शिंदे के एक कदम से, ठाकरे परिवार का महाराष्ट्र की राजनीति में सूर्य हमेशा के लिए अस्त हो चुका है

किसकी होगी शिवसेना, किसे मिलेगा धनुष-बाण?

uddhav shinde

Source- TFIPOST.in'

भारत कहावत प्रिय देश है, यहाँ हर अवसर के लिए कहावत है। इसी बीच महाराष्ट्र का सियासी संकट एकनाथ शिंदे की बगावत से शुरू होकर, एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब शांत हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और उसकी रणनीति को इस बार भी भांपना थोड़ा जटिल प्रतीत हुआ। अघाड़ी सरकार के जाने की गड़गड़ाहट यूँ तो उसी दिन से थी जबसे शिंदे “सेना” गुजरात से गुवाहाटी और गुवाहाटी से गोवा का सफर तय कर रही थी। शिवसेना की दो फाड़ के बाद महाविकास अघाड़ी सरकार की सरकार गिरने के बाद यह तो सिद्ध हो गया कि भाजपा के एक कदम के साथ, ठाकरे परिवार को सत्ता से हमेशा-हमेशा के लिए बाहर कर दिया गया है।

यूँ तो राजनीति संभावनाओं और समीकरणों का ही खेल है, जो बनते-बिगड़ते रहते हैं। आज का राजा कल का रंक और फ़कीर भी हो सकता है इसका अनुमान सभी राजनीतिज्ञों को है पर स्वार्थ निहित राजनीति के चक्कर में कई बार बड़े-बड़े नेता आवेश में आकर कब अपनी धनिया बो लेते हैं, कोई नहीं जानता। कुछ ऐसा ही उस शिवसेना के साथ हुआ जो आज दो गुटों में नूराकुश्ती खेल रही है। एक गुट वो जो जन्मजात शिवसैनिक और उसके असल वारिस कहे जाते हैं अर्थात उद्धव ठाकरे और एक वो गुट जो पार्टी के लिए जमीनी लड़ाई लड़ने से लेकर लाठी-डंडे खा नेता बनकर आज राज्य के मुख्यमंत्री पद पर पहुँच गया अर्थात एकनाथ शिंदे।

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अब सत्ता की बागडोर एकनाथ शिंदे के पास

बुधवार रात को उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद 24 घंटे के भीतर ही महाराष्ट्र में नए मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे का चयन हुआ और शाम तक उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ भी ले ली। ऐसे में सबसे बड़ा झटका तो उद्धव ठाकरे गुट को यह लगा कि बालासाहेब की शिवसेना की सोच से समझौता कर कांग्रेस और एनसीपी जैसे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाना ही आज उद्धव के नीचे मंत्री और पार्टी के सिपाही के रूप में काम करने वाले एकनाथ शिंदे ने उनकी जगह पलभर में बदल दी।

अब न केवल सरकार के मुखिया के रूप में एकनाथ शिंदे ताकत में बढ़त पा चुके हैं बल्कि अब सरकार हथियाने के बाद शिंदे का निशाना वही बाला साहेब ठाकरे की हिंदुत्व आधारित शिवसेना का सर्वेसर्वा बनना है जिसको पूजते हुए आज शिंदे राज्य के मुख्यमंत्री पद पर पहुंचे हैं। यूँ तो स्वयं उद्धव ठाकरे भी शिवसेना के सुप्रीमो बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं क्योंकि न उनके पक्ष में उनके निवर्तमान मंत्री रहे, न ही विधायक रहे, पार्टी के मूल कैडर अर्थात हिंदुत्ववादी शिवसैनिक सभी एकनाथ शिंदे गुट के हमजोली हो गए हैं।

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महाविकास अघाड़ी सरकार का सूर्य अस्त

वहीं जितना उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस के उपमुख्यमंत्री बनने से नहीं उछल रहे हैं उससे कई अधिक पीड़ा तो शरद पवार को हो रही है। हो भी क्यों न, कुछ नहीं मिला तो यही सही। चूंकि जांच की तलवार अब लटक गई है और पवार के लंबित इनकम टैक्स से जुड़े मामलों में नोटिस आने शुरू हो गए हैं। ऐसे में बिलबिलाए पवार ऐसे बयान दे रहे हैं जैसे उनसे बड़ा देवेंद्र फडणवीस का हितैषी इस दुनिया में पैदा ही नहीं हुआ हो।

सत्य तो यह है कि जबरन सरकार बनाए जाने का नतीजा यह हुआ कि महाविकास अघाड़ी की तीन पहियों वाली सरकार ढाई साल के भीतर बुरी तरह से अल्पमत के साथ गिरी और अघाड़ी टूटने से अधिक शिवसेना टूट गई। अब न तो उद्धव ठाकरे और ठाकरे के पास पार्टी का मालिकाना हक़ बचा और न ही उसे अपना कहना का औचित्य। पार्टी के धड़ों में बंटने से या तो आगे राज ठाकरे उसपर दावा ठोक सकते हैं या स्वयं एकनाथ शिंदे ही पार्टी का एकाधिकार प्राप्त करेंगे क्योंकि उनके पास शिवसेना विधायकों समेत सांसदों का भी साथ है। अब वास्तव में इस बिखराव ने यह जता दिया कि, भाजपा के एक कदम के साथ, ठाकरे परिवार हमेशा के लिए सत्ता और पार्टी दोनों से बाहर हो गया है। अब किसी भी हाल में शिवसेना ठाकरे परिवार के नियंत्रण में आने से रही।

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