परिवार्तन संसार का नियम है पर यह परिवर्तन गांधी-नेहरू परिवार के सामने आकर तनिक लचर सा हो जाता है। यह ऐसे ही नहीं कहा जा रहा है। जिस देश की स्वतंत्रता के नायकों के नाम पर अभी तक प्रमुख एयरपोर्टों के नाम नहीं रखे गए उस देश में आपातकाल लगाने वालीं इंदिरा गांधी और उनके बेटे राजीव गांधी के नाम पर प्रमुख एयरपोर्टों के नाम दर्ज़ हैं ऐसे में सरकार जिस प्रकार एम्स को नाम देने में जुट चुकी है तो उसे इस बात पर भी नज़र डालनी होगी कि, जनता को इंदिरा, राजीव और अन्य गांधीवादी एयरपोर्टों के बीच उड़ने से बचाएं।
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मोदी सरकार में मिली पहचान
दरअसल, मोदी सरकार ने क्षेत्रीय नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों, ऐतिहासिक घटनाओं या क्षेत्र के स्मारकों या उनकी विशिष्ट भौगोलिक पहचान के आधार पर दिल्ली सहित सभी एम्स को विशिष्ट नाम देने का प्रस्ताव तैयार किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा इस मामले में उनसे सुझाव मांगे जाने के बाद चिकित्सा विज्ञान (एम्स) ने नामों की एक सूची सौंप दी है। इसके बाद चालू, आंशिक रूप से चालू या निर्माणाधीन सभी 23 एम्स अपने-अपने क्षेत्र के हिसाब से वहां के नामी नायक, स्वतंत्रता सेनानी, उस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक पहचान दिलाने वाली हस्ती के नाम से जाने जायेंगे।
इस संबंध में, विभिन्न एम्स को विशिष्ट नाम निर्दिष्ट करने के लिए सुझाव मांगे गए थे। जिन्हें स्थानीय या क्षेत्र से जोड़ा जा सकता है। वहां के नामी नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों, उस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक पहचान जहां संस्थान स्थित है इस आधार पर नाम मांगे गए थे। इन प्रमुख स्वास्थ्य संस्थानों में से अधिकांश ने तीन से चार नामों का सुझाव दिया है। छह नए एम्स- बिहार (पटना), छत्तीसगढ़ (रायपुर), मध्य प्रदेश (भोपाल), ओडिशा (भुवनेश्वर), राजस्थान (जोधपुर) और उत्तराखंड (ऋषिकेश) को पहले चरण में मंजूरी दी गई थी। 2015 और 2022 के बीच स्थापित 16 एम्स में से 10 संस्थानों में एमबीबीएस कक्षाएं और आउट पेशेंट विभाग सेवाएं शुरू की गई हैं, जबकि अन्य दो में केवल एमबीबीएस कक्षाएं शुरू की गई हैं। शेष चार संस्थान विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
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एम्स के साथ ही एयरपोर्ट के नाम पर भी विचार करना चाहिए
अब यह काम तो वो है जो होना बेहद ज़रूरी था क्योंकि एम्स किसी भी क्षेत्र में बनना उसके लिए उपलब्धि से कम नहीं होता। वहां रोजगार का सृजन होने के साथ उससे जुडे कई राज्यों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है जो किसी भी भारतीय की मूल आवश्यकता है। लेकिन अब सरकार को जिस बात पर ध्यान आकर्षित करने की ज़रुरत है कि जो एयरपोर्टों के नाम एक परिवार तक सीमित रह गए हैं इनका भी नामकरण फिर से किया जाए। जिस देश में अब तक महात्मा गांधी के नाम पर एक एयरपोर्ट नहीं बना उस देश में परिवारवादी तंत्र ने एक ही परिवार से दो एयरपोर्ट वो भी नामी एयरपोर्ट, के नाम रख दिए हों तो यह लोभी राजनीति का प्रत्यक्ष उदाहरण है जिसका परिचय देशभर में सैंकडों स्थानों का नाम इसी गांधी परिवार के नाम पर रखकर जता दिया है।
अब आवश्यकता है कि सरकार शीघ्र-अतिशीघ्र इस संदर्भ में भी निर्णय लेते हुए गांधी परिवार के गैर ज़रूरी कामों और नामों वाली राजनीति पर हथौडा चलाकर नाम परिवर्तित करें। अब अंतिम रूप से जनता यही कह रही है कि प्रिय मोदी जी, हमें इंदिरा, राजीव और अन्य गांधीवादियों के नामों और उनके नाम वाले एयरपोर्टों के बीच उड़ने से बचा लीजिये।
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