भारत को ब्रह्मोस मिसाइल के एक्सपोर्ट का एक नया ऑर्डर मिला है। इस बार इंडोनेशिया ने इस मिसाइल को खरीदने की इच्छा जताई है और कहा है कि इस साल के अंत तक इस मिसाइल के एंटी-शिप वैरियंट को वह खरीद लेगी। ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल जिसे भारत और रूस ने मिलकर तैयार किया है उसे फिलीपीन्स ने खरीदा था ताकि उसके पास चीन के खिलाफ एक मजबूत हथियार हो। साथ ही इंडोनेशिया, एशिया का दूसरा देश होगा जो इस मिसाइल को खरीदेगा।
वैसे इंडोनेशिया दक्षिण चीन सागर में उन्हीं देशों का हिस्सा है जिनकी चीन से टक्कर रहती है। कारण है समुद्र के अनुमानित 11 बिलियन बैरल अप्रयुक्त तेल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस- जिसके लिए चीन कहता है कि यह मेरा है और प्रतिस्पर्धी दावेदारों ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम कहते हैं कि मेरा है।
साथ ही ये देश चीन की विस्तारवादी सोच के कारण भी परेशान हैं। ये देश समझ चुके हैं कि चीन के खिलाफ अमेरिका उनका साथ नहीं देने वाला इसलिए अपनी सुरक्षा की व्यवस्था उन्हें स्वयं ही करनी होगी जिसके चलते वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे कई देशों ने लड़ाकू जेट, रडार, मिसाइल सिस्टम और अन्य सैन्य हार्डवेयर के आयात के लिए भारत से संपर्क किया है। ऐसे में इंडोनेशिया के ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के पीछे अधिकाँश लोगों का मानना है कि यह इसलिए है ताकि भविष्य में इंडोनेशिया चीन का सामना कर सके। साथ ही दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है यह तो आपने सुना ही होगा लेकिन यह अकेला कारण नहीं है जिसने अचानक से इंडोनेशिया की दिलचस्पी भारत की ब्रह्मोस में जगा दी है। कहानी कुछ और ही है।
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भारत और इंडोनेशिया
इंडोनेशिया एक ऐसा देश है जो पाम तेल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है लेकिन इसकी निर्यात नीतियां जिनमें इनकी सरकार आये दिन बदलाव करती रहती है हमेशा चिंता का कारण रही हैं कि क्या यह भारत को लंबे समय तक पाम तेल प्रदान करने में सक्षम होगा? इस परिदृश्य में, भारत ने इंडोनेशिया को दरकिनार कर मलेशिया से पाम तेल खरीदना शुरू कर दिया जिसके चलते जल्द ही मलेशिया इंडोनेशिया की जगह लेते हुए भारत के लिए शीर्ष ताड़ के तेल के आपूर्तिकर्ता के रूप में बदल गया और इंडोनेशिया से आयात में साल-दर-साल 32% की गिरावट आई। अंतरराष्ट्रीय मांग में गिरावट के कारण इंडोनेशिया के घरेलू पाम किसानों को भारी नुकसान होने लगा।
इंडोनेशिया उन देशों में से है जो मुस्लिम- बहुसंख्यक देश है साथ ही यह ओआईसी का सदस्य है. ये दो शब्द जब एक साथ भारत के लिए हमेशा से चिंता का विषय रहा है। इंडोनेशिया जिसके सम्बन्ध नेहरू सरकार से अच्छे थे उसने 1965 में भारत की ही पीठ में छुरा घोंपते हुए पकिस्तान को उस समय अपनी पनडुब्बी भेजी जब पाकिस्तान भारत से कश्मीर युद्ध छेड़ चुका था। साथ ही इंडोनेशिया हमेशा से ही पाकिस्तान के कश्मीर राग का समर्थन करता आया है लेकिन पिछले कुछ समय से इंडोनेशिया कश्मीर मुद्दे पर कुछ भी बोलने से बच रहा है।
भारत और मलेशिया
हालाँकि मलेशिया भी एक मुस्लिम-बहुसंख्यक देश है और समय-समय पर पकिस्तान का समर्थक बनकर उभरा है लेकिन व्यापार के दृष्टिकोण से भारत मलेशिया का व्यापार वर्ष 2020 में 6.26 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा है जबकि भारत इंडोनेशिया का व्यापार केवल $4.55 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है। जहाँ मलेशिया भारत से तेजस जैसे हथियारों का आयात करने में लगा वहीं इंडोनेशिया ने कई बार बात शुरू कर उसे मझधार में ही छोड़ दिया जिसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो इंडोनेशिया कोई खेल खेल रहा हो, लेकिन भारत ने भी इसके पाम तेल का आयत रोककर इसका जो जवाब दिया उससे इंडोनेशिया विवश हुआ और अब व्यापारिक संबंध अच्छे करने के लिए उसने एक कदम भारत की ओर बढ़ाया है।
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भारत और ओआईसी
ओआईसी, ऐसा संगठन जिसमें केवल वे इस्लामिक देश ही सदस्य बनते हैं जिनमें भरी आबादी मुस्लिमों की होती हैं। हालाँकि भारत में भी मुस्लिम बड़ी संख्या में हैं लेकिन भारत को ओआईसी में सदस्यता नहीं मिली है और इसका सबसे बड़ा कारण है पाकिस्तान। पाकिस्तान ओआईसी में सदस्य बनने के बाद से ही ‘भारतियों द्वारा कश्मीरियों पर किये जा रहे कथित जुल्मों’ का दावा करता आया है जिनका उसके पास कोई सबूत नहीं है। हालाँकि शुरुआत में ये देश पाकिस्तान के साथ खड़े हुए लेकिन अब उनमें से कई देश पाकिस्तान का कश्मीर राग सुनकर ऊब चुके है।
वर्ष 2018 में ओआईसी के सदस्य बांग्लादेश ने भारत को ओआईसी में ‘आब्जर्वर स्टेटस’ देने की मांग उठाई थी हालाँकि पाकिस्तान के विरोध के चलते इस मांग को खारिज कर दिया गया। पर फिर वर्ष 2019 में भारत को विशिष्ट अतिथि के तौर पर ओआईसी में अरब अमीरात ने आमंत्रित किया। इस बार भी पकिस्तान ने विरोध किया और धमकी भी दी कि यदि भारत आयोजन का हिस्सा बना तो पाकिस्तान शामिल नहीं होगा लेकिन इस बार पकिस्तान की किसी ने नहीं सुनी और भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज उस आयोजन का हिस्सा बनीं।
साथ ही ओआईसी के दो बड़े सदस्य- संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब व्यक्तिगत रूप से भारत को मित्र के तौर पर देखते हैं और इन देशों के साथ भारत के संबंध काफी अच्छे हैं। इनके आलावा बांग्लादेश और मालदीव वे देश हैं जो निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि वे कश्मीर पर भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को जटिल नहीं बनाना चाहते। यह भारत की सफल नीति का ही परिणाम है कि वे गुट जो बिना सोचे-समझे हमेशा पकिस्तान का समर्थन करता आया आज वह भारत का साथ दे रहा है। यदि भारत की नीति सफल रहती है तो जल्द ही मलेशिया और इंडोनेशिया भी पाकिस्तान को छोड़ भारत के पक्ष में खड़े होंगे।
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ऐसी नीतियो को सफल करने के लिए व्यापार एक अहम भूमिका निभाता है और भारत भी व्यापार को लेकर ही यह खेल खेल रहा है जिसमें वह सफल होता भी नज़र आ रहा है। एक तरफ इंडोनेशिया का ब्रह्मोस मिसाइल खरीदना भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ावा दे रहा है वहीं दूसरी ओर इंडोनेशिया से बढ़ता व्यापार और चीन से लड़ने के लिए उसकी भारत पर निर्भरता उसे विवश करने में सक्षम है कि यदि ओआईसी में वह भारत के समर्थन में नहीं बोलता है तो भारत के विरुद्ध भी न बोल सके। शत्रु से जीतने के लिए आवश्यक नहीं कि केवल बल का प्रयोग किया जाये। अगर काम बुद्धि से हो जाये तो तलवार उठाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती और यह भारत ने साबित कर दिया है।
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