अति किसी भी चीज की बुरी होती है और श्रीलंका के आर्थिक तौर पर बर्बाद होने की एक अहम वजह यह अति ही है। देश की सरकार ने आम लोगों को कुछ खास नीतियों के आधार पर विकास का सपना दिखाया था जो खोखला साबित हुआ। अब जब श्रीलंका की स्थिति बदतर हो गई है तो वहां की जनता नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है और नतीजा यह है कि पब्लिक नेताओं को ढूंढ़-ढूंढ कर उनपर हमले कर रही है। इस पूरे श्रीलंका कांड से यह साबित हो रहा है कि जिन विवादित नीतियों पर श्रीलंका चला यदि वही नीतियां भारत में भी अपनाई गई तो भारत की दुर्गति निश्चित है।
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दरअसल, श्रीलंका की खराब आर्थिक स्थिति के बीच वहां की आम जनता से लेकर खास लोग तक सरकार के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस मामले में एक बड़ी खबर यह है कि आनन-फानन में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए हैं। बताया जा रहा है कि 13 जुलाई को वो इस्तीफा दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में प्रदर्शनकारी पहले से ज्यादा उग्र हो गए और उन्होंने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा जमा लिया। विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी यही तक नहीं रुके। उन्होंने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को भी निशाने पर ले लिया। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद गुस्साई भीड़ ने उनके घर में आग लगा दी।
Irresponsible socialism, endless freebies, and Chinese loans lead to bankruptcy.
Bankruptcy leads to this👇🏼 #SriLankaProtests pic.twitter.com/yW95IIzMvF— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) July 9, 2022
श्रीलंका की इस संपूर्ण अराजकता की वजह कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है बल्कि पूरा खेल आर्थिक तंगी का है। श्रीलंका सरकार की पिछले तीन चार साल की नीतियों का असर यह हुआ कि वहां आर्थिक स्थिति बदतर हो गई जिसके कारण साधारण चीजें भी अप्रत्याशित महंगे दामों पर मिल रही है। खास बात यह है कि इस बर्बर स्थिति के पीछे कोई एक वजह नहीं है बल्कि गलतियों का पूरा चिट्ठा है।
#WATCH | Sri Lanka: Massive protests erupt on the roads of Colombo as people confront security personnel while protesting against the exacerbating economic situation amid prevailing unrest in the island-nation
(Source: Reuters) pic.twitter.com/tJRgAcyAXh
— ANI (@ANI) July 9, 2022
फर्जी समाजवाद, परिवारवाद और फ्री बांटो मॉडल से बर्बाद हुआ श्रीलंका
श्रीलंकाई सरकार ने गलत आर्थिक फैसले लिए जिनमें लोगों को टैक्स में छूट देने से लेकर सब्सिडी प्रदान करना आदि शामिल था। पहले तो श्रीलंकाई सरकार को कोविड के दौरान पर्यटन अधारित अर्थव्यवस्था में आय से ज्यादा व्यय का सामना करना पड़ा। इसके अलावा टैक्स में छूट के कारण सरकार का राजस्व घट गया और आर्थिक तौर पर श्रीलंका दिवालिया हो गया। वहीं, दूसरी वज़ह परिवारवाद है। राजपक्षे परिवार श्रीलंका की राजनीति में घुसा हुआ है। परिवारवाद ने ही श्रीलंका को इस बदतर स्थिति तक पहुंचाया है। दिवालिया होने से पहले राजपक्षे परिवार के आधा दर्जन से ज्यादा सदस्य श्रीलंका की केंद्रीय सरकार में शामिल थे। हालांकि, बाद में कई लोगों ने इस्तीफा भी दिया लेकिन वह प्रायोजित माना जा रहा था।
ध्यान देने वाली बात है कि श्रीलंका में समाजवाद की एक अजीबोगरीब लहर चल रही थी जिसके तहत समाज के हर तबके को साथ लेकर चलने का दावा किया जा रहा था। लेकिन हकीकत यह है कि कुछ खास लोगों को ही इस पूरे खेल में फायदा हो रहा था और यह दिखाने की कोशिश की जा रही थी कि हैप्पीनेस इंडेक्स में श्रीलंका प्रगति कर रहा है। असल में यह सब एक झोल साबित हुआ। नतीजा यह हुआ कि फर्जी समाजवाद का खेल ही श्रीलंका की मुश्किलों का कारण बना और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं तक उसे बचा पाने की स्थिति में नहीं है।
श्रीलंका को आर्थिक संकट से बचाना केवल भाईचारा मात्र नहीं है, भारत के पास है ‘long term strategy
भारत को लेना चाहिए सबक
इसके अलावा श्रीलंका को बर्बाद करने मे एक बड़ी भूमिका चीन की भी रही है जो कि भारत को घेरने के लिए लगातार श्रीलंका को विकास के नाम पर कर्ज देकर उसकी बुनियादी आर्थिक जड़ों को खोखला कर रहा था और जब श्रीलंका पूरी तरह से बर्बादी की कगार पर पहुंच गया तो चीन ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिए। पहले ऑर्गेनिक खेती का गलत फैसला और फिर चीन से निम्न गुणवत्ता वाली खाद की खरीदारी से श्रीलंका को झटक लगा तो वही हंबनटोटा पोर्ट बनाने से लेकर उसे चीन को लीज पर देने तक, श्रीलंका आर्थिक तौर पर चीन का गुलाम होता चला गया और अब चीन श्रीलंका पर अपना राज चला रहा है जो कि उसकी खराब आर्थिक स्थिति का एक अहम कारक है।
ऐसे में ये वो अहम कारक है जिन्होंने श्रीलंका के आर्थिक सर्वनाश की पटकथा लिखी और वह अब श्रीलंका के समाज में अराजकता के तौर पर सामने आने लगी है। भारत में कुछ वामपंथी लगातार फर्जी समाजवाद का ढोल पीटते हुए कुछ खास लोगों के विकास पर ध्यान दे रहे हैं। देश के कई राज्यों में जनता को मुफ्त की चीजों के नाम पर लुभाया जा रहा है जो कि एक ख़तरनाक स्थिति है। ध्यान देने वाली बात है कि जिन राज्यों में जनता को फ्री-फ्री-फ्री का पजामा पहनाया जा रहा है, उस राज्य पर कर्ज बढ़ता जा रहा है और वहां की अर्थव्यवस्था खोखली होती जा रही है। ऐसे ही फ्री मॉडल के नाम पर श्रीलंका बर्बाद हो गया है और हमें अब उससे सबक लेना चाहिए। यदि हम नहीं सभलें तो भारत की स्थिति भी कब श्रीलंका के समान हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।
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