‘मैं गरीब मुसलमान हूं’ राणा अय्यूब 2.0 बन गया है मोहम्मद जुबैर

इसे कहते हैं असली 'मास्टरमाइंड'

MHD jubair

Source- TFIPOST.in

कट्टरता के उपासक और सामाजिक सौहार्द के सबसे बडे दुश्मन भारत के वामपंथी पोर्टल इन दिनों जिस व्यक्ति को अपने प्लेटफार्म में विष प्रसारित करने के लिए दे रहे हैं। उससे साफ़-साफ़ प्रतीत हो रहा है कि कैसे अपनी रोटी चलाने के लिए यह लिबरल गुट झूठ को ऐसे महिमामंडित करते हुए प्रस्तुत कर रहे हैं जैसे अगला आरोपित जेल से नहीं बल्कि सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से दीक्षा लेकर लौटा हो। भारत को कट्टरता में झोंकने और इस्लामिक कुरीतियों को उस पर हावी करने के लिए फैक्ट चैक के नाम पर झूठ परोसने वाले मोहम्मद ज़ुबैर को जमानत मिल गई और जमानत के बाद वो अपने पुराने फॉर्मेट में वापस आ चुके है। जहाँ वो धर्म का आडंबर रचते हुए वामपंथी चैनलों और पोर्टल पर झूठ का प्रसार करते हुए अब राणा अय्यूब 2.0 वर्ज़न बन चुके हैं।

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मोहम्मद जुबैर ने इंटरव्यू के जरिए अपना एजेंडा जारी रखा 

दरअसल, मोहम्मद ज़ुबैर को 27 जून को दिल्ली में मामला दर्ज होने के बाद गिरफ्तार किया गया था और उसे 20 जुलाई को जमानत मिलने के बाद उसे तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया था। रिहाई के दो-चार दिन के बाद तक तो मानों ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद ज़ुबैर सुधर गया होंगा पर वो कहावत है न कुत्ते की दूम सालों साल भी यदि ज़मीन के भीतर रखी जाए तो भी वो सीधी नहीं हो सकती, कुछ ऐसा ही हाल मोहम्मद जुबैर का है। पाखंड, भय फैलाने और विक्टिम कार्ड खेलते-खेलते ज़ुबैर अब अपने उस लिबरल कुनबे में पहुंचा है जहाँ से उसकी गिरफ़्तारी के बाद उसके एजेंडे को शह मिल रही थी।

जी हाँ, बात हो रही है उन्हीं लिबरल और वामपंथी समूहों की जो ज़ुबैर की गिरफ़्तारी के बाद से उसके गम में कभी चूडियां तोडने में व्यस्त थे तो कभी विधवा-विलाप करने को मजबूर थे। ऐसे ही समूहों में एक न्यूज़लॉन्ड्री तो दूसरा द वायर था। न्यूज़लॉन्ड्री को दिए अपने हालिया साक्षात्कार में, जहां साक्षात्कार की शुरुआत मर्मस्पर्शी से होती है। जिसमें बताया गया है कि जुबैर के कई शुभचिंतक हैं, जो उनसे मिलने आ रहे हैं। साक्षात्कार अपने दर्शकों को सूक्ष्मता से बताता है कि जुबैर कितना निर्दोष है और भाजपा शासन बेहद क्रूर है। जहां एक ओर न्यूज़लॉन्ड्री ने ज़ुबैर को यह साबित करने में मदद की कि वह कितने निर्दोष हैं।

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द वायर भी पीछे नहीं रहा 

वही दूसरी ओर द वायर उम्मीद से दो कदम आगे निकल गया। द वायर उस वाम-उदारवादी पोर्टल के रूप में जाना जाता है जो भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में हर मुसलमान को पीड़ित बताने का एजेंडा चलाता आया है। और ठीक वैसा ही ज़ुबैर के मामले में भी देखने को मिला। द वायर ने जिस शीर्षक के साथ एक लेख प्रकाशित किया वह था, जुबैर: ‘मुस्लिम आदमी से जवाबदेही की मांग की जा रही है और पत्रकार के रूप में काम करना अपराध नहीं है।”

जैसा अब तक करते आया है उससे इतर थोडी न द वायर चला जाएगा। द वायर ने हमेशा इसी पर आधारित रिपोर्टें की हैं कि कैसे भारत में किसी भी जुर्म का अभियुक्त मुस्लिम को बना दिया जाता है। ऐसे में राणा आयूब को मोहम्मद ज़ुबैर के रूप में वो जोडीदार मिल गया है जो एक दूसरे के पूरक हैं। यूँ तो द वायर हिंदूफोबिया और नाजायज फंडिंग के साथ चलने वाली इस कला का शुरू से ही उस्ताद रहा है और ऐसा लगता है कि जुबैर स्वयं राणा अय्यूब से वो सभी निभाने का कौशल सीख रहे हैं जिनकी कमी अभी ज़ुबैर महसूस कर रहा है।

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