नीतीश कुमार विपक्ष के पीएम उम्मीदवार बनें, इससे अच्छा मोदी के लिए कुछ नहीं हो सकता

पीएम मोदी की भी यही हार्दिक इच्छा होगी कि ऐसा हो ही जाए!

Nitish and Modi

Source- TFIPOST.in

जो होता है अच्छे के लिए होता है यह कथन वास्तव में बहुत कुछ सोच-विचार के बाद कहा गया होगा। आज भाजपा भले ही बिहार में सत्ता से बाहर हो गई हो पर इसमें भी उसकी भलाई छुपी हुई है। जो नीतीश कुमार अब तक भाजपा के लिए एक भोझ बने हुए थे उनके स्वयं निकल जाने से भाजपा को तृप्ति मिली है। यह बात सोलाह आने सच है, थी और रहेगी। इसी बीच नीतीश बाबू का पीएम मैटेरियल रुदन एक बार फिर से चालू हो गया है। बीते वर्ष भी नीतीश पीएम मैटेरियल हैं ऐसी चर्चा आई थीं, इसके बाद उस बात को स्वयं नीतीश कुमार ने टाल दिया था। लेकिन अब यहाँ नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग हुए तो वहां पीएम मैटेरियल का गुण-गान शुरू हो गया। ऐसे में अगर आगामी 2024 में संयुक्त विपक्ष के पीएम पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार होते हैं तो यह तय मानिए कि 2024 में पीएम मोदी के चुनौती के रूप में सामने नीतीश होंगे तो यह भाजपा के लिए सबसे अच्छी बात होगी।

दरअसल, बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मंगलवार को भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ अपने गठबंधन को समाप्त करने की घोषणा की और बाद में इस्तीफा भी दे दिया। बुधवार को नीतीश ने राजभवन में आरजेडी के सहयोग से पुनः सीएम पद की शपथ लेकर आठवीं बार बिहार के सीएम बन गए। हालाँकि, इस बार यह सरकार का गठन बडा मुद्दा नहीं है, मुद्दा यह है कि नीतीश कुमार के मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में से एक पीएम बनने के सपने पर एक बार पुनः वो पानी छिड़क रहे हैं। नीतीश कुमार की पार्टी- जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष, उपेंद्र कुशवाहा ने संकेत दिया है कि “बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीएम बनने की योग्यता रखते हैं।”

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इस निर्णय को मील का पत्थर बताया

उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को ट्विटर पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार के गेमप्लान पर एक बड़ा संकेत देते हुए ट्वीट कर लिखा कि, “नये स्वरूप में नये गठबंधन के नेतृत्व की जवाबदेही के लिए श्री नीतीश कुमार जी को बधाई। नीतीश जी आगे बढ़िए। देश आपका इंतजार कर रहा है।” इसके बाद एक और ट्वीट करते हुए कुशवाहा ने लिखा कि, “NDA से अलग होने के निर्णय से देश को फिर से रुढ़िवाद के दल-दल में धकेलने की साज़िश में लगी भाजपा के चक्रव्यूह से हम सब बाहर आ गए। यह निर्णय सिर्फ बिहार ही नहीं देश के लिए मील का पत्थर साबित होगा।”

यह कुछ अलग ही विचित्र सी बात है कि बिहार में तीसरे नंबर पर खिसक चुकी पार्टी स्वयं को देश की राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन करने का ध्वजवाहक बता रही है। ध्वजवाहक तक तो ठीक था, पीएम मैटेरियल किस हिसाब से बता रही है वो विचारणीय विषय है। नीतीश कुमार के एक और बार पीएम पद की दावेदारी में उतरने से यह अवश्य निर्धारित हो गया है कि दावेदारों की सूची में बंगाल की ममता दीदी, महाराष्ट्र से शरद पवार, दिल्ली से अरविंद केजरीवाल, दक्षिण से केसीआर, और ऑल वैदर पीएम प्रत्याशी राहुल गांधी के बाद अब बिहार से नीतीश कुमार भी कतार में आ गए हैं।

अब देखा जाए तो नीतीश के अलावा उक्त सभी नाम अपने जनाधार को संजोए हुआ हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के पास तुष्टिकरण वाला वोटबैंक हैं तो महाराष्ट्र में मराठाओं में शरद पवार जैसे पुराने नेता की मजबूत पकड है। वहीं दिल्ली के स्वघोषित मालिक, सीएम अरविंद केजरीवाल के पास फ्रीबी वोटर की भरमार है तो वहीं तेलंगाना में सीएम के. चंद्रशेखर राव का भी अपना वोटबैंक है। नीतीश कुमार इस मामले में फिसड्डी ही साबित हुए हैं। जहाँ बिहार में कुल 5 प्रतिशत कुर्मी वोट है जिसमें से 2014 से चार प्रतिशत से अधिक पीएम मोदी के नाम पर जाता है और शेष आधा नीतीश कुमार के पास है।

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इस फैसले को बीजेपी भुनाना चाहेगी

ऐसे में जिस व्यक्ति के पास स्वयं का कोई जनाधार नहीं है, छवि नहीं है, मूल वोटबैंक नहीं है जब वो पीएम मैटेरियल वाली बात करे तो मामला ज़रा हास्यास्पद प्रतीत होता है। यह बात नीतीश को भी पता है कि जब तक पीएम मोदी का हाथ था तब तक उनकी पार्टी लोकसभा में सीटें पा रही थी, यदि 2019 का लोकसभा चुनाव नीतीश अपने बल पर लड लेते तो उन्हें भी आटा-दाल का भाव पता चल जाता अर्थात वो भी समझ जाते की वो और उनकी पार्टी कितने पानी में है।

पीएम मोदी के नेतृत्व में नैया पार कर बाद में वादा खिलाफी करने वाले नीतीश कुमार अब पीएम बनने कई सपने अवश्य संजो रहे हैं पर शास्वत सत्य तो यही है कि कल को संयुक्त विपक्ष 2024 में नीतीश कुमार को पीएम पद का दावेदार बना प्रस्तुत करते हैं तो स्वयं नीतीश भी दो सीट जीत जाएं तो बडी बात होगी। लेकिन भाजपा को अब राहत की सांस अवश्य मिली है कि एक मौकापरस्त उनके कुनबे से स्वयं ही अलग हो गया, कहीं न कहीं नीतीश कुमार मोदी जी की ही रणनीति में पूरी तरह फंस चुके है। अब स्वयं भाजपा भी खुले बिहार में चुनावी मैदान में खुलकर बैटिंग कर पाएगी जो नीतीश के रहते मुश्किल था।

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