आतंकवाद भी काफी मैच्योर हो चुका है! बात अब 9/11, 26/11 जैसे बड़े बड़े हमलों तक नहीं रही, अब छोटे छोटे पर डरावने आघातों से भी संदेश पहुंचाए जा सकते हैं! जगह कोई भी हो, आघात किसी पर हो परंतु उद्देश्य केवल एक – आतंक और इसका सबसे वर्तमान उदाहरण है चर्चित लेखक सलमान रुश्दी पर हुआ हमला। रुश्दी को उनके 33 वर्ष पुराने काम के लिए अब भी प्रताड़ित किया जा रहा है और अब तो बात उनकी जान पर बन आई है। इस लेख में हम उस व्यक्ति के बारे में जानेंगे, जिसकी कुत्सित मानसिकता और चाटुकारिता के कारण सलमान रुश्दी का भाग्य वर्षों पूर्व ही तय हो चुका था, उस व्यक्ति का नाम था- राजीव रत्न गांधी।
हां जी, चकित मत होइए, इस कथा में उतनी ही सत्यता है, जितनी पूर्व से सूर्योदय में। बात 1980 के अंत की है, जब सलमान रुश्दी अपने लेखनी के करियर के चरमोत्कर्ष पर थे। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी थी और अपने जन्मस्थल, भारत पर आधारित मिडनाइट्स चिल्ड्रन के लिए उन्हें बुकर पुरस्कार भी मिला था। इसी बीच उन्होंने पाकिस्तान में चल रहे राजनीतिक तनातनी पर आधारित ‘शेम’ भी प्रकाशित करवाई, जो मामूली अंतर से बुकर पुरस्कार जीतते जीतते रह गई थी।
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परंतु इन सब का राजीव गांधी से क्या लेना देना? उन्होंने ऐसा क्या किया जिसके कारण आज सलमान रुश्दी जीवन और मृत्यु के बीच अधर में हैं? यह बात है 1988 की, जब सलमान रुश्दी ने अपनी सबसे अनोखी पुस्तक प्रकाशित की, जिसके बारे में आज भी चर्चा करने से लोग कतराते हैं और जो एक बार फिर मामूली अंतर से बुकर प्राइज़ जीतते जीतते रह गई। इस पुस्तक का नाम था ‘द सैटनिक वर्सेज़’।
लेकिन इसमें ऐसा क्या था जिसके पीछे इतना तांडव मचा और जिसके पीछे पूरे संसार में रक्तपात का एक अनंत युग प्रारंभ हुआ? कहने को इसके कुछ छंद मुस्लिम कट्टरपंथियों को अप्रिय प्रतीत हुए, परंतु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है – ये आग किसने लगाई? क्या इसे सऊदी अरब ने प्रतिबंधित किया? नहीं, उन्हें तो तनिक भी अंतर नहीं पड़ा। क्या UAE ने प्रतिबंधित किया? बिल्कुल नहीं? यह महान कार्य हमारे भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया क्योंकि उनके अनुसार यह अल्पसंख्यकों की भावनाओं को आहत करती थी और सांप्रदायिकता को भड़काती थी।
बस, यहीं से सारा रायता फैलना प्रारंभ हुआ। राई का पहाड़ नहीं, हिमालय बनाया गया और फिर ईरान के कट्टरपंथी मौलवी अयातुल्लाह रूहोल्लाह खमेनी ने रुश्दी के विरुद्ध फतवा जारी कर दिया और इसके साथ ही जितने भी लोग उनके समर्थन में थे अथवा उनसे तनिक भी जुड़े हुए थे, उन सबके विरुद्ध फतवा जारी कर दिया। उदाहरण के लिए हितोषी ईगाराशी कांड को ही देख लीजिए, उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने सलमान रुश्दी की पुस्तक का जापानी में अनुवाद कर दिया था। जिसके बाद वर्ष1991 में कट्टरपंथियों ने उनके दफ्तर के निकट उनकी बर्बरता से हत्या कर दी।
आपको बताते चलें कि राजीव गांधी द्वारा उठाए गए इस कदम के कारण ही पूरी दुनिया में कट्टरपंथी सलमान रुश्दी के खिलाफ हो गए और उनसे जुड़े हर एक शख्स को निशाना बनाया गया। लेकिन आपको क्या प्रतीत होता है, क्या यहीं तक सीमित थे राजीव गांधी के कारनामे? यह वही राजीव गांधी थे, जिन्होंने शाह बानो जैसी एक निरीह महिला को उनके अधिकारों से वंचित करने और मुस्लिम कट्टरपंथियों को प्रसन्न रखने हेतु सुप्रीम कोर्ट तक के निर्णय को छिन्न भिन्न कर दिया था। यह वही राजीव गांधी थे, जिन्होंने फारूक अब्दुल्ला के साथ सांठ-गांठ कर कश्मीर को नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, जिसके बारे में स्वयं कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा ने निस्संकोच होकर अपने संस्मरणों में भी बताया है। उनके कर्मकांड लिखने के लिए कागज़ और शब्द कम पड़ जाएंगे, सलमान रुश्दी तो उदाहरण मात्र हैं।
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