अमेरिका क्यों चाहता है कि भारत रूसी तेल की मूल्य सीमा तय करने वाले गठजोड़ का हिस्सा बनें ?

अमेरिका भारत को अपने पाले में लाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं!

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Source- TFIPOST.in

वर्तमान समय में अमेरिका के स्वभाव से पूरी दुनिया वाकिफ होने लग गई है। दो देशों को किस तरह युद्ध की आग में झोंककर अमेरिका स्वयं पीछे हट जाता है यह रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान देखने को मिल ही गया। यही कारण है कि जो अमेरिका कभी पूरी दुनिया पर अपनी दादागिरी चलाया करता था, उसकी छवि अब एक कमजोर देश के रूप में बदलने लगी हैं। इसी के चलते जो अमेरिका कभी भारत को डराता और धमकाता था, आज उसके लिए भारत का साथ बेहद ही आवश्यक होता चला जा रहा है।अमेरिका किसी भी हाल में भारत को अपने पाले के लिए बेकरार हो रहा है।

दरअसल अब अमेरिका चाहता है कि भारत रूसी तेल की मूल्य सीमा तय करने वाले गठजोड़ का हिस्सा बनें। इसका उद्देश्य रूस के लिए आय के साधनों को बाधित करना और वैश्विक ऊर्जा कीमतों को नरम बनाना है। कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक होने पर अमेरिका समेत दूसरे जी-7 देश रूसी तेल पर मूल्य सीमा लागू करने पर विचार विमर्श कर रहे हैं।

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भारत रूस की बढती मित्रता देख अमेरिका बौखलाया

अमेरिका के उप वित्त मंत्री वैली अडेयेमो हाल ही में तीन दिनों की भारत यात्रा पर आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने इन्हीं मुद्दों पर चर्चा की। इस दौरान अडेयेमो ने अपने एक बयान में कहा कि “रूस के ऊर्जा और खाद्यान्न व्यापार को प्रतिबंधों से बाहर रखा गया। भारत जैसे देश स्थानीय मुद्रा सहित किसी भी मुद्रा का प्रयोग करके सौदे कर सकते हैं।” उन्होंने यह भी दावा किया कि “भारत ने रूस से आने वाले तेल के दाम की सीमा तय करने वाले प्रस्ताव पर ‘गहरी दिलचस्पी’ दिखाई है।” उन्होंने कहा कि “मूल्य सीमा तय होने से रूस को मिलने वाले राजस्व में कमी आएगी।”

अमेरिकी उप वित्त मंत्री के अनुसार यह उपभोक्ताओं के लिए ऊर्जा की कीमतों को कम करने के उद्देश्य के अनुरूप है। इस बारे में हम उन्हें (भारत को) सूचनाएं दे रहे हैं और विषय पर संवाद जारी रखेंगे। गौरतलब है कि युद्ध की शुरुआत से ही देखने को मिलाकि भारत ने रूस या यूक्रेन में से किसी एक का पक्ष चुनने से परहेज किया। भारत ने भले ही किसी का साथ नहीं दिया, परंतु कही न कही अमेरिका की जगह रूस के पक्ष में खड़ा रहा। हालांकि भारत ने जो भी निर्णय लिए वो स्वयं के फायदे को ध्यान में रखकर किए। सस्ते दाम में भारी मात्रा में तेल खरीदने के साथ हमने रूस के साथ अपने पक्के संबंध भी बरकरार रखे।

इससे सबसे ज्यादा मिर्ची अगर किसी को लगी तो वो अमेरिका ही था। भारत के सहयोग से ही रूस प्रतिबंधों के परिणाम को काफी हद तक बेअसर करने में कामयाब रहा। यही कारण है कि अमेरिका ने भारत को कई बार धमकी देकर झुकाने के भी प्रयास किए। उसने रूस का साथ देने के लिए भारत को अंजाम भुगतने तक की भी धमकी दी, परंतु इन सबका भारत पर तनिक भी असर नहीं पड़ा।

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भारत के आगे अमेरिका के सारे दांव फेल 

अमेरिका को अपने सभी दांव स्पष्ट तौर पर फेल होते हुए नजर आ रहे हैं। परंतु अभी भी अमेरिका भारत को अपने इशारों पर चलाने  की कोशिश कर रहा है और इसलिए वो चाहता है कि भारत इस रूस विरोधी गठजोड़ का हिस्सा बने, जिसे भारत और रूस की साझेदारी टूट जाए। हालांकि ऐसा प्रतीत है कि अमेरिका बार-बार यह भूल जाता है कि अब उसका सामना एक नए भारत से हो रहा है, जो किसी के भी इशारों पर नहीं चलता। ना ही कोई भारत को अपने इशारों पर चला सकता हैं। भारत अपना हर निर्णय स्वयं लेने में पूरी तरह से सक्षम हैं। वही फैसले भारत लेता है, जो उसके स्वयं के लिए फायदेमंद हो।

रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर पश्चिमी देशों द्वारा जताई जाने वाली आपत्ति को लेकर भारत कई बार करारा जवाब देता आया है।विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका के ज्ञान को लेकर आईना दिखाते हुए अपने एक बयान में कहा था कि भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है, यूरोप उसे ज्यादा आयात महज एक दोपहर तक कर डालता है।”

इसके अलावा बीते हफ्ते भी तेल खरीद को लेकर जयशंकर ने दुनिया को दो टूक जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि “मेरे देश की प्रति व्यक्ति आय 2000 डॉलर है।वो महंगा तेल नहीं खरीद सकते, इसलिए यह मेरा नैतिक कर्तव्य बनता है कि अपने देश के लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ डील कर सकूं। दुनिया के कई देश भी अपने लोगों का हित देखते हैं और उसी के अनुसार फैसले करते हैं।”

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अमेरिका भारत के इसी रूख से परेशान है, क्योंकि यह कही न कही उसके द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को बेअसर करने का काम कर रहा है और इन्हीं कारणों से रूस युद्ध में अब तक मजबूती से खड़ा है। इसलिए अमेरिका के लिए भारत का साथ बेहद ही जरूरी होता चला जा रहा है। भारत को अपने पक्ष में लाने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

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