ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं। कश्मीर में हुए नृशंस नरसंहार के जख्मों को मार्च में आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने पर्दे पर लेकर जीवंत कर दिया था। वहीं नब्बे के दशक में हुई उस क्रूरता का सिलसिला वहीं तक नहीं थमा था। उसकी छिटें वर्ष 2003 में भी दिखाई दी थीं। वर्ष 2003 में भी एक नरसंहार हुआ था जिसमें 24 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। अलबत्ता, कई राजनीतिक कुचक्रों में फंस चुके न्याय को इतनी देर हो गई कि वो केस ही राजनीति की भेंट चढ गया और कोई ठोस कार्रवाई दर्ज नहीं की गई। लेकिन, अब ऐसा होने की उम्मीद एक बार फिरसे जागी है। केस खुल गया है और स्वयं जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने नदीमर्ग नरसंहार के मामले को फिर से खोलने का आदेश दिया है।
दरअसल, मार्च 2003 में पुलवामा जिले में 24 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। विशेष रूप से, इसके बाद, 2014 में उच्च न्यायालय में एक नई याचिका राज्य द्वारा निचली अदालत द्वारा आरोप तय करने की तारीख से कार्यवाही को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी और मामले की नए सिरे से सुनवाई के लिए या वैकल्पिक रूप से एक निर्देश मांगा गया था। मामले को जम्मू में सक्षम क्षेत्राधिकार की किसी भी अदालत में स्थानांतरित करने के लिए ताकि सभी विस्थापित गवाहों के बयान बिना किसी डर के उक्त मामले में दर्ज किए जा सकें। हालाँकि, इस याचिका को भी 2014 में HC ने खारिज कर दिया गया था।
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मामला एक दशक से भी ज्यादा पुराना है
पूर्व में के बार दोषियों को सजा देने के प्रयास किए गए पर तकनीकी कारणों से या गवाहों के अपने जीवन के लिए डर यानी बचाव के लिए पीछे हट जाने के कारण वो सभी प्रयास विफल रहे। दोनों पक्षों की चिंताओं को सुनने के बाद, 2014 में एचसी के आदेश के खिलाफ राज्य द्वारा अपील करने के लिए विशेष अनुमति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन का उल्लेख करते हुए, न्यायमूर्ति संजय धर ने कहा, “याचिकाकर्ता-राज्य को इस न्यायालय के समक्ष एक वापसी आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी गई है ताकि दिनांक 21.12.2011 के आदेश को वापस लिया जा सके।”
यह सत्य है कि, कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार 1990 के दशक के बाद भी जारी रहे। तब उनके खिलाफ हिंसा बढ़ने के बाद समुदाय के सदस्य कश्मीर घाटी से जबरन पलायन कर जाने के लिए विवश हो गए। 23 मार्च, 2003 को, लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी नकली सैन्य वर्दी में पुलवामा जिले के नदीमर्ग में आए और 24 कश्मीरी पंडितों को अस्तर और उन पर गोली मारकर हत्या कर दी। मृतकों में 11 पुरुष, 11 महिलाएं और दो छोटे लड़के शामिल हैं, जिनमें से एक बुजुर्ग 65 वर्ष के थे तो एक 2 साल का मासूम था। ‘द कश्मीर फाइल्स’ का आखिरी सीन इस घटना पर आधारित बताया गया है।
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हत्याकांड से संबंधित धारा 302, 450, 395, 307, 120-बी, 326, 427 आरपीसी, 7/27 शस्त्र अधिनियम और धारा 30 पुलिस अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। मार्च 2003 में, मुंबई पुलिस को 3 संदिग्धों का सामना करना पड़ा, जबकि एक अन्य को अप्रैल महीने में गिरफ्तार किया गया था। लेकिन, कई और संदिग्ध कानूनी जांच से बच गए हैं। मामले को फिर से खोलने से कश्मीरी पंडितों में कुछ विश्वास की भावना पैदा होगी। अब जब पुनः इस केस की फाइल खुल गई है तो इस बार संभवतः वो न्याय मिले की अपेक्षा शत-प्रतिशत बढ गई है। शेष न्यायिक प्रक्रिया पर निर्भर करता है।
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