‘आलोचना की एक सीमा होती है’, जज साहब कहिन

और भी बहुत कुछ बोले हैं मी लॉर्ड!

Chandra Chun

Source- TFIPOST.in

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर किसी को किसी भी मामले पर प्रश्न उठाने की पूरी स्वतंत्रता है। परंतु जब बात न्यायपालिका की आती है, तो वो किसी को जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं। यह आवश्यक तो नहीं कि हर कोई न्यायापालिका के हर फैसले से सहमत ही हो। यही कारण है कि उनके फैसलों पर कई बार असहमति जताई जाती है, प्रश्न उठते है और आलोचनाएं भी होती है।

पिछले कुछ समय से देखने को मिल रहा है कि न्यायापालिका सवालों के घेरे में है। कोर्ट के कुछ फैसलों पर प्रश्न उठ रहे है, तो वहीं कुछ लोग उनकी आलोचनाएं भी कर रहे है। मीडिया में भी ऐसे कई मामले सुर्खियों में छाए हुए है। परंतु ऐसा लगता है कि न्यायापालिका की इस आलोचना से जज परेशान होने लगे हैं और यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पर नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने मीडिया को निशाना बनाते हुए कहा कि “जज को टारगेट करने की भी एक सीमा होती है। हमें भी तो ब्रेक दें।“

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ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसा का मामला

दरअसल, यह पूरा मामला ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसा को उजागर करने वाली एक याचिका से जुड़ा है। वकील ने इस मामले पर तत्काल सुनवाई करने की मांग की थी। ऐसी खबरें आई कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करने में देरी कर रहा है। इस पर ही टिप्पणी करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- “हाल ही में मैंने एक न्यूज आर्टिकल पढ़ा था। इसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई में देरी कर रहा है। आप जजों को कितना निशाना बना सकते है? इसकी भी तो एक सीमा होती है। हमें भी तो एक ब्रेक दें।“ यहां आपको बता दें कि इस केस की सुनवाई 11 जुलाई को होने वाली थी। बाद में इसे 15 जुलाई के लिए लिस्टेड कर दिया गया, परंतु तब भी सुनवाई नहीं हो पाई। जस्टिस चंद्रचूड़ ने देरी के पीछे का कारण यह बताया कि उन्हें कोरोना हो गया था।

हाल ही में तथाकथित पत्रकार मोहम्मद जुबैर के मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक बड़ी टिप्पणी की थी। इस दौरान उन्होंने कहा- “यह एक वकील के आगे बहस न करने के लिए कहने जैसा है। आप एक पत्रकार को कैसे बता सकते हैं कि वह लिख नहीं सकता?” यानी जस्टिस चंद्रचूड़, जुबैर के मामले में तो यह मानते है कि एक पत्रकार को पूरी स्वतंत्रता होती है। परंतु अब जब वहीं मीडिया न्यायापालिका पर कुछ प्रश्न उठाने लगी, तो इससे जस्टिस चंद्रचूड़ खफा हो गए।

हालांकि केवल जस्टिस चंद्रचूड़ ही मीडिया के कामकाज के तरीके पर प्रश्न नहीं उठा रहे। इससे पहले CJI रमन्ना भी मीडिया पर भड़क उठे थे और उन्होंने बड़ा बयान देते हुए कहा था- “भारतीय मीडिया कंगारु कोर्ट चला रही है।“ उन्होंने खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आलोचना की थी और कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शून्य जवाबदेही है। CJI रमन्ना ने कहा था- “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर गैरजिम्मेदाराना रिपोर्टिंग और बहस की वजह से न्यायपालिका को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।“

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न्यायपालिका पर कई तरह के प्रश्न उठ रहे है

देखा जाए तो न्यायापालिका को लेकर पिछले कुछ समय से कई तरह के प्रश्न उठाए जा रहे है। कई टिप्पणियों पर विवाद भी हुए। जैसे कि भाजपा नेता नुपूर शर्मा को उनके बयान के बाद देश में हुई हिंसा की घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराना। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक बयान में कहा था कि “उदयपुर में हुई घटना के लिए नुपूर शर्मा जिम्मेदार हैं।” कोर्ट की इस टिप्पणी के खिलाफ काफी नाराजगी देखने को मिली। इसके खिलाफ देश के 117 हस्तियों ने बयान जारी कर SC की टिप्पणी पर आपत्ती जताई, जिसमें 15 सेवानिवृत्त न्यायाधीश, 77 सेवानिवृत्त नौकरशाह और 25 सेवानिवृत्त सशस्त्र बलों के अधिकारी शामिल थे।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज के संस्थापक मोहम्मद जुबैर को बीते हफ्ते जमानत देते हुए SIT को ही भंग कर दिया था। कोर्ट के इस फैसले का भी विरोध हुआ था। जिस SIT पर जुबैर को मिल रही बाहरी फंडिंग का पता लगाने से लेकर सभी गुप्त सूत्रों पर जांच करने का जिम्मा था, उसे ही कोर्ट द्वारा भंग कर देने पर प्रश्न उठे थे। इस सब मामलों को लेकर ही बीते दिनों न्यायपालिक पर सवाल उठे और आलोचना की गई।

न्याय के लिए लोगों का पूरा भरोसा न्यायपालिका पर ही टिका होता है। परंतु देखा जाए तो कई मामले कोर्ट में सालों साल तक चलते रहते है। न्याय के इंतजार में तो कई लोगों की जिंदगी ही निकल जाती है। आंकड़े बताते है कि देश में 4 करोड़ से भी अधिक मामले लंबित है। अकेले सुप्रीम कोर्ट में इस समय 70 हजार से भी अधिक केस पेंडिंग पड़े है। इन सबके बावजूद देखा जाए तो अधिकतर समय कोर्ट में छुट्टियां रहती है। वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट 83 दिन छुट्टियों पर रहा। इसमें अगर 50 दिन रविवार को भी जोड़ दें, तो ये 133 दिन हो जाता है यानी साल के 36% दिन कोर्ट में छुट्टियां रही। ऐसे में माननीय जज चाहते है कि उन पर कोई प्रश्न ना उठाए, उनकी आलोचना ना करें, क्योंकि न्यायपालिका देश के संविधान के सिवाए और किसी के प्रति जवाबदेही नहीं होती।

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