HMT की घड़ी भारत में इतनी लोकप्रिय कैसे हुई थी?

विकल्पहीनता थी HMT की USP!

HMT

अधिकतर लोगों को घड़ी पहनने का शौक तो होता ही है। आज के समय में अगर आप मार्केट जाएंगे तो विभिन्न प्रकार के डिजाइन और अलग-अलग मूल्य में आपको हजारों घड़ियां बहुत आसानी से मिल जाएंगी परंतु पहले ऐसा नहीं था। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब केवल एक ही कंपनी की घड़ियां पूरे देश में राज कर रही थीं और एक या दो साल तक नहीं बल्कि तीन दशक तक इस कंपनी की घड़ी पूरे देश में छाई रही। उस दौर में मार्केट के 90 प्रतिशत हिस्से पर केवल उसका ही वर्चस्व था। जी हां, हम बात कर रहे हैं HMT (Hindustan Machine Tools) की घड़ियों की।

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HMT की घड़ियां मार्केट में छा गयीं

देश की धड़कन… इसी टैगलाइन के साथ HMT की घड़ियां मार्केट में छा गयीं। 1960 के दशक में HMT ने अपनी घड़ियां मार्केट में उतारी थीं और तीन दशकों तक यह घड़ियों के बाजार पर राज करती रही। हालांकि बदलते वक्त की रफ्तार के साथ HMT की कंपनी कदम नहीं मिला पायी और फिर एक समय ऐसा आया जब वो बहुत पीछे छूट गयी। जो घड़ी एक समय में पूरे भारत को समय बताती थी, वही HMT की घड़ियां समय के हाथों मात खा गयीं। आज HMT अर्श से फर्श पर पहुंच गयी।

सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (HMT)  की स्थापना वर्ष 1953 में की गयी थी। 1961 में इसकी सहायक इकाई के रूप में HMT वॉचेज की स्थापना हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की पहल पर इसकी शुरुआत हुई थी। उस दौरान प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था कि इससे देश के लोगों में पंक्चुअल होने का अनुशासन आएगा। HMT वॉचेज ने कलाई में पहनने वाली घड़ी यानी Wrist Watches के लिए जापान की सिटीजन वॉच कंपनी से समझौता किया। “जनता ब्रांड” के नाम से HMT की पहली घड़ी आयी और इसके बाद कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

बाजार में HMT की घड़ियां आते ही घर-घर में अपनी पहचान बनाने लगी थीं। उस दौर में इन घड़ियों की डिमांड इतनी अधिक हुआ करती थी कि इसे बनाने के लिए कई प्लांट लगाने पड़ गए। शुरुआत में तो HMT वॉचेज ने बेसिक मैकेनिकल वॉच ही बनाए थे, हालांकि बाद में वे ऑटोमैटिक वॉच भी बनाने लगी। HMT की घड़ियों को Timekeepers of the Nation के नाम से जाना जाता था। भारत में पहली बार क्वॉर्ट्ज की घड़ियां पेश करने का गौरव HMT को ही प्राप्त है।

HMT के बारे में एक बेहद ही दिलचस्प बात जो कही जाती है, वो यह थी कि इस घड़ी को खरीदा नहीं बल्कि कमाया जाता था। उस दौर में HMT की घड़ी को हाथ में पहनने से लेकर सूट की जेब में रखना शान माना जाता था, सूट में HMT की घड़ी रखना लोगों का फैशन सिंबल बन गया था। गांधी घड़ी (पॉकेट वॉच) को लोग अपने सूट की जेब में रखकर उसकी चेन को बाहर लटकाते थे। तब के समय में ऐसा चलन था कि किसी युवा ने अगर बोर्ड परीक्षा में टॉप किया तो उसे उपहार में HMT की घड़ी दी जाती थी। HMT की घड़ियों के बिना शादियां तक अधूरी मानी जाती थीं, तब शादियों में गिफ्ट के तौर पर HMT की घड़ी देने का काफी चलन था।

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ग्राहकों के पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था

HMT को इतने बड़े स्तर पर पसंद किए जाने के पीछे का एक और कारण था वो यह कि कंपनी ने अपने कई मॉडल के नाम कुछ ऐसे रखे थे जो लोगों को भावनात्मक तरीके से जोड़ते थे। HMT के मॉडल्स के नाम कुछ इस प्रकार होते थे जो अक्सर ही लोगों की जुबान पर चढ़े रहते हैं जैसे कि जनता, तरुण, प्रिया, नूतन, निशांत और कोहिनूर। शोरूम में उस दौरान 350 रुपये से लेकर सात हजार तक की घड़िया हुआ करती थीं। इन घड़ियों के लिए तब आर्मी कैंटीन में भी लोग काफी लंबा इंतजार करते थे। फिर एक समय ऐसा आया जब HMT की घड़ियों को पुराने जमाने की तकनीक माना जाने लगा।

1995 से 2000 तक रानीबाग इकाई में जी-10 नाम से ऐसी घड़ियां भी बनीं जिनमें सोने का बिस्कुट लगाया गया जो 11 हजार रुपये में उपलब्ध थीं। इनकी सुई के नीचे छोटा सा सोने का बिस्कुट लगा था। एचएमटी कर्मी सुनील डोभाल के अनुसार ये घड़ियां तुरंत बिक गयी थीं।

देखा जाए तो HMT की घड़ियों में कोई ऐसी खास बात नजर नहीं आती थी बल्कि इनका डायल काफी बड़ा होता था। यही कारण है कि एक समय पर यह पुराने जमाने वाली घड़ी लगने लगी थी। ध्यान देने वाली बात है कि HMT के दबदबे का कारण यही था कि बाजार में कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था जिसके कारण हर कोई HMT की तरफ आकर्षित होता था। विकल्प की कमी के कारण ही HMT कई दशकों तक भारत में राज करती रही। उदाहरण के तौर पर आप स्कूटर को ही ले सकते है, पुराने जमाने के ‘चेतक’ स्कूटर तो आपको याद ही होंगे, 70 से 80 के दशक में चेतक स्कूटर का अलग ही जलवा हुआ करता था। बजाज चेतक मिडिल क्लास परिवारों की पहली पसंद हुआ करता था, लोगों के घर पर चेतक का खड़ा होना एक स्टेटस सिंबल बन गया था। इसके पीछे का कारण यह नहीं था कि बजाज चेतक बहुत अच्छा स्कूटर थे। असल वजह यह थी कि लोगों के पास इसके अलावा अन्य विकल्प ही नहीं थे। समय बदला और फिर एक से बढ़कर एक स्कूटी मार्केट में आयीं।

ऐसा ही कुछ HMT के साथ भी था, विकल्प नहीं होने के कारण उस दौर में लोग HMT की घड़ियों को ही खरीदा करते थे। फिर वर्ष 1991 में उदारीकरण का दौर आया, पीवी नरसिम्हा राव ने देश में आर्थिक बदलाव किए, नरसिम्हा राव की सरकार ने लाइसेंस राज को खत्म कर दिया। लाइसेंस राज के दौरान किस वस्तु का कितना उत्पादन होगा, किस सामान के उत्पादन में कितने लोग काम करेंगे, उनकी कीमत कितनी होगी, यह सबकुछ पहले सरकार तय किया करती थी। राव की सरकार द्वारा लाइसेंस राज को खत्म करने पर निजी कंपनियों के लिए अवसर खुले। भारत में व्यापार करना आसान हुआ, नयी कंपनियां बिजनेस के लिए भारत की ओर आने लगीं। देश में आर्थिक उदारीकरण के जोर पकड़ते ही HMT के बुरे दिनों की पटकथा शुरू हो गयी थी और साथ ही उसका एकाधिकार भी खत्म हुआ। लोगों को घड़ियों में अधिक विकल्प मिलने लगे, टाइटन जैसी कंपनियां मार्केट में उतर आयीं जिसके बाद धीरे-धीरे HMT का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। फिर भारी कर्ज और कम मुनाफे ने HMT को पूरी तरह से खत्म करके रख दिया। आज HMT समाप्त हो चुकी है। 2016 में कंपनी के आखिरी प्लांट पर ताला लगाया था तब HMT भारी कर्ज के बोझ तले बुरी तरह से दबी हुई थी।

तमाम निजी और विदेशी कंपनियों ने लोगों की पसंद और सहूलियत को ध्यान में रखकर अलग-अलग तरह की घड़ियां मार्केट में उतारीं जिनका मुकाबला करने में HMT नाकाम साबित हुई और यही उसके पतन का करण था। आज आप देखेंगे कि घड़ियों का बाजार सजा पड़ा है। घड़ी लेने मार्केट में आएंगे तो कई शानदार डिजाइन की एक से बढ़कर एक घड़ियां आपको मिल जाएंगी। घड़ियां अब केवल समय बताने तक ही सीमित नहीं रह गयी हैं बल्कि आज स्मार्ट वॉच का चलन भी काफी बढ़ रहा है जो तमाम तरह के फीचर्स से लैस होती हैं। वर्तमान समय में युवा विशेष रूप से स्मार्टवॉच की तरफ आकर्षित होते दिखायी देते हैं।

HMT की अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी के बारे में बात करते हुए टाइटन के प्रबंध निदेशक भास्कर भट्ट ने कहा था कि HMT यह समझने में नाकाम रही कि घड़ी अब केवल समय देखने के लिए ही काम नहीं आती बल्कि इसके साथ ही यह महिलाओं और पुरुषों के लिए एक फैशन एक्सेसरी भी बन गयी है। उपभोक्ताओं को ऐसे उत्पाद पसंद आते हैं जिन्हें अच्छे से डिजाइन किया गया हो, जो उनकी स्टाइल से मेल खाते हों।  बनावट मार्केटिंग में बड़ी भूमिका निभाती है।

HMT ने अपने समय में एक लंबी अवधि तक राज किया लेकिन आज वही HMT केवल कहानी बनकर रह गयी है। किस्से-कहानियों में तो HMT जरूर मौजूद है। वर्तमान में भी आपको कुछ घरों में HMT की घड़ियां देखने को मिल सकती हैं परंतु देखा जाए तो उदारीकरण के युग ने HMT को पूरी तरह से खत्म करके रख दिया। बदलते वक्त के साथ HMT स्वयं को ढाल नहीं पायी और यही उसके पतन का कारण भी बना।

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