“राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता”, यह इस व्यवसाय का सबसे कटु सत्य है पर इसका सबसे निकृष्ट रूप हमें ऐसे देखने को मिलेगा, यह शायद ही किसी ने सोचा था। सत्ता के लालच में अंधा होकर एक व्यक्ति अपने ही “राजनीतिक गुरु” को विपक्षी पार्टी का एजेंट बता दे, ऐसा पाप तो शायद जवाहरलाल नेहरू, लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी भी अपने सबसे निकृष्टतम काल में न करें परंतु अरविंद केजरीवाल ने यही किया है।
हाल ही में दिल्ली के विवादित आबकारी नीति को लेकर सीबीआई के छापे पड़े थे, जिसके पीछे आम आदमी पार्टी ने काफी हो हल्ला मचाया। अब चूंकि सीबीआई को उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के बैंक लॉकर के छापे में कुछ विशेष नहीं मिला, इसलिए ये अफवाह फैलाई गई कि उन्हें क्लीन चिट मिल गई, जबकि सत्य इससे कोसों दूर था।इसी बीच जिस आंदोलन से अरविंद केजरीवाल की उत्पत्ति हुई थी, उसी आंदोलन के प्रणेता अन्ना हज़ारे ने केजरीवाल को खरी खोटी सुनाते हुए एक सार्वजनिक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने कहा, “आपके मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार मैं आपको खत लिख रहा हूं। पिछले कई दिनों से दिल्ली राज्य सरकार की शराब नीति के बारे में जो खबरें आ रही हैं, उन्हें पढ़ कर बड़ा दुख होता है।”
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उन्होंने इस पत्र में अरविंद केजरीवाल की पुस्तक ‘स्वराज’ का उल्लेख करते हुए कहा, “आपने किताब में कितनी आदर्श बातें लिखी थी, तब आप से बड़ी उम्मीद थी। लेकिन ऐसा लगता है राजनीति में जाकर मुख्यमंत्री बनने के बाद आप आदर्श विचारधारा को भूल गए हैं। इसलिए दिल्ली में आपकी सरकार ने नई शराब नीति बनाई, जिससे शराब की बिक्री और शराब पीने को बढ़ावा मिल सकता है। गली-गली में शराब की दुकानें खुलवाई जा सकती हैं, इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है, यह बात जनता के हित में नहीं है।”
Anna Hazare writes to Delhi CM Kejriwal over New Liquor Policy
"Had expected a similar policy(like Maharashtra's). But you didn't do it.People seem to be trapped in a circle of money for power&power for money. It doesn't suit a party that emerged from a major movement,"he writes pic.twitter.com/4yTvc0XI5K
— ANI (@ANI) August 30, 2022
अन्ना हज़ारे ने आगे लिखा, “जब 10 साल पहले 18 सितंबर, 2012 को दिल्ली में टीम अन्ना के सदस्यों की मीटिंग हुई थी, उस वक्त आपने राजनीतिक रास्ता अपनाने की बात रखी थी। लेकिन आप भूल गए कि राजनीतिक पार्टी बनाना हमारे आंदोलन का उद्देश्य नहीं था। उस वक्त ‘टीम अन्ना’ के बारे में जनता के मन में विश्वास पैदा हुआ था। इसलिए मेरी सोच थी कि ‘टीम अन्ना’ का देश भर में घूम कर लोक-शिक्षण और लोक-जागृति का काम करना जरूरी है। अगर इस दिशा में काम होता तो कही पर भी शराब की ऐसी गलत नीति नहीं बनती।”
इस पत्र में स्पष्ट दिख रहा था कि गुरु अपने शिष्य के नैतिक पतन से कितना रुष्ट और आक्रोशित हैं। परंतु ग्लानि तो छोड़िए, उल्टे “शिष्य” ने अपने गुरु को ही शत्रु का सहयोगी ठहरा दिया। अरविंद केजरीवाल के जो बयान सामने आए, उनकी निर्लज्जता देखते हुए आप भी बोल उठेंगे कि यह कैसा इंसान है? केजरीवाल के कहा, “भाजपा उन्हें निशाना बनाने के लिए अन्ना हजारे का इस्तेमाल कर रही है। डिप्टी सीएम सिसोदिया को सीबीआई ने अनौपचारिक रूप से क्लीन चिट दे दी लेकिन एक हफ्ते या 10 दिनों में राजनीतिक दबाव में गिरफ्तार कर लिया जाएगा।” इतनी निर्लज्जता से तो शायद लालू यादव एवं नीतीश कुमार ने जयप्रकाश नारायण अथवा जवाहरलाल नेहरू ने मोहनदास करमचंद गांधी का साथ भी नहीं छोड़ा होगा परंतु यह तो अरविंद केजरीवाल हैं। जिनके लिए इनके आम आदमी पार्टी के सह संस्थापक ही किसी योग्य नहीं थे तो फिर अन्ना हज़ारे की क्या बिसात?
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