बेशक राहुल गांधी देश के एक ऐसे प्राणी हैं जो एक अच्छे नेता के अलावा कुछ भी बन सकते हैं। क्योंकि कांग्रेस के बुझे हुए चश्मोचिराग राहुल गाँधी कभी हिन्दू बनते हैं, कभी तिलक लगा के पूजा-पाठ करते हैं, कभी जेनऊधारी ब्राह्मण बनने का ढोंग करते हैं, कभी अचानक कश्मीरी पंडित बन जाते हैं तो कभी अपनी पेशकश शांति प्रिय समाज का मसीहा के रूप में करते हैं। वो कभी-कभी टोपी पहनकर दुआ करते हैं। यानी कहने का मतलब फुल उच्च कोटि की नौटंकी करते हैं। मानों देश की जनता को मनोरंजित करने का जिम्मा इनके ही गले बंधा हो।
लेकिन देश की जनता तो अब भोली नहीं रहीं जो उनके छलावे में फंस जाएं वो तो सब जानती है कि राहुल बाबा कैसे चुनाव के समय हिंदुत्व के जबरदस्ती गले आ पड़ते हैं और चुनाव के तुरंत बाद गिरगिट से भी जल्दी रंग बदलकर सेक्युलर कीड़ा बन जाते हैं। जो कि उनकी मूल प्रवृत्ति हैं। लेकिन इस प्रवृत्ति में भी वो अभी तक विशुद्ध ही हैं। अभी हाल में ही कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी कर्नाटक के दौरे पर गए थे, जहां उन्होनें चित्रदुर्ग के श्री जगदगुरु मुरुगाराजेंद्र विद्यापीठ में डॉ. श्री शिवमूर्ति मुरुगा शरणनारु से ‘‘ईस्टलिंग दीक्षा’’ ली।
मुरुगा मठ के महंत शिवमूर्ति मुरुगा शरण ने राहुल गांधी को लिंगायत संप्रदाय की दीक्षा दी। इस मौके पर कांग्रेस के कई नेता भी मौजूद थे। गांधी ने विभिन्न मठों के महंतों से परामर्श लेने के बाद मुरुगा मठ के महंत शिवमूर्ति मुरुगा शरण से लिंगायत संप्रदाय की दीक्षा ली। बस जैसे ये खबर मीडिया में आई राहुल गाँधी लोगों के निशाने पर आ गए। लोगों ने राहुल को ट्रोल करना शुरू कर दिया और कहने लगें कि राहुल गाँधी अपने ढोंगी वाले किरदार में फिर आ गए, एक बार फिर हिन्दू बनने की राह में राहुल। राहुल गाँधी की समझ बस इतनी है कि पूरे साल हिन्दुओं को गाली देने के बाद, बदनाम करने के बाद ये 52 साल का अधेड़ उम्र का आदमी निर्लज्जता के साथ फिर से हिन्दू धर्म के सामने अपने फायदे के लिए भीख मांगने आ जाता है।
और पढ़ें: सोमनाथ में गैर हिंदु रजिस्टर में नाम लिखवाने के बाद अब चुनावों में राहुल गांधी ने बताया अपना गोत्र
राहुल के ढोंगी हिन्दू बनने का अपना ही रिकॉर्ड
राहुल गाँधी चुनावी समय में फर्जी हिन्दू बनने पर कई बार बीजेपी ने भी जम के मजे लिए हैं। देखा जाएं तो राहुल गाँधी अनाधिकारिक रूप से अपनी इन्हीं हरकतों की वजह से बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में टॉप पर आते हैं। क्योंकि बीजेपी को चुनाव के समय में जिस चीज़ से फ़ायदा होना होता है, वो राहुल गाँधी पहले ही समझ जाते हैं और बेझिझक कर डालते हैं। ऐसा इसलिए कहना ज़रूरी हैं क्योंकि बीजेपी अपने पूरे चुनावी प्रचार में राहुल गाँधी और उनके हिंदुत्व के प्रति चरित्र का पर्दाफाश करती हैं। लेकिन राहुल गाँधी बीजेपी के पहले ही देश की जनता के सामने अपना पर्दाफाश करवा लेते हैं और बाकी की कोर-कसर चुनाव के बाद सेक्युलर बनके हिन्दू धर्म के प्रति विष उगल कर पूरी कर देते हैं।
और पढ़ें: राहुल गांधी के हिन्दू-विरोधी स्वर, विकिलीक्स ने खोली पोल
राहुल का लिंगायत समुदाय से मिलना चुनावी स्ट्रोक
कर्नाटक में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव हैं और इसके चलते राज्य में चुनावी हलचल भी देखने को मिल रही है। यह कहा जाता है कि जिस भी राजनीतिक दल के साथ लिंगायत समुदाय होता है सरकार तो उसी की बनती है। क्योंकि कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं। जो चुनावी नतीजे में काफी निर्णायक साबित होते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस समुदाय को लुभाने में सफलता हासिल की थी। जिसका परिणाम यह निकला कि बीएस येदुरप्पा को हटाने के बाद बीजेपी ने मजबूरी में ही सही लेकिन लिंगायत समुदाय के ही बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा।
कौन है लिंगायत समुदाय
लिंगायत संप्रदाय संत बसवन्ना के सिद्धांतों पर चलने वाला एक संप्रदाय है। लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक के अलावा महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है। इसमें हर धर्म के लोगों को लिंगायत संप्रदाय अपनाने की आजादी होती है। इस प्रक्रिया के तहत इष्ट लिंग की दीक्षा ग्रहण करने वाले को लिंगायत समुदाय से जुड़ा हुआ मान लिया जाता है और कर्नाटक में इस समाज की एक बड़ी आबादी है जिसके चलते इनका राज्य की राजनीति में विशेष प्रभाव भी है।
लिंगायत सम्प्रदाय के लोग ना तो वेदों में विश्वास रखते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में। लिंगायत हिंदुओं के भगवान शिव की पूजा नहीं करते लेकिन भगवान को उचित आकार “इष्टलिंग” के रूप में पूजा करने का तरीका प्रदान करता है। इष्टलिंग अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है। जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं। लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं। निराकार परमात्मा को मानव या प्राणियों के आकार में कल्पित न करके विश्व के आकार में “इष्टलिंग” की रचना की गई है। लिंगायत परंपरा में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी अलग होती है। लिंगायत में शवों को दफनाया जाता है। लिंगायत परंपरा में मृत्यु के बाद शव को नहलाकर बैठा दिया जाता है।
और पढ़ें: 2009 में, हर पार्टी सेक्युलर थी, अब हिन्दू विरोधी पार्टियां भी हिंदुत्व कार्ड खेल रही हैं
लिंगायत समुदाय से योगी के भी संबंध
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी का लिंगायत समुदाय के कुछ शीर्ष नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध हैं। योगी जिस नाथ संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसे हिंदू धर्म के भीतर एक सुधार आंदोलन के रूप में भी देखा जाता है। यह शैव धर्म का हिस्सा है जो जाति उत्पीड़न के खिलाफ काम करता है। भाजपा को उम्मीद है कि इस पृष्ठभूमि के साथ तेलंगाना में लोगों पर योगी ज्यादा असर दिखा पाएंगे। अगर चुनाव की नज़र से देखें तो तेलंगाना में अगले साल अंत में चुनाव होने हैं। तेलगांना में लिंगायत समुदाय की आबादी लगभग 15 लाख है। इस प्रकार यदि भाजपा को टीआरएस और केसीआर के चुनावी भाग में सेंध लगानी है, तो लिंगायत समुदाय को भगवा पार्टी के पक्ष में जाना होगा।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।