सावरकर गद्दार हैं!
सावरकर देशद्रोही हैं!
सावरकर ने अंग्रेज़ों की चाकरी की
सावरकर ने माफी मांगी थी!
विपक्षियों और वामपंथियों ने वीर सावरकर को लेकर कई तरह की भ्रामक खबरें फैलाई. कांग्रेसियों ने हमारे इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया, मुगलों का महिमामंडन किया, अपने करीबियों को इतिहास में स्थान दिया और जिसने भी कांग्रेस का विरोध किया उसे ‘इतिहास निकाला‘ दे दिया. कांग्रेस के इसी त्रिया-चरित्र के कारण आज तक यह देश अपने वास्तिवक नायकों के योगदान को अच्छे से समझ भी नहीं पाया है. लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद देश के असली नायकों को वो सम्मान मिलने लगा है जिसके वो हकदार थे. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे भाजपा ने न केवल स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर को उनका उचित सम्मान वापस दिलाने की ठान ली है अपितु अपने एक कदम से सम्पूर्ण वामपंथी बिरादरी में त्राहिमाम भी मचा दिया है.
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गांधी से कम नहीं हैं सावरकर
हाल ही में केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण जर्नल प्रकाशित किया है. गांधी स्मृति और दर्शन स्मृति (GSDS) द्वारा प्रकाशित एक मासिक पत्रिका अंतिम जन का नवीनतम अंक विनायक दामोदर सावरकर को समर्पित है. इस अंक की प्रस्तावना में उनके कद को ऐतिहासिक बताते हुए महात्मा गांधी से तुलना की गई है. यह विभाग संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और इसके अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होते हैं.
इसी बीच इस पत्रिका के अंतर्गत जीएसडीएस के उपाध्यक्ष और भाजपा नेता विजय गोयल द्वारा सावरकर “महान देशभक्त” पर प्रस्तावना में बताया गया, “यह दुखद है कि जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल में एक दिन भी नहीं बिताया है और समाज के लिए योगदान नहीं दिया है वे सावरकर जैसे देशभक्त की आलोचना करते हैं. सावरकर का इतिहास में स्थान और स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है.”
परंतु बात यहीं पर नहीं रुकती. गोयल ने लिखा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके योगदान के बावजूद सावरकर को कई वर्षों तक स्वतंत्रता के इतिहास में उनका उचित स्थान नहीं मिला. GSDS के अधिकारियों ने कहा कि जून का अंक 28 मई को सावरकर की जयंती के अवसर पर उन्हें समर्पित किया गया था. GSDS स्वतंत्रता सेनानियों को स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर पत्रिका के आगामी अंक समर्पित करना जारी रखेगा.
मोतीलाल नेहरू भी थे सावरकर के समर्थक…
अब विनायक दामोदर सावरकर ने ऐसा क्या किया था कि देश के इतने महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानियों में से एक होने के बाद भी उन्हें न तो देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उचित स्थान मिला और न ही स्वतंत्रता के बाद उन्हें उनका उचित सम्मान मिला? कारण स्पष्ट था – तुष्टीकरण की कुत्सित राजनीति के प्रति उनका निरंतर विरोध और सनातन धर्म के प्रति उनका अटूट समर्पण. ये दोनों ही गुण उनमें प्रारंभ से थे और उन्हें न अंग्रेज़ तोड़ पाए न कांग्रेस और न ही कोई अन्य. जो कांग्रेस आज उन्हें उलाहने देने से पीछे नहीं हटती, उन्हें ये बताने में सांप सूंघ जाता है कि उनके समर्थकों में मोतीलाल नेहरू से लेकर व्लादिमीर लेनिन तक थे और स्वयं सुभाष चंद्र बोस तक उनके अनुरोध पर बंगाल में अपने आंदोलन को उग्र करने उतर आए ताकि वह किसी भी तरह अंग्रेज़ों को धता बताकर भारत के बाहर से समर्थन जुटाते हुए भारत के स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति अक्षुण्ण रख सकें.
परंतु आपको क्या प्रतीत होता है कि देश के वास्तविक नायकों को सम्मान देने का काम अभी प्रारंभ हुआ है? इसकी नींव तो 2021 में ही पड़ चुकी थी. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पिछले वर्ष 23 अगस्त से 29 अगस्त तक आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में प्रतिष्ठित सप्ताह मनाया. मंत्रालय की विभिन्न मीडिया इकाइयों ने इस अवसर पर विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाई. ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत एक पोस्टर को भी लॉन्च किया गया था. इस पोस्टर में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ पहली बार उस पराक्रमी सेनानी को वो स्वीकृति दी गई जिसके लिए न जाने कितने दशकों से राष्ट्रवादी संगठन विभिन्न माध्यमों से मांग कर रहे थे.
तो इसमें दिक्कत किस बात की थी? राष्ट्र प्रेमियों और सावरकर के अनुयायियों को सम्मान प्रदान करने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव के पोस्टर में वीर सावरकर की तस्वीर को रखा गया और उसमें से जवाहरलाल नेहरू को हटा दिया गया था. परंतु ये तो कुछ भी नहीं है. अब से कुछ समय बाद महेश मांजरेकर के निर्देशन में ‘स्वतंत्र वीर सावरकर’ आने वाली है, जिसमें रणदीप हुड्डा अमर वीर क्रांतिकारी की भूमिका को आत्मसात करते दिखेंगे. अब वो इस भूमिका के साथ कितना न्याय करेंगे ये तो समय ही बताएगा परंतु अब देश उस नायक को उनका उचित सम्मान दे रहा है जिनके साथ इतिहास ने सम्पूर्ण न्याय नहीं किया था.
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