“जिसके साथ नारायण हो, उसे किस बात की चिंता?” हमें कभी ये बातें बड़े बुजुर्गों के मुख से सुनने को मिलती थी परंतु इसे एक फिल्म ने एक अलग ही रूप में आत्मसात किया है और इसकी सफलता ने सभी समीकरण, सभी सिद्धांतों को फिर से छिन्न भिन्न कर दिया है, ठीक वैसे ही जैसे कुछ माह पूर्व एक अन्य फिल्म ने ऐसी ही विकट परिस्थितियों में किया था। इस लेख में हम कार्तिकेय 2 की अद्भुत सफलता से विस्तार से परिचित होंगे और यह भी जानेंगे कि कैसे उत्तर भारत में मात्र 50 स्क्रीन पर रिलीज होने के बावजूद इसकी सफलता ने सभी को चकित कर दिया है और आज यह फिल्म 100 करोड़ के भी पार पहुंच चुकी है।
हाल ही में कार्तिकेय 2 ने अविश्वसनीय प्रदर्शन करते हुए वैश्विक बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ पार कर लिए और घरेलू बॉक्स ऑफिस पर केवल हिन्दी उद्योग से उसने 20 करोड़ का अविश्वसनीय कलेक्शन किया। यदि विज्ञापन के खर्चे हटाएं जाएं तो यह फिल्म लगभग 15 करोड़ से कुछ अधिक के बजट पर बनी है। परंतु इस सफलता की राह इतनी सरल नहीं थी। अभिषेक अग्रवाल द्वारा निर्मित एवं चंदू मोंडेती द्वारा निर्देशित इस फिल्म में सनातन संस्कृति एवं द्वारका नगरी से जुड़े रहस्यों पर प्रकाश डाला है।
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मूल रूप से तेलुगु में बनी इस फिल्म को पहले 11 अगस्त को प्रदर्शित होना था पर किसी कारण से इसे 13 अगस्त से प्रदर्शित किया गया। इसे बहुभाषीय रूप में परिवर्तित कर हिन्दी समेत अन्य भाषाओं में भी रिलीज किया गया परंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस फिल्म को उत्तर भारत में लगभग 50 से कुछ अधिक स्क्रीन्स ही मिलें।
ऐसा इसलिए क्योंकि डिस्ट्रीब्यूटर के पास तब दो बड़ी बड़ी फिल्में थी- लाल सिंह चड्ढा और रक्षा बंधन। वे इस फिल्म के प्रति या तो अपने स्क्रीन देने को तैयार नहीं थे या फिर वे विवश थे और यह अभिषेक अग्रवाल के लिए कोई नई बात नहीं थी। जब मार्च में उनकी प्रथम हिन्दी प्रोजेक्ट ‘द कश्मीर फाइल्स’ सिनेमाघरों में आनी थी तो उसे भी पर्याप्त स्क्रीन देने को कोई तैयार नहीं था, क्योंकि उसी दिन प्रभास की ‘राधे श्याम’ भी सिल्वर स्क्रीन पर प्रदर्शित होने को तैयार थी।
परंतु वो कहते हैं न, प्रभु की इच्छा के आगे कोई क्या ही कर सकता है? न लाल सिंह चड्ढा की निपोरती हुई मुस्कान का प्रभाव पड़ा और न ही रक्षा बंधन के लेक्चरों को दर्शकों ने भाव दिया और वही कार्तिकेय 2 ने धीरे-धीरे अपने कंटेंट एवं सोशल मीडिया पर जन समर्थन के बल पर अपना प्रभाव बढ़ाना शुरु कर दिया। फिर क्या था, कार्तिकेय 2 के स्क्रीन एकाएक रॉकेट की रफ्तार से बढ़ने लगे। उत्तर भारत में जिस फिल्म को 50 स्क्रीन भी मुश्किल से प्राप्त हो रही थी, उसे केवल जनता की मांग पर 1000 से भी अधिक स्क्रीन उपलब्ध कराए गए यानी कि 300 प्रतिशत से अधिक की ग्रोथ। इसके लिए डिस्ट्रीब्यूटर ने लाल सिंह चड्ढा और रक्षा बंधन के शो हटाने में भी कोई संकोच नहीं किया क्योंकि वे फिल्में उनके लिए वैसे भी घाटे का सौदा सिद्ध हो रही थीं।
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। अभिषेक अग्रवाल द्वारा निर्मित द कश्मीर फाइल्स को भी इसी प्रकार का जन समर्थन मिला था। कार्तिकेय 2 की भांति न इसमें कोई तुष्टीकरण था, न ही कोई अपमानजनक संवाद। सीमित स्क्रीन और विकट परिस्थितियों के बाद भी इस फिल्म ने बड़ी बड़ी फिल्मों को धता बताया और 600 स्क्रीन पर प्रदर्शित होने के बाद भी इस फिल्म ने 15 करोड़ के बजट की तुलना में 350 करोड़ रुपये से अधिक का वैश्विक कलेक्शन किया। स्थिति तो यह हो गई कि इसी फिल्म के लिए एक समय पर 600 से लगभग 4000 से अधिक स्क्रीन तक बढ़ा दिए गए और बड़े से बड़े फिल्मों के समक्ष भी इसका प्रभाव कम नहीं हुआ। अब कार्तिकेय 2 भी ऐसे ही धूम मचा रही है।
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