परमाणु हमले के बाद जापान ने ऐसा क्या किया जो वो आर्थिक शक्ति के तौर पर उभरा

जापानियों की तो बात ही कुछ और है !

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Source- TFIPOST.in

जापान ये शब्द अपने आप में शांति, समृद्धि और वैभव का प्रतीक है। आज ये विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक है, विश्व के अधिकतम मंचों पर इसकी राय के बिना बात नहीं बनती। ये देश चीन के विरुद्ध एक सशक्त और उच्चतम विकल्प है, ये देश एक सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न राष्ट्र है, ये देश एक आर्थिक महाशक्ति भी है।

परंतु क्या ये प्रारंभ से ऐसा था? ये था भी और नहीं भी। जिस देश पर एक नहीं, दो परमाणु हमले हुए हो, सिर्फ इसलिए उसने बहती गंगा में हाथ धोने की भूल की, तो ऐसा क्या हुआ कि उस छिन्न भिन्न जापान ने न केवल अपने आप को संभाला अपितु अपने आप को विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक में परिवर्तित भी किया। ये कथा है उस जापान की, जिसने अपने आप को हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु हमलों से उबारा, और फिर अपने आप को पुनः एक शक्तिशाली एवं एक समृद्ध राष्ट्र के रूप में पुन: स्थापित किया।

परंतु ये संभव कैसे हुआ? आखिर जिस दिन पर एक नहीं, दो दो परमाणु हमले हुए, वो भी ऐसे समय पर, जब परमाणु हमले का प भी लोगों को ज्ञात नहीं था, तो ऐसे में कैसे जापान अपने आप को संभाल पाता? इसके पीछे अनेक कारण, जिनका एक एक करके विश्लेषण करना अवश्यंभावी हो जाता है। अन्यथा जापान इतना शक्तिशाली और समृद्ध कैसे हो गया कि वह 1964 में ही टोक्यो ओलंपिक जैसा अत्यंत भव्य समारोह का आयोजन करने योग्य हो गया?

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इसका उत्तर इस उदाहरण में मिल सकता है – “एक समय जापान के राजदूत भारत के दौरे पर एक स्कूल मे गये तो वहाँ के छात्रों ने उनसे पूछा- “आपके देश मे इतने कम लोग है फिर भी आपका देश विकसित है, लेकिन हमारे देश मे आपसे ज़्यादा लोग हैं फिर भी लेकिन फिर भी हम विकासशील ही क्यों है ? सवाल सुनकर जापानी राजदूत मुस्कुराया और बोला- हमारे यहाँ लोग नहीं रहते, जापान के नागरिक रहते है, यही हमारी खुशहाली का कारण हैं”।

परंतु ये तो कुछ भी नहीं है बंधु। जापान ने उसे अपना हथियार बनाया जो अनेकों देशों के लिए दुर्बलता रही – अपनी संस्कृति। संस्कृति तो भारत की भी अनोखी है – पर जापान के लिए उनकी संस्कृति उनकी जान है। निस्संदेह कोरोना के कारण जापान को काफी हानि झेलनी पड़ी, परंतु वह अपने आत्मसम्मान के साथ किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं। अब इस क्षेत्र में भले ही पीएम किशिदा के आगमन से आक्रामकता तनिक कमी आई है, परंतु जापानियों की राष्ट्रभक्ति पर आज भी कोई संदेह नहीं कर सकता।

अब जापान की संस्कृति में भी कई ऐसी चीज़ें हैं जो किसी भी बीमारी के प्रसार रोकतीं आई हैं। जापान के लोग जब भी एक-दूसरे से मिलते हैं तो हाथ मिलाने या फिर गाल पर चुंबन करने की बजाय वे एक दूसरे के सामने झुक कर अभिवादन करते हैं। यही नहीं जापान में बचपन से ही लोगों को बहुत साफ-सफाई रखना सिखाया जाता है। जापान में साफ सफाई में रखना

हाथ धोना, डिसइंफेक्ट मिश्रण से गारगल करना और मास्क पहनना उनके रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हैं। इन सब के लिए किसी वायरस की आवश्यकता नहीं है। इसी का नतीजा था कि जब फरवरी में यह वायरस फैलने लगा तो पूरे जापान को एंटी-इंफेक्शन मोड में आने के लिए अलग से मेहनत करने की आवश्यकता नहीं पड़ी और न ही सरकार को अलग से यह बताने की आवश्यकता पड़ी कि आप लोग साफ सफाई रखें। दुकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के दरवाजो पर सैनिटाइजर रख दिए गए और मास्क पहनना सबकी जिम्मेदारी बन गया।

अब आर्थिक रूप से जापान कितना समृद्ध और कुशल है, इसकी झलक टोक्यो ओलंपिक 1964 में ही। न केवल इसका सफलतापूर्वक आयोजन किया गया, अपितु इस वर्ष संसार को कलर टेलिविजन जैसे अद्भुत कलाकृति से भी परिचित कराया गया था। सोचिए, इसको निर्मित कराना उस देश के लिए कितना कठिन रहा होगा, जिसपर एक नहीं, दो दो परमाणु हमलों का कलंक रहा था। परंतु इस देश पर न तुष्टीकरण का साया था, न जातिगत आरक्षण का बोझ। अब तनिक ये सोचिए, भारत में कलर टीवी कब आया था?

अब इसी देश की एक और अनुपम देन है –टोयोटा। इसकी गाड़ियां दुनिया भर में अपनी विश्वसनीयता के लिए जानी जाती हैं। यही मुख्य कारण है कि टोयोटा दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कार है। वैसे टोयोटा कोरोला की तो बात ही कुछ और थी। टोयोटा न केवल विश्वसनीय हैं बल्कि रखरखाव के मोर्चे पर भी अपेक्षाकृत आसान हैं, जो इसे उपभोक्ताओं के लिए थोड़ा अधिक सुगम बनाता है।

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जापान इस मोर्चे पर सर्वाधिक सक्रिय है

वह है रक्षात्मक मोर्चा। 2020 में जापान ने दक्षिणी चीन सागर  पिछले एक महीने से चीन वुहान वायरस की महामारी का दुरुपयोग अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने हेतु कर रहा है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमने कुछ ही हफ्तों पहले दक्षिणी चीन सागर में उसके हमलों से देखा है। परन्तु हाल ही में ड्रैगन की एक और ऐसी कोशिश बुरी तरह धराशाई हो गई, जब उसने जापानी क्षेत्र में हमला करने का प्रयास किया। पूर्वी चीन सागर में अभी हाल ही में चीनी कोस्ट गार्ड के जहाज जापान के अधिकार वाले दियाओयू द्वीप के पास देखे गए, जिस पर चीन अपना अधिकार जमाता है। जब इन्होंने एक स्थानीय जापानी फिशिंग बोट का पीछा करना शुरू किया, तो जापानी नौसेना ने तत्काल प्रभाव से पैट्रोलिंग जहाज़ भेजे, और फिर एक रेडियो वार्निंग भेजी, जिसके बाद चीनी जहाज़ों को दुम दबाकर भागना पड़ा।

परन्तु यह पहली ऐसी घटना नहीं थी। बता दें कि पूर्वी चीनी सागर के कई द्वीप और रीफ  प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण हैं, और ऐसे में  चीन और जापान के बीच दशकों से संघर्ष चलता आ रहा है। लेकिन यहाँ जापान अकेला नहीं है जिसे बीजिंग की औपनिवेशिक मानसिकता का शिकार होना पड़ा हो। मलेशिया, वियतनाम, यहां तक कि ताइवान के साथ भी चीन आजकल गुंडई करने पर उतारू है। चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत वियतनाम और ताइवान के इलाकों पर भी कब्जा करना शुरू कर दिया है। हालांकि, वियतनाम ने अब की बार चीन को उसी की भाषा में जवाब देने में देर नहीं लगाई।

दरअसल, चीन ने पारसेल द्वीप को अपना एक जिला घोषित कर दिया। पारसेल को वियतनाम और ताइवान दोनों अपना हिस्सा मानते हैं। चीन के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए वियतनाम से इसे “कानूनों का उल्लंघन” बताया। वियतनाम के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ले थी थू हांग ने चीन को धमकी देते हुए कहा- चीन का यह कदम दोनों देशों की दोस्ती के लिए अच्छा नहीं है। ऐसे कदम वियतनाम की संप्रभुता को ठेस पहुंचाते हैं। उम्मीद है कि चीन ना सिर्फ अपने इस कदम को वापस लेगा बल्कि भविष्य में ऐसे कदम उठाने से भी परहेज करेगाऐसे में रक्षा हो, संस्कृति हो, या फिर अर्थशास्त्र, जापान आज भी संसार के अनेक देशों को टक्कर देने योग्य है। इसके बिना अनेक देशों का टिक पाना भी लगभग असंभव है। कई समूहों के लिए यह रीढ़ की हड्डी समान है, तो भारत जैसे देशों के लिए ये वो मित्र है, जो प्राण चले जाए, पर अपने दिए वचन पर न जाए। धन्य है जापान, और धन्य है इसके लोग।

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