाभ दोनों देखे। युद्ध के दौरान भारत ने कम कीमत पर रूस से कच्चा तेल खरीदा और रिकॉर्ड स्तर पर कच्चे तेल का आयात किया। भारत सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों के कारण ही कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भी आज भारत अन्य देशों की तुलना में काफी बेहतर स्थिति में है और वैश्विक मंदी के साए के बीच भी तेज गति से विकास के पथ पर अग्रसर है।
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