आग लगी भी नहीं और धुआं उठ गया। कुछ ऐसा ही हाल इस समय वामपंथी मीडिया समूहों का है जब से उन्होंने यह सुना है कि NDTV अब अडानी का होने को है। यह स्थिति तब ऐसी है जब अडानी समूह ने हाल ही में एक निवेशक के माध्यम से NDTV में 29% हिस्सेदारी हासिल करने की तैयारी की घोषणा की है। अब जैसे ही खबर बाहर आयी वैसे ही भारतीय वामपंथी समूह और बाहर के भी समूहों का रुदन राग शुरू हो गया।
इन समूहों के अनुसार तो हमेशा से गौतम अडानी पीएम मोदी के मित्र रहे हैं जिन्होंने मिलकर देश को लूटा है। यह विचार केवल उन तक सीमित न रहे इसलिए अपने तथाकथित मीडिया समूहों के माध्यम से वो कल भी अनर्गल लिखते थे, आज भी लिखते हैं और आगे भी लिखते रहेंगे। हालिया उदाहरण है वाशिंगटन पोस्ट का जिसका स्वामित्व अमेज़न के मालिक जेफ बेजोस के पास हैं।
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बिलबिलाए हुए हैं कथित उदारवादी मीडियाकर्मी
दरअसल, हाल ही में अडानी समूह ने घोषणा की थी कि वे एक निवेशक के माध्यम से NDTV में 29% हिस्सेदारी हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। इसके बाद NDTV के प्रमोटर राधिका और प्रणय रॉय जैसे ही अधिग्रहण की बोली को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, कई कथित उदारवादी मीडियाकर्मी अडानी समूह को एक दानव के रूप में चित्रित करने में लगे हुए हैं। भारतीय तो भारतीय वो पत्र-पत्रिका, ऑनलाइन पोर्टल भी बेलगाम होकर अडानी समूह को ऐसे कोस रहे हैं जैसे उनकी कोई व्यक्तिगत खीज हो।
इस क्रम में सबसे मुखर वाशिंगटन पोस्ट था जिसके मालिक जेफ बेजोस हैं। वाशिंगटन पोस्ट पर छापे गए हालिया लेख पर ध्यान दें तो, NDTV पर अडानी समूह का दावा कैसे अनैतिक है इस पर ही आधारित यह लेख अपने शीर्षक से ही आधी बातें बता रहा है। लेख बताता है कि कैसे वाशिंगटन पोस्ट कोई पत्रकारिता नहीं खुन्नस निकालने वाला काम कर रहा है।
लेख के लिए वाशिंगटन पोस्ट ने जिस शीर्षक को चुना वो था, “भारत में स्वतंत्र मीडिया के लिए खौफ, टायकून की आंख मुख्य न्यूज़ चैनल पर।” वहीं उन्होंने इसे सोशल मीडिया पर जो कैप्शन देकर साझा किया वो था, “एशिया के सबसे अमीर आदमी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोगी गौतम अडानी ने NDTV के लिए एक शत्रुतापूर्ण बोली लगायी, जो भारत के मीडिया परिदृश्य को नया रूप दे सकता है।”
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भारत को नीचा दिखाने की जैसे होड़ लगी है
न जाने वाशिंगटन पोस्ट यह कैसे भूल गया कि उसका स्वामित्व भी एक कारोबारी के पास है, अगर वो गौतम अडानी को खरी-खोटी सुना रहा है तो चार बातें उसके मालिक जेफ बेजोस पर भी लागू होंगी। यह वही वाशिंगटन पोस्ट है जिसे भारत से हमेशा नकारात्मक ख़बरें लेने की आपक रहती है। कोरोना में ही इस वाशिंगटन पोस्ट जैसे समूहों की पोल खुल गयी थी जब भारत को नीचा दिखाने की होड़ में वो फेक कॉन्टेंट प्रसारित करने लगा।
अब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। सिर्फ वाशिंगटन पोस्ट ही नहीं, कई अन्य तथाकथित अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने भी इसी तरह के दावों को हवा दी जिसमें ‘अडानी के NDTV के हिस्से लेने से भारतीय मीडिया की हालत लचर हो जाएगी’ जैसे दावे किये गये। अडानी द्वारा लगायी गयी बोली को ‘तथाकथित’ स्वतंत्र मीडिया पर हमला करने के लिए एक दुष्ट राजनीतिक-कॉर्पोरेट योजना के रूप में चित्रित करने की कोशिश की जा रही है। तथ्य यह है कि NDTV लंबे समय से एक फेक कॉन्टेंट पेडलर, एजेंडा संचालित, वामपंथी समूह हो चुका है जिसका आसानी से उसका वामपंथी रंग छूट नहीं रहा है।
यूके संचालित द गार्जियन ने एक लेख चलाया, जिसका शीर्षक था, “मोदी के सहयोगी अदानी द्वारा NDTV में 29% खरीदने के बाद भारत में मीडिया की स्वतंत्रता का डर।”
मतलब कुछ भी हो रहा हो पीएम मोदी से नीचे यह समूह बात तक नहीं करते हैं। 25 अगस्त को एक और ऐसे ही कुंठित समूह रॉयटर्स में प्रकाशित एक लेख में लिखा गया था, “भारत के सबसे अमीर आदमी द्वारा NDTV का अधिग्रहण पत्रकारों को चिंतित करता है।” अडानी को मोदी सरकार की कुछ दुष्ट कॉर्पोरेट शाखा के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे खोखले दावों के द्वारा किये गये हताश प्रयासों से पता चलता है कि कैसे वामपंथी मीडिया घराने अपने पाठकों को भ्रामक दावों के साथ भ्रमित करने की कोशिश करते हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य ही यह होता है कि पाठक तो मसालेदार खबर के लिए आतुर ही रहता है, ऐसे में खबर तथ्यपरक हो या न हो क्या फर्क पडता है।
सत्य तो यह है कि ये सभी समूह वामपंथी सोच से उपजे, वामपंथी सरकारों से पोषण प्राप्त कर और प्रशिक्षण के नाम पर इन सभी ने निवेशकों को गरियाना और पीएम मोदी से उनकी नज़दीकियां निकलना ही सीखा है। इसी से इनका भरण-पोषण चलता है। शेष झूठ फैलाने की अपनी आदत से विवश ये समूह कभी नहीं सुधरेंगे यह भी तय मानिए।
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