कुछ जख्म ऐसे होते है, जो समय के साथ भी नहीं भर पाते है। ऐसे ही जख्म दिल्ली को दो वर्ष पहले मिले थे, जब देश-विरोध तत्वों के द्वारा राजधानी को दंगों की आग में झोंकने का काम किया। नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन ने फरवरी 2020 में भयंकर हिंसा का रूप ले लिया था। करीब तीन दिन तक उत्तरी पूर्वी दिल्ली की सड़कों और गलियों में खूनी हिंसा हुई। इस दौरान कई लोगों ने अपने परिजनों को खोया, साथ ही ना कितने घर दंगों की आग की चपेट में आ गए थे। दिल्ली दंगों को दो वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है, परंतु अब तक पीड़ित परिवार इंसाफ के इंतजार में बैठे है।
हालांकि दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने एक ऐसा निर्णय लिया, जिसके बाद हिंसा के पीड़ितों लोगों में जल्द न्याय मिलने की आस बढ़ने लगी है। दरअसल, उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने पीड़ितों के लंबित मुआवजे से जुड़े मामलों को तीन महीने के भीतर निपटाने का निर्देश दिया है। साथ ही उन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग (NEDRCC) की सहायता के लिए 40 और आकलनकर्ताओं की नियुक्ति को भी मंजूरी दी।
उपराज्यापाल की सख्ती से न्याय मिलने की उम्मीदें बढ़ी
दरअसल, दिल्ली में हुई हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग (NEDRCC) का गठन किया गया। उपराज्यपाल कार्यालय के अनुसार आयोग की सहायता के लिए अभी तक 14 आंकलनकर्ता कार्य कर रहे थे। परंतु मुआवजा देने का काम अभी तक काफी धीमी गति से चल रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार फरवरी 2020 के दंगा पीड़ितों द्वारा दायर किए गए कुल 2775 आवेदनों में से अब तक केवल 200 पर ही काम किया गया, जो कुल आवदेन का महज 7 फीसदी ही था। उपराज्यपाल ने इस पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और इसके साथ ही आंकलनकर्ताओं की संख्या में भी बढ़ोत्तरी कर दी।
अब उपराज्यपाल ने 40 और आंकलनकर्ताओं की नियुक्ति को मंजूरी दी, जिसके प्रश्चात संख्या बढ़कर 54 पहुंच गई। वहीं, क्षतिपूर्ति के मामलों को निपटाने के लिए अब तक कोई अंतिम समय सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। परंतु अब उपराज्यपाल ने निर्देश दिए है कि तीन महीने के भीतर इन मामलों का निपटारा किया जाए। इसके अलावा एक अधिकारी ने बताया कि उपराज्यपाल ने मौजूदा 14 आंकलनकर्ताओं को तीन सप्ताह के अंदर अपनी रिपोर्ट जमा करने को भी कहा है। अगर वो ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पाते, तो उनकी सेवाएं बंद कर जाएगी और साथ ही साथ उन्हें आगे भी पैनल के लिए उन्हें ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा। उपराज्यापाल जिस तरह से मुआवजा दिलाने के लिए सख्ती अपना रहे है, उससे पीड़ित परिवारों को जल्द न्याय मिलने की उम्मीदें बढ़ रही है।
इसके अलावा दिल्ली दंगों की साजिश रचने के आरोपों में जेल में बंद उमर खालिद की जमानत याचिका पर हाल ही में दोबारा से सुनवाई हुई थी। इस दौरान दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया कि शाहीन बाग में प्रदर्शन की कोई स्वतंत्र आंदोलन नहीं था और इसके पीछे देश विरोधी संगठनों का हाथ था।
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शाहीन बाग प्रदर्शन के पीछे का सच आया सामने
दिल्ली पुलिस ने शाहीन बाग प्रदर्शन की पूरी पोल खोल दी। दिल्ली पुलिस ने अदालत में उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए बताया कि “नागरिकता संशोधन कानून की विरोध की आड़ लेकर शाहीन बाग में जो प्रदर्शन शुरू हुआ था, वो कोई स्वभाविक या स्वतंत्र आंदोलन नहीं था।” दिल्ली उच्च न्यायालय में पुलिस द्वारा कहा गया कि शाहीन बाग को एक स्वभाविक प्रदर्शन स्थल के रूप में दिखाने की कोशिश की गई। परंतु यह कोई ऐसी स्थिति नहीं थी कि जहां बड़ी संख्या में लोग अचानक आए। यह एक बनाया गया प्रदर्शनस्थल था।
दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि इसके पीछे शाहीन बाग की दादी नहीं थीं। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) जैसे देश विरोधी संगठनों का शाहीन बाग प्रकरण में हाथ था। स्थानीय लोगों इन प्रदर्शनों के समर्थन में नहीं आए। वहीं इससे पहले एक अगस्त को खालिद की जमानत याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा था कि “CAA और NRC पर उसने अपने भाषणों के जरिए मुस्लिमों में डर पैदा करने की कोशिश की।” सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि “भाषण का पर्चा शरजील इमाम ने लिखा था, जिसमें यह बात निकली कि उनकी शिकायत CAA-NRC से नहीं थी, बल्कि इस पर भाषणों के जरिए इन लोगों ने मुसलमानों में भय पैदा किया।”
सितंबर 2020 को दिल्ली की जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को दिल्ली दंगों का षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तब से ही वो सलाखों के पीछे है। खालिद पर आरोप लगे है कि उसने लोगों को इकट्ठा करने, दंगे भड़काना, दंगों की पूर्व नियोजित षड्यंत्र रचने, भड़काऊ भाषण देने, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाया था। उमर खालिद के विरुद्ध गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज है और दिल्ली को दंगों की आग में झुलसाने के आरोपों में वो जेल में अपने गुनाहों की सजा काट रहा है।
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