‘अजीब न्याय है हुज़ूर आपकी अदालत का’, आज अगर किसी न्यायालय में ऐसा फैसला सुनाया जाए जिसपर जनता का जवाब प्रस्तुत कथन आए तो समझना आसान हो जाता है कि न्यायालय का न्याय कितना स्वीकार्य है और कितना विरोधाभासी। बीते कुछ समय में कई ऐसे निर्णय रहे जिससे जनभावना तो आहत हुई ही पर इस बार एक ऐसा निर्णय आया है जो मानवीय पहलु और संवेदनशीलता को झकझोरने का काम कर गया। केरल के कोझिकोड कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जब महिला (शिकायतकर्ता) ने “यौन उत्तेजक कपड़े” पहने थे तो प्रथम दृष्टया वह यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा। तत्पश्चात कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के मामले में लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता सिविक चंद्रन को जमानत दे दी।
दरअसल, केरल की कोझिकोड कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में 74 वर्षीय लेखक और सोशल एक्टिविस्ट सिविक चंद्रन को अग्रिम जमानत दे दी। कोझिकोड न्यायालय ने कहा कि आरोपी सिविक चंद्रन द्वारा जमानत आवेदन के साथ पेश की गई तस्वीरों से पता चलता है कि वास्तविक शिकायतकर्ता ने खुद ऐसे कपड़े पहन रखे थे, जो यौन उत्तेजक थे। इसलिए आरोपी के खिलाफ धारा 354 ए के तहत मामला नहीं बनता है। अदालत ने यह भी अविश्वास व्यक्त किया कि 74 वर्षीय शारीरिक रूप से अक्षम आरोपी, शिकायतकर्ता को जबरदस्ती न अपनी गोद में ले सकता है और न ही उसका शारीरिक रूप से शोषण कर सकता है जैसा आरोप लगाया गया है।
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ध्यान देने वाली बात है कि अदालत ने आरोपी के खिलाफ दर्ज दूसरे यौन उत्पीड़न मामले में जमानत देते हुए यह टिप्पणी की थी। चंद्रन पर यौन उत्पीड़न के दो मामले हैं। चंद्रन पर आरोप है कि अप्रैल में एक पुस्तक प्रदर्शनी के दौरान लेखक और अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंध रखने वाली महिला का उत्पीड़न किया। दूसरा मामला एक युवा लेखिका का था जिसने फरवरी 2020 में शहर में एक पुस्तक प्रदर्शनी के दौरान उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
हालांकि, कोर्ट के इस अजीबोगरीब निर्णय पर हर राज्य के महिला आयोग का विरोध सार्वजानिक रूप से बाहर आने लगा है। चूंकि मामला एक महिला और उसके अधिकारों से जुड़ा हुआ है इसलिए यह आवाज़ आनी स्वाभाविक भी हो जाती हैं। अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों पर चिंता व्यक्त करते हुए केरल महिला आयोग की अध्यक्ष पी सतीदेवी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और कहा कि सुबूत पेश करने और सुनवाई शुरू होने से पहले ही इस तरह के संदर्भ देकर अदालत शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों को प्रभावी ढंग से खारिज कर रही है। यह दुष्कर्म जैसे गंभीर मामलों में बहुत ही गलत संदेश भेजता है।
बता दें, आरोपी अधेड़ उम्र के लेखक सिविक चंद्रन पर आरोप लगा था कि उसने शिकायतकर्ता का मौखिक और शारीरिक रूप से यौन उत्पीड़न किया, जो एक युवा महिला लेखिका हैं और फरवरी 2020 में नंदी समुद्र तट पर आयोजित एक शिविर में उसके साथ शारीरिक उत्पीड़न किया गया। इसपर कोयीलांडी पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ए(2), 341 और 354 के तहत मामला दर्ज किया था। जमानत की अर्जी जब सेशन कोर्ट के समक्ष आई तो आरोपी की ओर से पेश वकील पी. हरि और सुषमा एम ने तर्क दिया कि यह एक झूठा मामला है, जो आरोपी के खिलाफ उसके कुछ दुश्मनों द्वारा प्रतिशोध लेने के लिए गढ़ा गया है।
अब जिस व्यक्ति पर पहले भी शारीरिक उत्पीड़न के आरोप लगते आए हों और वो भी संगीन अपराध की पुष्टि करते हों, ऐसे व्यक्ति को साफ़-सुथरी छवि और मात्र इस वजह से छोड़ दिया जाए क्योंकि माननीय न्यायालय को आरोपी के दिव्यांग होने का भान होने के साथ ही यह प्रतीत हो रहा हो कि एक दिव्यांग कैसे वो सब कर सकता है तो क्षमा कीजिएगा माननीय, वहां आपकी निजी अभिव्यक्ति का कोई स्थान नहीं है। न्यायसंगत जो उचित लग रहा हो उसपर निर्णय देने के लिए आप एक जज के रूप में वहां विराजमान हैं। ऐसे में होना वही चाहिए था जो संविधान के अनुरूप कानून की पुस्तकों में विद्यमान है।
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