हेमंत सोरेन की सत्ता गई

सोरेन को जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है!

हेमंत सोरेन

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अपना पेट भरते-भरते नेता यह भूल जाते हैं कि आजकल तंत्र मजबूत है, पकडे जाने की संभावना भी उतनी ही प्रबल है और आज नहीं तो कल सबका हिसाब होना है। जिस झारखंड में हमेशा से खनन माफियाओं की ख़बरें आम हुआ करती थीं, आज उसी खनन विभाग के चक्कर में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में आ गई है। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के चक्कर में सोरेन की कुर्सी अब जाती दिख रही है और एक बार विधानसभा की सदस्यता रद्द होने के बाद उनके हाथ से सीएम की कुर्सी भी जाएगी और विधायक भी नहीं रह पायेंगे। चुनाव आयोग ने लगभग-लगभग सीएम सोरेन की सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया पूर्ण कर ली है। वहीं, चूंकि अंतिम निर्णय राज्यपाल का होता है इसलिए चुनाव आयोग ने अपनी रिपोर्ट बंद लिफाफे में राज्यपाल को भेज दी है।

दरअसल, चुनाव आयोग ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधायक के रुप में अयोग्य घोषित करने को मंजूरी दे दी है। चुनाव आयोग की राय सीलबंद पत्र में तय की जा चुकी है। बता दें, यह सब राज्यपाल की अनुशंसा पर की गई प्रक्रिया का भाग है। पहले खनन ठेके देने में कथित भ्रष्टाचार पर भाजपा द्वारा राज्यपाल को याचिका भेजी गई थी, जिसकी जांच के लिए राज्यपाल ने चुनाव आयोग से आग्रह किया था कि क्या यह विधायक के रूप में अयोग्य घोषित करने के अंतर्गत आता है? इसपर संवैधानिक रूप से जो चुनाव आयोग कहता है उसके अनुरूप अपनी रिपोर्ट तैयार की और राज्यपाल को भेज दी।

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ज्ञात हो कि भाजपा ने हेमंत सोरेन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने माइनिंग लीज आवंटन के क्रम में एक लीज अपने नाम पर भी आवंटित कराया था। भाजपा ने जब आपत्ति जताई तो हेमंत सोरेन ने इसे वापस कर दिया था। भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार बताते हुए ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मुद्दा उठाया और जन प्रतिनिदिथ्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए का हवाला देते हुए हेमंत सोरेने की सदस्यता खत्म करने की मांग की। इस संबंध में भाजपा ने गवर्नर से शिकायत की। जिस वक्त हेमंत सोरेन ने अपनी नाम खनन लीज आवंटित की थी उस वक्त खनन और वन मंत्री का पद हेमंत सोरेन के पास ही था।

संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत, किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन के किसी सदस्य की अयोग्यता से संबंधित कोई मामला आता है तो इसे राज्यपाल के पास भेजा जाता और उनका फैसला ही अंतिम होता है। इसमें कहा गया है, “ऐसे किसी भी मामले पर कोई निर्णय देने से पहले राज्यपाल निर्वचन आयोग की राय लेंगे और उस राय के अनुसार कार्य करेंगे।”

ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में ईडी ने खनन सचिव पूजा सिंघल को मनी लॉन्ड्रिंग के केस में गिरफ्तार किया था, पूजा ने ही खनन का लाइसेंस जारी किया था। ऐसे में गबन और भ्रष्टाचार की नींव तो ऐसे ही साफ़ हो जाती है क्योंकि सोरेन के साथ अब पूजा सिंघल भी कतार में आ गई हैं। दिलचस्प बात यह है कि हेमंत सोरेन को हुए इस आवंटन को उनके वकील ने अदालत में स्वीकार कर लिया था। कोर्ट में सीएम सोरेन का प्रतिनिधित्व कर रहे राज्य के महाधिवक्ता ने इसे ‘गलती’ करार दिया।

आपको बताते चलें कि इस मामले की शुरुआत तब हुई थी जब राज्य के पूर्व सीएम रघुबर दास ने हेमंत सोरेन पर इस गंभीर अवैधता का आरोप लगाते हुए राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की थी, जिसके बाद यह मामला अदालतों और राज्यपाल के समक्ष चल रहा है जो चुनाव आयोग की सलाह पर ही कार्रवाई कर सकते हैं। अब जो होना है वो यही है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अब न मुख्यमंत्री रहेंगे और न ही विधायक। जेल भी जाना पड़े तो कोई बडी बात नहीं है। ऐसे में झारखंड की राजनीतिक सरगर्मियां अब उफान पर हैं। सरकार गिरेगी या सोरेन परिवार से ही कोई नया व्यक्ति आकर मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान हो जाएगा, यह समय बताएगा। फ़िलहाल के लिए तो हेमंत सोरेन OUT हो चुके हैं।

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