बचपन में खेले गए खो-खो, गिल्ली डंडा जैसे खेल उन खेलों की लंबी सूची में शामिल हैं जिन्हें शायद आज गिने चुने बच्चे ही जानते हैं. बीते कई वर्षों से भारत के खिलौना बाज़ार में केवल बार्बी गुड़िया, एवेंजर और स्पाइडरमैन जैसे खिलौने ही राज करते आये हैं लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम के कारण यह काफी हद तक बदल गया है. अब बाजार में बार्बी और स्पाइडरमैन जैसे विदेशी खिलौनों की जगह लट्टू, विक्रम बेताल जैसी कहानियों के किरदारों ने लेना शुरू कर दिया है. ये कुछ ऐसी खेल कहानियां हैं जिन्हें खेलते और सुनते हुए हमारा बचपन बीता है. हालांकि, मार्केट में विदेशी खिलौनों की चकाचौंध में जैसे ये खिलोने कहीं गायब ही हो गए थे लेकिन अब एक बार फिर से इनकी जबरदस्त वापसी हुई है.
केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में खिलौनों के आयात को कम कर घरेलू खिलौने बनाने वाले उद्योगों को ऐसे खिलोने बनाने के लिए कहा जो भारतीय संस्कृति और भारत के विभिन्न क्षेत्रों से लोकप्रिय विषयों को दर्शाते हैं. केंद्र के कहने भर की देर थी और स्थानीय खिलाड़ी काम पर लग गए. मनकाला (दक्षिण भारत विशेष रूप से तमिलनाडु और केरल में खेला जाने वाला एक पारंपरिक प्राचीन खेल), ‘बकरियां और बाघ’ (‘बाघचाल’ नाम का खेल) जैसे पारंपरिक खेलों को बाजार में उतारा गया. यहां तक कि बच्चों को खो-खो और कबड्डी जैसे बाहर खेले जाने वाले खेलों के संक्षिप्त संस्करण व्यवस्थित करवाने पर भी काम चल रहा है. लैगोरी गेम (जिसे पिट्ठू ग्राम के नाम से भी जाना जाता है), स्पिनिंग टॉप और गिल्ली डंडा जैसे खेल भी अब मार्केट में उपलब्ध हैं.
हिन्दू त्योहारों जैसे जन्माष्टमी के लिए विशेष रूप से बाल गोपाल के खिलौने, कहानियां और दीपावली के अवसर पर भगवान श्रीराम पर आधारित खिलौने और कहानियां भी बाजार में उतारी गयीं और इन्हें बिकने में अधिक समय नहीं लगा. अमेरिकी बहुराष्ट्रीय समूह हैस्ब्रो और भारतीय खिलौना निर्माण कंपनी फनस्कूल भी अब अपना ध्यान उन खेलों के निर्माण में लगा रहे हैं जो भारतीय इतिहास और संस्कृति से जुड़े हुए हों.
कितना बड़ा है खिलौना उद्योग?
इन्वेस्ट इंडिया के अनुसार, भारत में खिलौना उद्योग 1.5 बिलियन डॉलर यानी वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का 0.5% होने का अनुमान है. हालांकि, भारत का खिलौना निर्माण उद्योग काफी खंडित है, जिसमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में स्थित 4,000 से अधिक खिलौना निर्माण इकाइयां शामिल हैं. खिलौने बनाने वाले एमएसएमई पूरे देश में फैले हुए हैं, कुल विनिर्माण इकाइयों में से लगभग 88 फीसदी उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में स्थित हैं. यदि इन्हें थोड़ा व्यवस्थित किया जाये तो ये न केवल अधिक उत्पादन करेंगे बल्कि रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करेंगे.
भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) खिलौने तथा वीडियो गेम कंसोल सहित इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों के लिए एक प्रमुख निर्यात केंद्र बनने की क्षमता है, जिनकी वैश्विक खिलौने और गेम बाजार में उच्च मांग है. भारत दुनिया भर के लगभग 129 देशों को खेल के सामान और खिलौनों का निर्यात करता है. भारत के प्रमुख खिलौना निर्यात स्थलों में यूएसए, यूके, जर्मनी, मैक्सिको और नीदरलैंड शामिल हैं. भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक वैश्विक खिलौना निर्यात का 2% हिस्सा प्राप्त करने का है. भारत के बनाये प्लास्टिक के खिलौने और बोर्ड गेम, यूरोप, मध्य-पूर्व और अमेरिका के देशों में निर्यात करने की अपार संभावनाएं हैं.
कैसे सरकार कर रही है सहायता?
भारत सरकार ने जिला स्तर पर खिलौनों के निर्यात को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई है. वाणिज्य मंत्रालय के मार्गदर्शन में, राज्य सरकारें अपने संबंधित खिलौना समूहों में खिलौना निर्माण इकाइयां स्थापित करने के लिए वैश्विक खिलौना निर्माताओं को स्थान और सुविधाएं दे रही हैं. हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रेटर नोएडा में खिलौना निर्माण केंद्र स्थापित करने के लिए 100 एकड़ भूमि को मंजूरी दी थी. इसी तरह कर्नाटक सरकार ने कोप्पल में देश का पहला खिलौना निर्माण क्लस्टर स्थापित करने के लिए 400 एकड़ एसईजेड भूमि (विशेष आर्थिक क्षेत्र) को अधिकृत किया. भारत सरकार बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने, आयात को कम करने और वैश्विक खिलौना निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए स्टार्ट-अप और उद्यमियों को प्रोत्साहित कर रही है.
इसके अलावा, सरकार ने कुछ चीनी उत्पादों को प्रतिबंधित करने सहित देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं. केंद्र सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ पहल ने सफल परिणाम देना शुरू कर दिया है और अब सरकार ने बताया है कि पिछले तीन वर्षों में भारत में खिलौनों के आयात में 70% की कमी आई है और निर्यात में 61% की वृद्धि हुई है. उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के अतिरिक्त सचिव अनिल अग्रवाल ने बताया कि भारतीय खिलौना कारोबार ने 96 प्रदर्शकों को ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों के साथ आकर्षित किया है जो छोटे, मध्यम और बड़े उद्यमों द्वारा घरेलू स्तर पर निर्मित होते हैं.
आपको बताते चलें कि इस समय विश्वभर में चीन सबसे बड़ा खिलौना निर्माता और निर्यातक है जबकि अमेरिका सबसे अधिक मात्रा में खिलौनों का आयात करता है. हालांकि, भारत एक खिलौना निर्माता और निर्यातक के रूप में काफी पीछे है लेकिन यदि कोशिशें ज़ारी रहीं तो भारत खिलौनों के शीर्ष तीन निर्यातकों में अपनी जगह बना सकता है.
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