समय-समय की बात है, कल किसी का था तो आज किसी का है, इसी तरह यह समय आगे किसी और का होगा। राजनीति में ऐसे समीकरण बहुत मायने रखते हैं। उसमें भी जब बात भारतीय राजनीति की हो तो मामला एक ही समय में दिलचस्प और पेचीदा दोनों हो जाता है। हालिया घटनाक्रम तीन दिन पूर्व तक कांग्रेसी नेता और आगामी भविष्य में जम्मू कश्मीर की राजनीति के प्रमुख नेता बनने जा रहे गुलाम नबी आज़ाद से जुड़ा हुआ है।
आज़ाद बना सकते हैं अपनी पार्टी
दरअसल, 26 अगस्त को पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व राज्यसभा सांसद और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने अपने दशकों पुराने कांग्रेस पार्टी के संबंधों पर पूर्णविराम लगा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। अब कांग्रेस छोड़ने के बाद, गुलाम नबी आज़ाद की अपनी पार्टी बनाने की योजना है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर की राजनीति के आंकड़े उलटे होने के लिए तैयार हैं।
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गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने के बाद से ही अटकलें लगायी जा रही थीं कि वो कांग्रेस को अलविदा कह देंगे ऐसे में बीते शुक्रवार को वो दिन भी आ ही गया। आज़ाद ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पांच पन्नों का “भयंकर” त्याग पत्र लिखा। आजाद ने अपने पत्र में कांग्रेस के पतन के लिए “बचकाने” राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया।
इधर गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी छोड़ी तो उधर से जम्मू और कश्मीर कांग्रेस में बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया है। कांग्रेस के दिग्गज ताज मोइनुद्दीन गैस ने भी आजाद के नेतृत्व वाले मोर्चे के लिए पार्टी छोड़ दी और जम्मू कश्मीर के 8 बड़े नेताओं ने आज़ाद के समर्थन में ऐसा किया जिससे कांग्रेस के लिए राज्य का सियासी गणित लड़खड़ा गया है। यही कुछ नेता ही नहीं बल्कि 1500 कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भी कांग्रेस को छोड़ दिया है और सभी आजाद के गुट में उनका समर्थन करने के लिए तैयार हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 4 सितंबर को जम्मू पहुंचते ही गुलाम नबी आज़ाद ने अपने राज्य, जम्मू और कश्मीर से अगले 14 दिनों में एक राष्ट्रीय पार्टी शुरू करने की घोषणा की है। उनके करीबी सहयोगी और पूर्व मंत्री जीएम सरूरी ने कहा कि गुलाम नबी आज़ाद द्वारा बनाई जाने वाली नई पार्टी आगामी जम्मू-कश्मीर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है और आजाद नई पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। ऐसे में यह तो तय है कि धारा 370 हटने के बाद पहले विधानसभा चुनावों में कहानी रोमांचक होने को है।
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गुलाम नबी आज़ाद कोई मामूली नेता नहीं हैं
ज्ञात हो कि आज भी गुलाम नबी आज़ाद जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े नेताओं में से हैं। 2005-2008 तक राज्य के सीएम के रूप में कार्यरत रहे। आज़ाद ने इस कार्यकाल के दौरान कई अवसरवादियों और घाटी को अंधेरे में डुबोने के लिए जुटे हुए लोगों को बाहर किया था।हालांकि, कांग्रेस इसे पचा नहीं पाई और गुलाम नबी आजाद के पंख काट दिए गए और घाटी की राजनीति से दूर कर दिया।
वर्ष 2014 के बाद कांग्रेस नेतृत्व को लेकर नेतृत्व परिवर्तन की बात के साथ गुलाम नबी आज़ाद जी-23 नेताओं के गुट में शामिल हो गए थे। आज़ाद का एक नयी पार्टी बनाने का निर्णय भी उनके दृष्टिकोण की दिशा की वकालत करता है। ऐसे समय में जब कांग्रेस जैसी पार्टियां जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में लड़ना नहीं चाहती हैं।
अब भविष्य की राजनीति की बात करें तो महबूबा मुफ़्ती और फारूख अब्दुल्ला जैसे अलगाववादी नेताओं के बीच लोकतांत्रिक विश्वास से परिपूर्ण गुलाम नबी आज़ाद का जम्मू-कश्मीर में नयी राजनीति की शुरुआत करने का निर्णय इन सभी “गुपकार गैंग” के मंसूबों के ताबूत में अंतिम कील साबित होगी। शेष आगामी चुनाव निर्णय करेंगे कि राज्य में किसकी स्वीकृति बढ़ेगी। सारी अटकलें समय पर निर्भर करती है। यह भी समय ही बताएगा कि क्या बीजेपी और गुलाम नबी आज़ाद राज्य में गठबंधन करेंगे।
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