जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आये थे तो उन्होंने देशवासियों से निवेदन किया था कि वे अपनी गैस सब्सिडी उनके लिए छोड़ दें जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। उनकी इस बात का समर्थन करते हुए कई परिवारों ने स्वेच्छा से अपनी सब्सिडी छोड़ दी। उन्होंने “सबका साथ, सबका विकास” का नारा दिया था जिसके अंतर्गत उन्होंने भारतीयों को एकजुट होने और देश को आगे बढ़ाने का आह्वाहन किया था। आज़ादी के वर्षों बाद भी गाँव के दूर- दराज इलाकों में ऐसे कई घर थे जहाँ लोग चूल्हे पर खाना बनाया करते थे क्योंकि उनके पास गैस सिलेंडर खरीदने के पैसे नहीं थे। ऐसे में मोदी सरकार ने पहल की और ऐसे घरों को मुफ्त गैस कनेक्शन और एक सिलेंडर दिया। हालाँकि इसके आगे से लोगों को स्वयं ही गैस सिलेंडर भरवाना था। आज जब सिलेंडर के दाम दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं तो ऐसे में पीएम मोदी ने समाज के उच्च वर्गों से आवेदन किया कि यदि वे अपनी सब्सिडी छोड़ दें तो उस पैसे को किसी गरीब के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
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मोदी-जनता का साथ रंग लाया
यह परिणाम अब आंकड़ों के रूप में सामने नज़र आ रहा है। आज मोदी और जनता ने इसी गैस सब्सिडी में मिलकर 3,69,67,00,00,000 रूपए की बचत की है। बचत के इस पैसे को देश के लिए काम में लाई जा रही परियोजनाओं में लगाया जा सकता है। इन आंकड़ों का खुलासा पेट्रोलियम मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में किया जब उसने बताया कि मोदी सरकार को वित्तीय वर्ष 2022 में एलपीजी सिलेंडरों पर सब्सिडी के लिए केवल 242 करोड़ रुपये आवंटित करने पड़े। यह संख्या वित्त वर्ष 2021 में सरकार द्वारा खर्च किए गए 11,896 करोड़ रुपये से लगभग 50 गुना कम थी। वित्त वर्ष 2019 में, सरकार को एलपीजी सिलेंडरों पर सब्सिडी के लिए अपने खजाने से 37,209 रुपये निकालने पड़े। इसके अलावा, अगर पिछले साल के आंकड़ों के साथ मौजूदा आंकड़ों की तुलना की जाए तो यह साफ़ है कि एलपीजी सब्सिडी की लागत खगोलीय दर से घट रही है।
हालाँकि पिछले कुछ समय से एलपीजी की कीमत बढ़ती ही जा रही है और अब तो यह 1000 रूपए के ऊपर पहुँच गई है लेकिन केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने आश्वाशन देते हुए कहा है कि सरकार अभी भी एलपीजी की कीमतों को औसत उपभोक्ता की पहुंच के भीतर रखने के लिए पूरा प्रयास कर रही है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि, “देश में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में संबंधित उत्पादों की कीमत से जुड़ी होती हैं। हालांकि, सरकार घरेलू एलपीजी के लिए उपभोक्ताओं के लिए प्रभावी मूल्य को संशोधित करना जारी रखे हुए है। “
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कांग्रेस विफल और भाजपा सफल हुई
एलपीजी को घर-घर पहुंचा पाने में कांग्रेस की सरकार कभी सफल नहीं हो सकी क्योंकि औसत उपभोक्ता को एलपीजी उपलब्ध कराना बेहद जटिल था। इसका प्रमुख कारण उत्पादन और पुनर्वितरण में लगी कंपनियों की श्रृंखला थी। इसके अलावा, दूरदराज के इलाकों में परिवहन पहुँचाने की अनुपलब्धता। इसका हल निकालते हुए सरकारों ने सिलेंडरों पर सब्सिडी देने का फैसला किया। लेकिन जैसा कि हर सब्सिडी वाले उत्पाद के मामले में होता है, वैसा ही उस समय भी हुआ। कभी गैस चोरी होना तो कभी सिलेंडर की काला बाज़ारी जैसी घटना आम हो चुकी थी। कभी-कभी उपभोक्ताओं को सिलेंडर लेने के लिए घंटों कतार में लगना पड़ता था। सरकार जो सब्सिडी भेजती वह सही खाते में न जाकर उन खातों तक पहुँचती थी जिनके लाभार्थी अभी मौजूद ही नहीं थे।
फिर आई मोदी सरकार जिसने एलपीजी वितरण के लिए बुनियादी ढांचे पर काम करना शुरू किया। देश भर में 11,000 से अधिक वितरण केंद्र खोले। ताकि गरीबों के लिए घर पर एलपीजी का लाभ उठाना संभव हो। सरकार ने उनके बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रदान करके अतिरिक्त लागत वहन की। एलपीजी सुधार एक अद्भुत कहानी है। यह जनता के विश्वास और मोदी की जीत का प्रतीक है। साथ ही एलपीजी में सुधार की यह कहानी सिद्ध करती है कि यदि सरकार और जनता साथ में काम करे तो वाकई में वह देश को बदलने की ताकत रखते हैं।
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