कभी सोचा था कि किसी भारतीय चलचित्र में आधुनिकता और वैज्ञानिकता का अद्भुत समावेश देखने को मिलेगा? कभी सोचा था कि जिस देश में अपनी संस्कृति पर गर्व करना भी किसी फिल्म में पाप माना जाता है, वहाँ एक फिल्म में न केवल गर्व से हमारी संस्कृति को दिखाया जाएगा, अपितु अंतरिक्ष विज्ञान के साथ उसके महत्व को भी जोड़ा जाएगा? परंतु इस कठिन कार्य को संभव कर दिखाया है रंगनाथन माधवन (R Madhavan) ने। इस लेख में हम आर माधवन की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘रॉकेट्री – द नम्बी इफेक्ट’ (Rocketry Review) के अनोखे अनुभव के बारे में जानेंगे, जिसने हमें भारतीयों से ही कई प्रश्न पूछने पर विवश कर दिया है।
सर्वप्रथम प्रश्न तो इस फिल्म के मूल किरदार, एस नम्बी नारायणन से ही है। क्यों आएं आप वापस भारत? क्यों छोड़ा आपने NASA की नौकरी को? क्या नहीं था आपके पास? एक अच्छी नौकरी, जीवन भर का सुख, वैभव? केवल अपने देश को स्पेस तकनीक में समृद्ध बनाने हेतु आप सब कुछ छोड़कर वापस आ गए, उस देश के लिए जिसने आपकी प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिह्न लगाने वालों को एक बार भी कठघरे में खड़ा नहीं किया? ये पागलपन किसलिए?
एक प्रश्न इस फिल्म के करताधर्ता माधवन महोदय से भी है – आप क्यों ऐसी फिल्म लेकर आ गए? इस देश में लोग मारधाड़ और नौटंकी आदि को पसंद करते हैं, ये देश KGF और भूल भुलैया 2 आदि का है, आप कहां से ‘रॉकेट्री’ जैसे फिल्मों के माध्यम से लोगों को देश के वैज्ञानिकों के अतुलनीय योगदानों का पाठ पढ़ाने आ गए? सोशल मीडिया पर कुछ लोग तो ऐसे हैं जो नम्बी नारायणन के इन योगदानों का इसलिए उपहास उड़ा रहे हैं, क्योंकि वो ‘कूल’ नहीं हैं तो वहीं कुछ लोग इसलिए उनका उपहास उड़ा रहे हैं क्योंकि वह ब्राह्मण हैं।
परंतु भावनाओं को इतर रखें तो इस फिल्म को देखने के पश्चात कोई भी भारतीय नम्बी नारायणन से इस देश की ओर से क्षमा अवश्य मांगेगा। आरबी श्रीकुमार, सिबी मैथ्यूज जैसे चंद दुष्टों के कारण जो कष्ट नम्बी नारायणन और उनके परिवार ने वर्षों तक झेले, उसका हम अनुमान भी नहीं लगा सकते, परंतु वो तब भी एक योद्धा की भांति डटे रहे, झुके नहीं। हम क्षमा मांगते हैं कि कुछ दुष्टों के कारण जो स्पेस क्रांति 1990 के दशक में आ सकती थी, उसके लिए भारत को 2 दशक अधिक की प्रतीक्षा करनी पड़ी।
हालांकि, इस बात के साथ-साथ हम आर माधवन के भी आभारी हैं, जिन्होंने इस फिल्म के माध्यम से एक ऐसे नायक की कथा को हमारे समक्ष रखा, जो न तो कोई सुपरहीरो हैं, न कोई सैनिक, परंतु फिर भी भारत के लिए एक महानायक समान हैं। न इन्होंने इतिहास से समझौता किया, न तथ्यों से और न ही संस्कृति से। अभिनय में भी माधवन और उनके सहायक कलाकारों ने अपना मानो सर्वस्व अर्पण किया है। हो सकता है कि चकाचौंध और मसाला फिल्मों के पीछे भागने वाली जनता से आपको ‘धनलक्ष्मी का सौभाग्य’ न मिले, लेकिन एक वास्तविक नायक को अक्षरश: चित्रित कर और उनके आदर्शों को आत्मसात कर माधवन ने जो किया है, उसके लिए ये देश सदैव उनका आभारी रहेगा। अब तक ऐसा प्रतीत होता था कि इरफान खान, अजय देवगन और कुछ हद तक अदीवी सेष ही ऐसे हैं, जो ऐतिहासिक किरदारों के साथ न्याय कर पाए हैं। परंतु ‘रॉकेट्री – द नम्बी इफेक्ट’ के साथ जो माधवन ने किया है, उससे अब वो भी इस गणमान्य श्रेणी में शामिल हो गए हैं।
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