‘मजबूरी का नाम महात्मा गांधी’ कहावत यूं ही नहीं कहा जाता है, यह कूटनीति की ऐसी दुविधा को दर्शाता है, जो भारत को न चाहते हुए भी निभानी पड़ती है। ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब भारत को उन देशों के साथ भी सभ्य होना पड़ता है जिनका अस्तित्व और सभ्यता, दोनों एक लाइन में कभी फिट ही नहीं हो सकते। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे पीएम मोदी ने कूटनीति के माध्यम से पाकिस्तान को उसी के चाल में उलझा दिया है और उसे कहीं का नहीं छोड़ा है।
हाल ही में अखंड भारत के पाकिस्तानी भाग में गजब विपदा आई। बीते 10 दिनों में यहां जो मूसलाधार बारिश हुई है, उसकी वजह से 30 वर्षों के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। अब तक यहां 1100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, 10 लाख से ज्यादा लोग अपने घरों को खो चुके हैं। इस बाढ़ का असर पाकिस्तान के 3 करोड़ लोगों पर पड़ा है। बाढ़ से सिर्फ पाकिस्तान के लोगों को ही फर्क नहीं पड़ा है बल्कि पशुओं की भी हालत खराब है। अब तक 7 लाख से ज्यादा पशुओं की मौत इस बाढ़ की वजह से हो चुकी है।
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अब ऐसी मुसीबत की घड़ी में मरता पाकिस्तान क्या न करता, सहायता की याचना लेकर पहुंच गया भारत के द्वार। ध्यान देने वाली बात है कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के भारत के फैसले के बाद पाकिस्तान ने अगस्त, 2019 में भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को सीमित कर दिया था। पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल ने हाल ही में कहा कि उनकी सरकार भारत से सब्जियों और अन्य खाद्य वस्तुओं के आयात पर विचार कर सकती है।
इसी बीच हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने ट्वीट करते हुए कहा, “पाकिस्तान में बाढ़ से हुए विनाश से मैं काफी उदास हूं और मैं उन सभी लोगों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं, जिन्होंने अपने परिवार खोए हैं, जो घायल हुए हैं या जिन्होंने इस आपदा में अपना घर बार खोया है!” परंतु जो दिखता है, आवश्यक नहीं की वही हो। पीएम मोदी के ट्वीट के कुछ समय बाद ये सामने आया कि पाकिस्तान कोई भी प्रयास कर ले परंतु व्यापार तो संभव नहीं है। CNN न्यूज 18 के रिपोर्ट अनुसार, “हमारे पास भारत में पाकिस्तान से आए लगभग 50 विदेशी आतंकवादियों की रिपोर्ट है। कई आतंकी सीमा के पास बैठे हैं। हम व्यापार वार्ता के लिए खुले हैं लेकिन उससे पहले पाकिस्तान को तुरंत कार्रवाई करने और आतंकवाद को रोकने की जरूरत है।”
परंतु यह कोई प्रथम अवसर नहीं है जब पाकिस्तान ने भारत के साथ अपने संबंध पहले जैसे करने के प्रयास किए हो और मुंह की खाई हो। कुछ माह पूर्व पाकिस्तानी विदेश कार्यालय के प्रवक्ता असीम इफ्तिखार ने कहा, “चीन ब्रिक्स बैठकों से पहले पाकिस्तान के साथ जुड़ा हुआ मेजबान देश है, जहां गैर-सदस्यों को निमंत्रण देने सहित सभी ब्रिक्स सदस्यों के साथ परामर्श के बाद निर्णय लिए जाते हैं।”
यही नहीं, इस्लामाबाद ने भारत का नाम लिए बिना कहा, “अफसोस की बात है कि एक सदस्य ने पाकिस्तान की भागीदारी को अवरुद्ध कर दिया।” विदेश मंत्रालय ने कहा, “दुखद है कि ब्रिक्स के एक सदस्य देश ने संवाद में भाग लेने से पाकिस्तान को रोक दिया। हमें विश्वास है कि समूह के आगामी फैसले समावेशिता पर आधारित होंगे। इसमें विकासशील दुनिया के हितों का ध्यान रखा जाएगा और वह संकीर्ण भूराजनीतिक विचारों से रहित होगा।”
अब इसका अर्थ क्या है? भले ही पाकिस्तान ने स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा लेकिन पाकिस्तानी मीडिया ने सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि वह देश भारत ही था, जिसने BRICS जैसी संस्था में पाकिस्तान की भागीदारी को अवरुद्ध कर दिया। ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि पाकिस्तान अब न घर का रहा, न घाट का और अब तो पीएम मोदी ने अपनी बेजोड़ कूटनीति से ये भी स्पष्ट कर दिया है कि भीख चाहिए तो ले लो पर ‘आतंक’ के रहते व्यापार संभव नहीं।
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