स्वयं को सर्वशक्तिमान समझना अमेरिका की पुरानी बीमारी है पर कभी-कभी सच्चाई बाहर निकल आती है और इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है। रूस से तेल खरीद पर भारत को ज्ञान देने वाले अमेरिका को बड़ा तगड़ा तमाचा लगा है। जितना सही, साफ़, सटीक दिखने का प्रयास अमेरिका अबतक करता आया है, असल में वह उतना ही क्रूर और कपटी है और वास्तविक रूप में अमेरिका का नाम गंदे रहस्यों से भरा हुआ है। इस बार अमेरिका के इन्हीं कृत्यों का खुलासा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा किया गया है।
दरअसल, मॉस्को और वाशिंगटन के बीच दरार बढ़ने पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को अमेरिका पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद सीरिया के तेल को “लूटने” का आरोप लगाया। अपने ईरानी और तुर्की समकक्षों के साथ तेल अवीव में एक बैठक में बोलते हुए पुतिन ने पश्चिम एशियाई देश पर एकतरफा दंड के साथ सीरिया में मानवीय संकट को बढ़ाने के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया। पुतिन ने मांग की कि अमेरिकी सेना को तुरंत पूर्वी यूफ्रेट्स क्षेत्रों को खाली करना चाहिए और “अवैध रूप से तेल निर्यात करके सीरियाई राज्य, सीरियाई लोगों के संसाधनों की चोरी करना बंद करना चाहिए।”
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यह सर्वविदित है कि कच्चा तेल दुनिया का प्राथमिक और सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है, परिवहन से लेकर अन्य तमाम चीजों के लिए पूरी मानव जाति इस पर निर्भर है। औद्योगिक क्रांति होने से पहले मक्का और गेहूं जैसे कृषि प्रधान देशों का वर्चस्व था लेकिन एक ही क्रांति ने पूरे परिदृश्य को बदल दिया। आज बाजार तेल पर आधारित है और उसी के द्वारा शासित है। इसका प्रभाव ऐसा है कि तेल के समीकरण दुनिया भर के देशों की विदेश नीति को निर्धारित करते हैं।
अपनी ईरान यात्रा के दौरान शिखर सम्मेलन में बोलते हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस बात पर जोर दिया कि “सीरिया के भविष्य को स्वयं सीरियाई लोगों द्वारा परिभाषित किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि रूस, तुर्की और ईरान संघर्षग्रस्त देश के भीतर उपाय करने और बातचीत को बढ़ावा देने के लिए तैयार हैं। सीरिया में अमेरिका की “अवैध” उपस्थिति पर अमेरिका को लताड़ते हुए पुतिन ने कहा कि ऐसे कृत्यों के “विनाशकारी परिणाम” हैं, सीरिया को मिलने वाली सहायता को रोकना राजनीतिक नहीं होना चाहिए।
ज्ञात हो कि वर्तमान समय में लगभग 900 अमेरिकी सैनिक सीरियाई भूमि पर तैनात हैं। अमेरिका ने आतंकवाद से लड़ने के नाम पर सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (SDF) का समर्थन किया है और सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाया। अमेरिका ने असद के प्रशासन को उखाड़ फेंकने के अपने एजेंडे को आगे रखा। अमेरिका सीरीयाई कुर्द बलों को अपने एजेंडे को पूरा करने में मदद करने में व्यस्त है। अमेरिका ने कुर्द बलों के साथ साझेदारी की है और उन्हें फायदा पहुंचाने के नाम पर उसने तेल मांगा है। कुर्द बलों ने कथित तौर पर स्थानीय तेल भंडार अमेरिकी कंपनियों को सौंप दिया है ताकि उन्हें असद शासन की पहुंच से बचाया जा सके। सीज़र सीरिया नागरिक संरक्षण अधिनियम के माध्यम से अमेरिका ने बशर असद के सत्ता में बने रहने तक युद्धग्रस्त सीरिया के लिए सभी सहायता को रोक दिया है।
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सीरिया से तस्वीर साफ है। अमेरिका तेल पर निर्भर है और उसकी निर्भरता उसकी विदेश नीति तय करती है। ध्यान देने वाली बात है कि तेल रणनीति में संयुक्त राज्य अमेरिका बार-बार अपराधी रहा है। अमेरिका स्वयं तेल उत्पादक देश है, उसके उत्पादन का 90 प्रतिशत से अधिक की खपत घरेलू स्तर पर होती है। ध्यान देने वाली बात है कि 1928 के रेड लाइन समझौते के बल पर अमेरिका मध्य पूर्व के तेल उत्पादन के थोक को नियंत्रित करने का काम करता है।
आपको बता दें कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका-सऊदी संबंध उभरने लगे और तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने सऊदी तेल को अमेरिकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण घोषित किया और वित्तीय सहायता प्रदान की। मध्यपूर्वी देश तब दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बन गया। ईरान के साथ भी ऐसा ही हुआ। वर्ष 1950 के दशक में अमेरिका ने देश के तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण के दोषी तत्कालीन पीएम मोसादेक को उखाड़ फेंकने में ईरानी सेना की मदद की। आज तक अमेरिका उसी का दोषी है। वहीं, दूसरी ओर व्लादिमीर पुतिन समय-समय पर अपने आक्रामक तेवरों से अमेरिका की जड़ें हिलाने के लिए तथ्यात्मक और सबूत के साथ उसे आड़े हाथों लेते दिखते हैं। इस बार यह हमला अमेरिका की उस घटिया नीति पर प्रहार करेगा जिसके माध्यम से अमेरिका सीरिया और उसके जैसे देशों पर दबाव बनाकर उन्हीं का उपभोग कर रहा है।
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