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पहले ‘वरुण ग्रोवर’ और अब ‘कनिका ढिल्लों’, क्या अक्षय कुमार पर चढ़ा ‘वामपंथ’ का रंग?

अक्षय कुमार के विरुद्ध षड्यंत्र हो रहा है!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
2 August 2022
in चलचित्र
Raksha Bandhan

Source- TFI

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बॉलीवुड की कहानी लगभग समाप्त हो चुकी है। वोकिज्म का चक्कर कहें या लोगों की भावनाओं को आहत करने का क्रम, बॉलीवुडिया गैंग ने अपना विनाश स्वयं चुना है और यही कारण है कि एक के बाद एक कर बॉलीवुड की लगातार कई फिल्में फ्लॉप हो चुकी हैं। फ्लॉप के नांव में सवार बॉलीवुड की आने वाली फिल्में भी बुरी तरह से फ्लॉप ही होंगी, इस बात की पूरी संभावना है। सोशल मीडिया पर अभी आमिर खान की आने वाली फिल्म लाल सिंह चड्ढा को लेकर विवाद थमा भी नहीं था कि अक्षय कुमार की आगामी फिल्म रक्षा बंधन को लेकर बवाल मच गया। स्थिति तो ऐसी हो गई है कि सोशल मीडिया पर #BoycottRakshaBandhan ट्रेंड होना प्रारंभ हो गया है। इससे पहले पृथ्वीराज के गाने में वरुण ग्रोवर के कारनामे देखने को मिले थे और अब रक्षा बंधन की स्क्रिप्ट राइटर को लेकर सोशल मीडिया पर आग लगी है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आखिर क्या कारण है जो अक्षय कुमार ऐसी फिल्में चुनते हैं और क्या कारण है जो ऐसे लोगों के साथ ही उन्हें काम करना अच्छा लगता है।

और पढ़ें: बॉलीवुड का ‘घमंडी सरगना’ करण जौहर कहता है बॉलीवुड को कोई ख़त्म नहीं कर सकता!

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दरअसल, अक्षय कुमार की फिल्म ‘रक्षा बंधन’ काफी समय के पश्चात रिलीज़ होने को तैयार है और ऐसे में वो इसे लेकर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेंगे। परंतु उनके फिल्म-क्रू के सेलेक्शन को देखकर तो ऐसा कदापि नहीं लगता। फिल्मकार के रूप में उन्होंने आनंद एल राय को अवश्य ले लिया, जो ‘तनु वेड्स मनु’, ‘रांझणा’ जैसी फिल्में देते आए हैं परंतु क्या आपने इस पर ध्यान दिया कि फिल्म रक्षा बंधन का लेखक कौन है? ध्यान देने वाली बात है कि इस फिल्म को रचने वाली महिला कनिका ढिल्लों हैं जिनका वामपंथ से उतना ही गहरा नाता है, जितना उमर खालिद और कन्हैया कुमार का JNU से!

कथा तो अभी आरंभ हुई है। कनिका ढिल्लों का प्रोफ़ाइल काफी रोचक है, उन्हें कोई ऐसी वैसी महोदया मत समझिएगा। किसे पता था कि ‘ईशान-सपनों को आवाज दे’ को टीवी पर लाने वाली यह महिला आगे चलकर सिल्वर स्क्रीन पर ‘रा वन’, ‘केदारनाथ’, ‘मनमर्ज़ियां’, ‘हसीन दिलरुबा’, जैसे रत्न अपने कलम से देंगी! अब मजे की बात यह है कि ‘सम्राट पृथ्वीराज’ जैसी फिल्म से सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शौर्य पर जो बट्टा लगाया गया था, उसके गीतकारों में वरुण ग्रोवर भी शामिल थे जो घोर वामपंथी और हिन्दू विरोधी हैं और जो सम्राट पृथ्वीराज की तुलना लंकाधिपति रावण से करने में एक बार भी नहीं हिचकिचाते। इसी पर विश्लेषण करते हुए TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ट्वीट करते हुए कहा है कि “अक्षय कुमार की पिछली फिल्म “सम्राट पृथ्वीराज” के लिए गीतकार वरुण ग्रोवर थे। उनकी वर्तमान फिल्म ‘रक्षा बंधन’ के लिए ये मोहतरमा कार्य संभाल रही हैं। तो इनका क्रू कौन सेलेक्ट कर रहा है? प्रोडक्शन टीम या मिसेज़ फनी बोन्स?” –

The lyricist for Akshay Kumar’s last movie “Samrat Prithviraj Chauhan” was Varun Grover. The scriptwriter for Akshay Kumar’s latest is this great lady. Wonder who is selecting the crew for him? The production team or Miss Unfunny Bones? pic.twitter.com/47PPoGCNYu

— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) August 1, 2022

आपको बताते चलें कि अक्षय कुमार के पास पहले ऐसे विकल्प नहीं थे, कम से कम वर्ष 2013 से वर्ष 2018 के बीच तो बिल्कुल भी नहीं। वर्ष 2013 में उन्होंने नीरज पांडे के माध्यम से सर्वप्रथम प्रयोग करना प्रारंभ किया, जब उन्होंने CBI के नकली रेड्स पर आधारित ‘स्पेशल 26’ की। उसकी सफलता से प्रेरित हो अक्षय कुमार ने गजनी के डायरेक्टर ए आर मुरुगादास द्वारा लिखित एवं निर्देशित ‘हॉलिडे’ में भी कार्य किया, जहां उन्होंने पुनः अपने अभिनय से लोगों को आकर्षित किया।

परंतु वर्ष 2015 में नीरज पाण्डे की फिल्म ‘बेबी’ ने जो कमाल किया, उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक्शन, देशभक्ति और तत्परता से भरपूर इस फिल्म में अक्षय कुमार किसी के ऊपर हावी नहीं हुए पर उनका प्रभाव ऐसा पड़ा कि लोग उन्हें ‘मनोज कुमार’ के टक्कर का देशभक्त मानने लगे और ‘एयरलिफ्ट’ जैसी प्रभावशाली फिल्म की सफलता ने इसमें चार चांद लगा दिए। इसमें भी राजा कृष्ण मेनन ने कुवैत में फंसे लगभग 2 लाख भारतीयों को बाहर निकालने की प्रक्रिया को सिल्वर स्क्रीन पर आत्मसात किया, जिससे अक्षय कुमार की इमेज अलग ही स्तर पर पहुंच गई।

लेकिन पैडमैन के बाद अक्षय कुमार मानो प्रयोग के क्षेत्र में कुंद पड़ गए हैं। ‘केसरी’ तो फिर भी कुछ हद तक मनोरंजक थी परंतु ‘मिशन मंगल’ से यह सिद्ध हो गया कि अक्षय कुमार को स्क्रिप्ट नहीं, पैसा अधिक प्रिय है और ‘लक्ष्मी बॉम्ब’ के पश्चात तो मानो उन्होंने रचनात्मकता को भी गुड़बाय कह दिया है।

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