लखीमपुर खीरी मामले में मुस्लिम लड़कों का नाम सामने आते ही लिबरल खेमे में पसरा सन्नाटा

ई तो होना ही था!

लखीमपुर खीरी

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राजनीति एक ऐसा गहरा कुंआ है जिसमें कोई डुबकी लगा भी ले तो अनंत तक जाता जाएगा पर किनारा नहीं पाएगा। एक ऐसा कुआं जो गंतव्य विहीन है, एक ऐसा कुआं जो प्रपंचों से भरा पड़ा है, एक ऐसा क्षेत्र जहां मानवता कम, हैवानियत ज़्यादा दिखाई देती है। हैवानियत इसलिए क्योंकि यहां हर घटना को अलग चश्मे से देखा जाता है। यदि वो वोटबैंक को सूट करती है तो राजनेता उस घटना के घटित स्थान पर जाकर नाक तक रगड़ लेते हैं और अगर वोटबैंक नहीं है तो झक मारने की भी जहमत नहीं उठाते। हालिया लखीमपुर खीरी का मामला इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है जहां दो नाबालिग बेटियों के साथ दरिंदगी को अंजाम दिया गया और बाद में उन्हें मारकर उनकी लाश को पेड़ पर लटका दिया गया। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे दरिंदगी को अंजाम देने वाले बलात्कारियों के रूप में मुस्लिम लड़कों का नाम सामने आने के बाद लिब्रांडुओं, राजनेताओं, विश्लेषकों और यहां तक कि रणनीतिकारों के कुनबे में ऐसा मातम छाया है कि उनके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही है।

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लिबरल कुनबे को कोबरा सूंघ गया है!

दरअसल, यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के निघासन इलाके के एक गांव के बाहर 14 और 17 वर्ष की दो दलित लड़कियों के पेड़ से लटके पाए जाने के एक दिन बाद, पुलिस ने गुरुवार को अपराध में शामिल सभी छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह रेप और गला घोंटने की बताई गई है। इस घटना के बाद एक बार फिर से सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर क्यों ये तत्व अब भी नहीं मान रहे? लेकिन उससे ज़्यादा चर्चा इस बात की है कि जो लिबरल कुनबा अपनी बड़बोली जुबान से हाथरस की घटना पर अपनी चूडियां तोड़ने तक को तैयार था, वो आज ऐसा मौन बैठा है जैसे पूरे कुनबे को सांप नहीं कोबरा सूंघ गया हो।

ध्यान देने वाली बात है कि लखीमपुर खीरी इलाके में गुरुवार को उत्तर प्रदेश पुलिस ने दो नाबालिग दलित लड़कियों का रेप करने और उनकी बेरहमी से हत्या करने के आरोप में जुनैद, सोहेल, आरिफ, हाफिज, करीमुद्दीन और छोटू (गौतम) नाम के छह लोगों को गिरफ्तार किया। मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने बताया कि गिरफ्तारी के दौरान जब आरोपी जुनैद ने भागने की कोशिश की तो उसके पैर में गोली लग गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार, घटना बुधवार की बताई जा रही है जब सोहेल और जुनैद नाम के दो आरोपियों ने दो दलित नाबालिग लड़कियों को गन्ने के खेत में घसीटा और उनके साथ बेरहमी से कुकृत्य किया और उनके दुपट्टों से ही उनका गला घोंट उन्हें एक पेड़ पर लटका दिया गया।

इस घटना में जबसे आरोपियों के नाम बाहर आए हैं जिनमें अधिकांश समुदाय विशेष के हैं तब से न ही लिबरल कुनबे की ओर से वो आक्रामक प्रतिक्रिया आई है और न ही विपक्षी पार्टियों के नेताओं की ओर से ज्यादा कुछ कहा गया है, जो इसी लखीमपुर खीरी में पिछले वर्ष हुई घटना पर अजय मिश्र टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा समेत पूरी भाजपा सरकार को निशाने पर ले रहे थे और हाथरस में हुई ऐसी ही जघन्य घटना पर अपनी छाती पीट रहे थे।

‘एजेंडे में नहीं है तो बोलेंगे ही नहीं’

बात शुरू करें तो विपक्षी नेताओं में राहुल गांधी को ही देख लीजिए, जो हाथरस वाली घटना में स्वयं पहुंच गए थे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका समेत लगभग 200 कार्यकताओं के लाव-लश्कर के साथ हाथरस जाने के लिए निकल पड़े थे। वो भी तब जब पूरे देश में महामारी कानून लागू था और कहीं भी 20 लोगों से ज्यादा को इकट्ठे होने की अनुमति नहीं थी लेकिन राहुल गांधी एक 20 वर्षीय युवती के रेप और उसकी हत्या के बाद अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने के लिए निकल पड़े थे। उस समय ट्वीटों की झमाझम बारिश हो रही थी, एक एक सेकंड की अपडेट जारी हो रही थी। पर इस बार माननीय ट्वीट-ट्वीट खेल तो रहे हैं पर जिस आक्रामकता के साथ वो हाथरस के दोषियों पर बोल रहे थे, इस बार उसका 1% भी नहीं दिख रहा है। कारण वाजिब है, उनकी वोटबैंक में खलल पड़ जाएगी जो उत्तर प्रदेश में पहले ही शून्य है पर वह माइनस में जाने से बचना चाहते हैं।

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अगला नाम है, राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा का, जो चाहे हाथरस रहा हो या लखीमपुर मामला, दोनों समय में उनके ध्येय में अराजकता फैलाकर राजनीति करना था। लखीमपुर खीरी में किसानों पर हुई घटना को लेकर पीएम मोदी, उनके मंत्री, मंत्री के बेटे सबको कठघरे में खड़ा करने वाली प्रियंका इस बार एक ट्वीट करकर अपनी ओर से औपचारिकता पूर्ण कर रही थीं। प्रियंका गांधी ने आरोपियों के बाहर आ चुके नाम लेने की भी ज़हमत नहीं उठायी। क्यों, क्योंकि सब जानते हैं कि यह उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठ रहा था।

 

अगला नाम है, प्रशांत भूषण का, जिन्हें कोई संजीदा नहीं लेता है और सब दूध में आई मक्खी के समान उन्हें छिटक देते हैं। पर अपने अस्तित्व की लड़ाई में वो मोदी सरकार पर आरोप लगाते और बहुत कुछ कह जाते है। फिर वो हाथरस वाला मामला रहा हो या लखीमपुर खीरी में किसानों पर हुई घटना, वो हमेशा चिंघाड़ते दिख जाते थे पर इस बार उन दो नाबालिग बेटियों के साथ हुई दरिंदगी पर प्रशांत भूषण के मुंह से एक शब्द नहीं फूटा। न ही कोई बयान, न ही कोई ट्वीट! क्यों? वजह वही जो सबको पता है, क्योंकि वो आरोपी कुमार-सिंह-शर्मा नहीं हैं इसलिए यहां चुप रहना तो बनता ही है।

https://twitter.com/pbhushan1/status/1315568195718180864

 

 

अगला नाम है, योगेंद्र यादव का। इनके सभी तत्व प्रशांत भूषण से मेल खाते हैं। हाथरस मामले में यह पूछने वाले कि क्या जाति के प्रश्न को उठाना जातिवाद है? क्या न्याय की मांग करना राजनीति है?  वही लखीमपुर खीरी में किसानों पर हुई घटना को लेकर झूठ परोसते गए, जिसके बाद ट्विटर ने उनके ट्वीट को भारत से हटा दिया था। यही योगेंद्र यादव दो नाबालिग बेटियों के साथ हुई दरिंदगी पर इस बार कुछ नहीं बोले, एक ट्वीट तक नहीं। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि आजकल राहुल गांधी के सानिध्य में जा चुके योगेंद्र यादव भारत जोड़ने निकले हैं।

अगला नाम है, मोहम्मद ज़ुबैर का, जो स्वयं को फैक्ट-चैकर कहता है। ज़ुबैर ने लखीमपुर खीरी में किसानों पर हुई घटना पर कई ट्वीट किए थे पर उसकी सच्चाई इतनी थी कि इस साल उसको इन सभी मामलों में कोर्ट ने हाज़िर होने को कहा था। झूठ के चक्कर में उसे जेल भी जाना पड़ा था लेकिन इस बार उससे एक शब्द लिखा नहीं गया क्योंकि इस बार ज़ुबैर के लिए “अब्बा नहीं मानेंगे” वाली परिस्थिति थी।

अगला नाम है, ‘उंगली विशेषज्ञा’ स्वरा भास्कर का। स्वरा इतनी आत्मविश्वासी थीं कि हाथरस वाली घटना पर सीधे सीएम योगी का इस्तीफा मांग लिया था। इन्हीं मैडम ने लखीमपुर में किसानों पर हुई घटना पर उसे नरसंहार तक कह दिया था पर दो नाबालिग बेटियों पर एक शब्द नहीं लिख पाईं।

अगला नाम है,  मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब का। हाथरस वाली घटना रही हो या फिर लखीमपुर में किसानों पर हुई घटना, अय्यूब ने हमेशा बोला पर इस बार नहीं बोला।

सौ बात की एक बात यही है कि “ऊपर से नीचे तक लगते, अब तो हमाम में सब नंगे हैं।” इन सभी की चुप्पी इसलिए ही है क्योंकि यह उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठता और इसी कारण उनके मुंह में दही जम गया है।

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