नेहा कक्कड़, संगीत के क्षेत्र की सबसे बड़ी आपदा है

अच्छे-अच्छे गीतों का कबाड़ा कोई इनसे करवाए!

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अब कोई यह न कह दे कि नेहा कक्कड़ का कोई नया गीत आया है। एक महामारी से किसी तरह निकल के आए हैं कि दूसरी और लाद दी गई हम पर। इस लेख में जानेंगे कि कैसे नेहा कक्कड़ केवल एक घटिया, दो कौड़ी की गायिका नहीं अपितु एक महामारी हैं, जिनके लिए जितना कहें उतना कम पड़ेगा।

हाल ही में सोशल मीडिया पर ये क्लिप वायरल हो रही थी-

अब आप सोच रहे होंगे कि इन्होंने ऐसा क्या किया, जिस पर ये इतना कोपभाजन का शिकार हो रही हैं, तो इन्होंने असल में कुछ ही समय पूर्व यह कांड किया था। हाल ही में फाल्गुनी पाठक की ‘मैंने पायल है छनकाई’ का रीमेक संस्करण’ सामने आया, जिसमें एक बार फिर नेहा कक्कड़ संगीत विद्या का चीर हरण निर्ममता से कर रही थीं। नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar O Sajna Song) ने 19 सितंबर को अपना नया गाना ‘ओ सजना’ रिलीज किया। इसमें उनके साथ क्रिकेटर युजवेंद्र चहल की वाइफ धनश्री वर्मा और टीवी एक्टर प्रियांक शर्मा को कास्ट किया गया है। म्यूजिक तनिष्क बागची का है, मतलब एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा।

अब कलयुग में मानो दुशासन ने इस व्यक्ति का रूप धारण कर लिया था, परंतु धैर्य की भी एक सीमा होती है। जनता ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया, और नेहा कक्कड़ को इस निर्लज्जता के लिए जमकर खरी-खोटी सुनाई, इस बार उनका साथ देने कोई और नहीं, स्वयं फाल्गुनी पाठक सामने आयी।

https://twitter.com/Stars_ki_Duniya/status/1573258367543701504

भाई आज भी जिनके गीत देश भर के नवरात्रि उत्सव या किसी भी सांस्कृतिक पर्व में चार चांद लगा दे और 90s के युवाओं के लिए जिनके गीत अमृत धारा से कम न हो, उनके गीतों के साथ छेड़छाड़ करोगे, तो महोदया आरती तो नहीं उतारेंगी न? वही किया फाल्गुनी पाठक ने। जन विरोध के असंख्य उदाहरणों को उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया और बताया कि कुछ भी कीजिए, पर संगीत का ऐसा विनाश स्वीकार्य नहीं होगा। फाल्गुनी पाठक ने यहां तक कह दिया कि मुझे यह संस्करण सुनके तो बस उल्टी आना बाकी थी।

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फैंस के पोस्ट का स्क्रीनशॉट

उदाहरण के लिए उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपने फैंस के पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर किया है, जिसमें नेहा कक्कड़ को गाने के लिए कोसा गया है और फाल्गुनी की तारीफ हुई है। इस पोस्ट में लिखा है, “नेहा कक्कड़ तुम कितना नीचे जा सकती हो? हमारे लिए हमारे पुराने क्लासिक्स को बर्बाद करना बंद करो”

फाल्गुनी हम सब लज्जित हैं, नेहा अब तक जीवित है। परंतु ढिठाई की पराकाष्ठा देखिए, इस व्यक्ति ने क्षमा मांगना तो छोड़िए, उल्टे यहां तक कहा कि कुछ लोग उसकी सफलता से जलते हैं, इसीलिए ऐसा बोलते हैं। कमाल हैं, फिर तो उर्वशी रौतेला और कमाल राशिद खान तो संसार के सबसे गुणी प्राणी हुए, क्योंकि संसार के सभी व्यक्ति उनकी सफलता से जलते हैं, नहीं?

अरे गरीबों की निकी मिनाज, कुछ लज्जा वज्जा है कि नहीं, या वो भी इंडियन आइडल में त्याग दी? आपके आंसुओं से भी अधिक फेक तो आपकी कला है, और अभी तो आपके भाई, टोनी कक्कड़ के कर्ण रक्तीय टैलेंट पर प्रकाश भी नहीं डाला है, अन्यथा कई संगीत प्रेमी इसे आजीवन कारावास दिलवा चुके होते।

कल्पना कीजिए, अगर डूबा-डूबा रहता हूं को टोनी कक्कड़ रीमिक्स कर दें तो कैसा प्रतीत होगा, या बादशाह ‘अब मुझे रात दिन’ का रीमिक्स कर दें तो कैसा लगेगा? बिल्कुल ठीक सोचे आप, मिर्जापुर के मुन्ना भैया या गुड्डू पंडित की भांति आप भी हाथ में पिस्तौल लिए सबसे पहले उस व्यक्ति के घर पर धावा बोल देंगे अपने लौंडे लपाटों समेत। ये सभ्य समाज में अशिक्षित, अवैध प्रतीत होगा, पर क्या इन लोगों ने कोई और विकल्प छोड़ा है?

अब कुछ नमूने टी सीरीज़ को भी घेरते हैं कि इनके पास राइट्स हैं, ये सबको रीमिक्स करते-फिरते हैं, इनको घेरों। परंतु रीमिक्स तो ‘कांटा लगा’ भी था, रीमिक्स ‘बिन तेरे सनम’ भी था, रीमिक्स तो ‘तूने मुझे बुलाया’ तक किया था। अब भले आप वीडियो देखकर कहें कि अजीब हैं, अयोग्य हैं, परंतु सुने तो सब होंगे, और किसी न किसी पार्टी में गुनगुनाए भी होंगे। तो समस्या निस्संदेह कंपनी में तो नहीं हुई न?

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कर्णप्रिय भजन और गीतमालाएं

समस्या प्रबंधन में है। निस्संदेह टी सीरीज़ दूध की धुली नहीं है और पैसों के लिए वह कुछ भी कर सकती है, पर जिस कंपनी ने स्वयं देश को एक से बढ़कर एक सुरमयी, कर्णप्रिय भजन और गीतमालाएं दी हों, वह थोड़े से लाभ के लिए अपने ही इस संसार को उजाड़ दें, ये लालच है या व्यावहारिकता की कमी का परिणाम।

ऐसा इसलिए क्योंकि यह वही टी सीरीज़ है, जो एक अनजान से गीत को पुनः वायरल कराने का भी दम रख सकती है। लूडो देखी है? अरे वही नेटफ्लिक्स वाली फिल्म, जिसमें एक पुराने गीत को दर्शकों ने इतना सराहा कि आज वह वर्षों बाद पुनः वायरल हो गया और आज कई लोगों के लिए वह उनका कॉलर ट्यून बन गया है। किसे पता था कि 1951 में भगवान दादा की फिल्म ‘अलबेला’ में गाए गीत ‘ओ बेटा जी, अरे ओ बाबू जी’ पुनः सबका पसंदीदा बन जाएगा? ठीक इसी तरह कभी प्यासा के चर्चित गीत ‘जाने क्या तूने कही’ अब आर बाल्की के फिल्म ‘चुप’ की कृपा से पुनः लोकप्रिय बन रही है।

तो फिर समस्या कहां है और नेहा कक्कड़ जैसों से क्या दिक्कत है? समस्या कल भी वही है और आज भी वही है – व्यवसायीकरण, जिस पर संगीतज्ञों और कलाकारों का कोई नियंत्रण नहीं था, और वे लोकलाज के भय से अपने अधिकारों पर बात करने से हिचकते थे।

2011, जब भारतीय संगीत का ‘पुनरुत्थान’ शुरू हुआ। पंजाबी पॉप में हिरदेश सिंह उर्फ यो यो हनी सिंह अपनी सुप्रसिद्ध एल्बम ‘इंटेरनेश्नल विलेजर’ लेकर आए। इस एल्बम ने एक ही रात में भारतीय संगीत उद्योग का कायापलट कर दिया, और एक के बाद एक पॉप और रैप म्यूजिक की बाढ़ आ गई। अगले ही वर्ष ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में करण जौहर ने प्रसिद्ध गीत ‘डिस्को दीवाने का रीमेक किया। ये रीमेक अपने आप में मूल गीत के साथ किया गया एक भद्दा खिलवाड़ था, और कहीं न कहीं इसी ने भारतीय संगीत के पतन की नींव रखी।

इस पर TFI ने कुछ समय पूर्व एक लेख भी लिखा था, जहां हमने बताया था, “2012 में करण जौहर ने अपने दोयम दर्जे की फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में ‘डिस्को दीवाने’ का एक घटिया रीमेक बनाया था, और तब से आज तक, कभी अपने कर्णप्रिय गीतों से लोगों को थिरकने पर विवश करने वाला बॉलीवुड आज ‘कॉपी पेस्ट’ की दुकान बन चुका है। जिसका श्रेय केवल और केवल करण जौहर को ही जाता है। लेकिन ये सिलसिला यहीं पर नहीं रुका, बल्कि ‘हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया’, ‘कपूर एंड संस’, ‘बार-बार देखो’, ‘ओके जानु’, ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ इत्यादि से इन्होंने बॉलीवुड के संगीत में रचनात्मकता को खत्म करने की नींव डाली थी।”

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करण जौहर ही बलि का बकरा क्यों?

अब आप कहेंगे कि क्या करण जौहर को बलि का बकरा बनाते रहते हो? परंतु जैसे टीवी के सत्यानाश में एकता कपूर ने भरपूर योगदान किया है, वैसे ही फिल्मों और संगीत को अप्रिय और अझेल बनाने में करण जौहर का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

प्रसिद्ध हॉलीवुड मूवी ‘शिन्डलर्स लिस्ट’ में एक बहुत ही गहरा संवाद कहा गया था, “जब मैं कोई काम करता हूँ, तो मैं चाहता हूँ कि उसकी एक पहचान हो, एक चमक हो। इसमें मैं योग्य हूँ – काम करने में नहीं, बल्कि उसे सजाकर पेश करने में”।  करण जौहर इस संवाद का जीता जागता स्वरूप हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं जो कूड़े अथवा मल को भी सोने की तश्तरी में ऐसे सजाकर पेश करेंगे कि आप उसे चखने को विवश हो जाएंगे, और इस बात को जनाब ने कुछ अधिक गंभीरता से लिया है। विश्वास नहीं होता तो ब्रह्मास्त्र को ही देख लीजिए।

अब भाई भतीजावाद या वंशवाद बॉलीवुड के लिए कोई नई बात नहीं है, ये तो बॉलीवुड के प्रारंभ से हम देखते आ रहे हैं। लेकिन इसे बॉलीवुड के लिए एक हानिकारक विष में परिवर्तित करने का काम किया है करण जौहर ने। आज इन्हीं के कारण योग्यता और रचनात्मकता ने बॉलीवुड में बैक सीट ले ली है, चाहे वो कहानी के क्षेत्र में हो या फिर संगीत के क्षेत्र में। कट कॉपी पेस्ट की संस्कृति भी इसी व्यक्ति के कारण ही बॉलीवुड में इतने धड़ल्ले से ट्रेंडिंग बनी और इसे निर्लज्जता से इसी ने प्रोमोट करवाया, क्योंकि एण्ड में बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।

परंतु केवल करण जौहर अकेले नहीं थे, सफलता के मद में चूर हनी सिंह और बादशाह ने भी रैप के नाम पर संगीत के साथ कुकर्म करना प्रारंभ किया। इसके लक्षण हमने ‘देसी कलाकार’ से ही दिखने चाहिए था, परंतु मिठास में घोले विश को पहचानने की कला सब में थोड़ी न होती है, अधिकतर भ्रमित हो ही जाते हैं। इसका असर 2016 के पश्चात भारतीय संगीत पर दिखना प्रारंभ हो गया, जब वह संगीत न होकर कचरा बन गया।

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आप कहेंगे कि नेहा कक्कड़ अपने दम पर आई हैं, किसी धनाढ्य परिवार से नहीं संबंध रखती हैं, परंतु एक औसत संगीतकार जिसे अधिकतम समय औटोट्यून का सहारा लेना पड़े तो समझ जाइए कि स्थिति कितनी खराब है। यह महामारी समय रहते नहीं रोकी गयी तो भारतीय संगीत का सर्वनाश हो जाएगा।

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