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सरकार का बिजली संशोधन कानून, बिजली खपत के हमारे तरीके को सदैव के लिए बदल देगा

लोगों के बिजली बिल में फ़र्क दिखेगा साथ ही 'रेवड़ी कल्चर' भी ख़त्म होगा।

Deeksha Sharma द्वारा Deeksha Sharma
9 August 2022
in राजनीति
PM Narendra Modi

Source- TFI

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भारत में कुछ पार्टियां चुनाव जीतने के लिए फ्री पॉलिटिक्स करने में लगी हुई हैं। इसी कल्चर के कारण नेता और जनता, राज्य की बिजली पानी की  जरूरत से आगे न देखते हैं और न बढ़ते हैं। ऐसे में विकास तो कहीं थम ही जाता है क्योंकि आगे जाकर पार्टी केवल अपने बिजली और पानी के वादे को ही पूरा करती है और विकास केवल एक सपना बनकर रह जाता है। इसी को मद्देनजर रखते हुए हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्र सरकार जल्दी से जल्दी कुछ ऐसा करे कि पार्टियां चुनाव प्रचार में फ्री बिजली, पानी बांटना बंद कर दे। उसके बाद फिर क्या था, हमेशा से रेवड़ी संस्कृति के खिलाफ रही मोदी सरकार ने इस पर अमल करते हुए सदन में बिल भी पेश कर दिया।

सोमवार, 8 अगस्त को संसद में बिजली संशोधन बिल 2022 पेश किया गया। इस बिल के पीछे का मकसद है कंपनियों द्वारा बिजली प्रदान करने और जनता द्वारा इसका उपभोग करने के तरीके को बदलना। हालांकि, हमेशा की तरह इस बार भी विपक्ष की लगभग हर राजनीतिक पार्टी ने इस बिल का उग्र विरोध किया। इन विरोधी दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, वामपंथी दल, टीएमसी और डीएमके शामिल हैं। विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए ऊर्जा संबंधी संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया है। विपक्ष द्वारा इस बिल पर कड़ा विरोध करने के पीछे की असली वजह यह है कि यह विधेयक बिजली कंपनी के बाबुओं और उनके संरक्षक नेताजी के ‘आराम के दिन’ खत्म करने की ताकत रखता है। सरल शब्दों में संशोधन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बिजली उपभोक्ताओं के पास अपने वितरकों को चुनने के ढेरों विकल्प उपलब्ध हों।

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बढ़ेगी प्रतिस्पर्धा

विधेयक का उद्देश्य बिजली के निजीकरण की अनुमति देना है। यदि बिल दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो ग्राहकों के पास अपना बिजली आपूर्तिकर्ता चुनने का विकल्प होगा। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई टेलीफोन, मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं के लिए उस कंपनी को चुनता है जहां उसे अपना फायदा दिखता है उसी तरह उपभोक्ता बिजली आपूर्तिकर्ता को चुन सकता है। यह विधेयक लाइसेंसधारी के वितरण नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुंच की सुविधा के लिए धारा 42 में संशोधन करना चाहता है। प्रतिस्पर्धा को सक्षम करने, सेवाओं में सुधार के लिए वितरण लाइसेंसधारियों की दक्षता बढ़ाने और बिजली क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह किया जा रहा है।

इस बिल में वितरण नेटवर्क में अधिक समानता लाने के लिए विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 में संशोधन करने का प्रावधान है। संशोधन को प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो अंततः उपभोक्ताओं के लिए बेहतर सेवाओं की पहुंच के लिए अग्रणी है। अर्थात् यदि मार्केट में बिजली वितरक अधिक होंगे तो हर एक बिजली वितरक यह कोशिश करेगा कि उसके पास अधिक ग्राहक हो और उसके पास अधिक ग्राहक तभी होंगे जब वह दूसरे वितरकों से कुछ अलग, कुछ हटकर और कुछ बेहतर लाभ देगा। ऐसे में प्रतिस्पर्धा बिजली वितरकों के बीच होगी और लाभ जनता को मिलेगा। इसी तरह के लक्ष्यों को विद्युत अधिनियम की धारा 42 में संशोधन के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।

क्रॉस सब्सिडी (एक आम के दो दाम)

इस अधिनियम में धारा 60ए डालकर मोदी सरकार इस क्षेत्र में बिजली खरीद और सब्सिडी को सुव्यवस्थित करने का प्रयास कर रही है। वर्तमान में विभिन्न लोकलुभावन सरकारों ने इस क्षेत्र में क्रॉस सब्सिडी की समस्या पैदा कर दी है। क्रॉस सब्सिडी को खरीदारों के 2 सेटों के लिए मूल्य नीति में भिन्नता के रूप में परिभाषित किया गया है। आसान शब्दों में कहें तो उपभोक्ताओं के एक विशेष समूह को मुफ्त उपहार देने के लिए उपभोक्ताओं के दूसरे समूह से सामान्य से अधिक मूल्य वसूलना क्रॉस सब्सिडी कहलाता है। अगर बिल पास हो जाता है तो इस समस्या का समाधान हो जाएगा।

मुक्त बाजार और कानून के बीच संतुलन

यह बिल बिजली क्षेत्र में निजी कंपनियों के आने की राह आसान बनाता है। साथ ही यह बिल मुक्त बाजार और विधायी आदेशों के बीच संतुलन बनाता है। विद्युत अधिनियम की धारा 62 में संशोधन कर वर्षों से मोदी सरकार टैरिफ (अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगाया जाने वाला कर) के क्रमिक संशोधन को अनिवार्य करने की तैयारी में है। निजी कंपनियों के बिजली क्षेत्र में आने से मुफ्त बिजली के नाम पर वोट मांगने वाले राजनेताओं की दुकानें बंद हो जाएंगी। इसी कारण से राजनीतिक पार्टियां इसका कड़ा विरोध कर रही हैं। हालांकि, किसानी जैसे कामों के लिए कम दर पर या मुफ्त बिजली एक आवश्यकता है लेकिन पूरे शहर और राज्य को मुफ्त बिजली बांटना  राज्य के खजाने को नुकसान पहुंचा रहा है।

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कंपनियों का कर्ज

बिजली मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों के ऊपर बिजली उत्पादन कंपनियों का करीब 1 लाख करोड़ रुपये बकाया है। महाराष्ट्र पर बिजली उत्पादन कंपनियों के 21,656 करोड़ रुपये, तमिलनाडु पर 20,990 करोड़ रुपये, आंध्र प्रदेश पर 10,109 करोड़ रुपये तेलंगाना पर 7,388 करोड़ रुपये और राजस्थान पर 7,388 करोड़ रुपये बकाया है। ध्यान देने वाली बात है कि यह सभी समस्याएं इसलिए पैदा हुई हैं क्योंकि सरकारों ने अपने मतदाताओं को मुफ्त बिजली का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए नहीं कहा। उपभोक्ताओं को मुफ्त में बिजली बांटने के कारण ये राज्य बिजली कंपनियों के कर्जदार बन बैठे हैं लेकिन मोदी सरकार का यह नया बिल इस स्थिति को बदल कर रखा देगा। यह बिल इतना प्रभावशाली है कि इसने सारे विपक्ष को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया है। इस बिल की ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसका विरोध करने के लिए पूरा विपक्ष एकजुट होकर खड़ा है और मोर्चे की कमान आम आदमी पार्टी के नेता और ‘फ्री-पुरुष’ अरविंद केजरीवाल संभाल रहे हैं।

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