संजय दत्त चुन-चुनकर दुनिया के सबसे घटिया रोल कर रहे हैं

'मुन्नाभाई' के समय ही रिटायर हो जाते तो इतनी बेइज्जती न झेलनी पड़ती बाबा

Sanjay Dutt

Source- TFIPOST HINDI

माथे पर त्रिपुण्ड, मस्तक पर शिखा, यूनिफ़ॉर्म पर शुद्ध देवनागरी में ‘दरोगा शुद्ध सिंह’ का बैज, नकारात्मकता की प्रतिमूर्ति बने संजय दत्त ने हालिया रिलीज हुई फिल्म ‘शमसेरा’ में ऐसी भूमिका निभाई जिस पर कई तरह के सवाल खड़े होते दिख रहे हैं। फिल्म की कहानी में जबरदस्ती सनातन प्रतीकों को जिस तरह से गलत अर्थों में दिखाया गया, उसी ने इस फिल्म की नैया डूबो दी। 4 वर्ष बाद इस फिल्म के जरिए वापसी करने वाले रणबीर कपूर बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुए हैं। अभी तक फिल्म को कुछ अच्छा रिस्पॉन्स देखने को नहीं मिला है। फिल्म में ‘दरोगा शुद्ध सिंह’ का अभिनय करने वाले संजय दत्त को लेकर भी चर्चाएं जोर शोर से चल रही है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे पिछले कुछ वर्षों से संजय दत्त निरंतर अपने कर्मों से अपनी भद्द पिटवा रहे हैं और कैसे उन्हें समय रहते ही ‘मुन्नाभाई’ के समय लीड रोल से संन्यास ले लेना चाहिए था।

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हम सभी जानते हैं कि इतनी नौटंकी और बेइज्जती कराने के बाद भी बॉलीवुड का हाल ढाक के तीन पात रहा है। कम से कम शमशेरा के ओपनिंग वीकेंड से तो ऐसा ही प्रतीत होता है। 5000 से अधिक स्क्रीन कब्जियाने पर भी यदि आपकी फिल्म मात्र 30 करोड़ कमा पाए तो फिर आपका तो कुछ हो ही नहीं सकता। परंतु इससे एक और बात सिद्ध होती है और वो यह है कि संजय दत्त की उपयोगिता अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। एक समय था, जब लोग ‘संजू बाबा’ की एक झलक के लिए लालायित रहते थे।

एक समय था, जब संजय दत्त प्रयोग करने वाले अभिनेताओं की श्रेणी में सम्मिलित थे। विवादों से वो भी अपरिचित नहीं थे परंतु कम से कम एक अभिनेता कहलाने योग्य तो थे। ‘नाम’, ‘साजन’, ‘खलनायक’, ‘सड़क’, ‘वास्तव’ इत्यादि में उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था परंतु सफलता के शिखर पर वो तब पहुंचे जब उन्होंने राजकुमार हिरानी के साथ ‘मुन्नाभाई’ सीरीज़ को सिल्वरस्क्रीन पर लाने का निर्णय किया। सच बोलें तो उसी समय संजय दत्त को लीड रोल से हटकर अन्य रोल में प्रयोग करना प्रारंभ कर देना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

बस फिर क्या था, कुछ वर्षों तक अपने उसी मोड में जीने के पश्चात उन्हें एक अवसर मिला वर्ष 2012 में, जब धर्मा प्रोडक्शन की ओर से युवा निर्देशक करण मल्होत्रा सामने आए। बनाना चाहते थे ‘अग्निपथ’, जिसमें दत्त को कांचा चीना की भूमिका दी गई जो दिखने में किसी जोकर से कम नहीं था!

 

पर ठहरिए, यह ट्रेजडी यहीं खत्म नहीं होती। आपको पता है बॉलीवुड का एक मेडुसा इफेक्ट संजय दत्त के पास भी है? वो कैसे? अपने हाथों से उन्होंने कुछ महान प्रोजेक्ट का सत्यनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक समय था जब ‘Goodfellas’ के तर्ज पर तिग्मांशु धूलिया एक देसी गैंगस्टर मूवी फ्रेंचाइजी तैयार कर रहे थे और फिल्म सीरीज ‘साहिब, बीवी और गैंगस्टर’ के रूप में वो बुरा काम भी नहीं कर रहे थे। जो काम उन्होंने वर्ष 2011 में प्रारंभ किया था उसे उन्होंने वर्ष 2013 में बढ़ाया और उसे जनता का भरपूर प्रेम मिला। परंतु संजय दत्त ने उसकी लंका लगा दी? वर्ष 2018 में संजय दत्त फिल्म सीरीज ‘साहिब, बीबी और गैंगस्टर’ के तीसरे पार्ट में आएं और नतीजा यह हुआ कि फिल्म हिट या एवरेज तो छोड़िए अपने बजट का आधा भी नहीं जुटा पाई।

इसके अगले ही वर्ष उन्हें कलंक में बलराज चौधरी का रोल निभाने को मिला। महाशय के हाथ में अवसर था अपने आप को बहुमुखी, प्रतिभाशाली अभिनेता के रूप में स्थापित करने का लेकिन वो न घर के रहे न घाट के। संजय दत्त इस फिल्म में ‘कभी खुशी कभी गम’ के यश रायचंद के टेलीपोर्टेड वर्जन अधिक लगे और अभी तो हमने इस फिल्म के लेजेंडरी एजेंडे की तो चर्चा भी नहीं की है।

ध्यान देने वाली बात है कि जितनी लंका उन्होंने इस फ्रेंचाइजी की लगाई है, उतनी ही लंका उन्होंने ऐतिहासिक फिल्मों की भी प्रेम से लगाई है। पानीपत में जब उन्हें अहमद शाह अब्दाली बनाया गया तो बस भाग्य सराहिए कि उनके मुख से बंबईया बोली नही फूट पड़ी वरना ‘सम्राट पृथ्वीराज’ में काका कान्हा का जो हाल उन्होंने किया था, उसे देख तो किसी भी इतिहास के विद्यार्थी के कंठ से स्वत: ही अपशब्द प्रस्फुटित हो उठते। सम्राट पृथ्वीराज में बात-बात पर चंद वरदाई को ‘ए भटवे’ कहना (और यह मज़ाक नहीं है), मुन्नाभाई के लहजे में बात करना समेत कई चीजे हैं जिसमें वो एक राजपूत कम और बंबईया टपोरी अधिक लग रहे थे।

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ये तो कुछ भी नहीं है, पिछले वर्ष ‘भुज – द प्राइड ऑफ इंडिया’ के नाम पर जो रायता फैलाया गया उसमें सर्वाधिक योगदान तो संजय दत्त का था। उन्हें भूमिका दी गई थी एक वयोवृद्ध नायक बाबा रणछोड़ दास पागी की, दत्त उन्हें आत्मसात करना तो दूर उनके आसपास भी नहीं दिखे। खुद तो डूबे अजय देवगन के बने बनाए कार्यक्रम का भी सत्यानाश करा दिया।

अभी अगर सड़क-2 जैसे कलाकृतियों की चर्चा करने लगे तो संजू बाबा कहीं मुंह दिखाने योग्य न रहेंगे! TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा के अनुसार, “संजय दत्त के पास अब भी समय है कि वो रिटायर हो जाएं क्योंकि कास्टिंग डायरेक्टर उन्हें जोकर की भांति इधर-उधर कास्ट करते रहेंगे। अगर हम उनके आतंक संलिप्तता को अलग रखते हुए केवल अभिनय के पैमाने पर भी मापें तो वो एक उत्कृष्ट अभिनेता रहें हैं परंतु अब एक मज़ाक से अधिक कुछ नहीं हैं।”

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