जम्मू और कश्मीर: हिंदू और सिख शरणार्थियों को आखिरकार मिली नागरिकता

68 वर्ष बाद वोट देने का अधिकार आखिरकार मिल ही गया!

जम्मू कश्मीर

सही ही कहते हैं कि सब्र का फल एक न एक दिन मिलता अवश्य है। वो कश्मीर जिसे धरती पर स्वर्ग के समान माना जाता हैं, वो कश्मीर जो भारत का गौरव हैं, उस कश्मीर में सदैव ही आतंकवादी अपने नापाक हरकतों के माध्यम से अशांति फैलाने के प्रयास करते आए हैं। कश्मीरी अल्पसंख्यकों ने सदैव ही अपने सुखमय जीवन और मूलभूत आवश्यकताओं को सही तरीके से पाने के लिए काफी संघर्ष किया है।

हालांकि अब कश्मीर बदलने लगा हैं। जब से मोदी सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया, तब से कश्मीर के हालात बदल रहे हैं। अल्पसंख्यकों में एक बार फिर अपने अधिकारी पाने के लिए उम्मीद की किरण जगी है। इस क्रम में अब जम्मू-कश्मीर मे रहने वाले हिंदुओं और सिखों को नागरिक के रूप में वो अधिकार मिलने लगे है, जिससे वो सालों से वंचित रहे।

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68 वर्षों बाद मिलेगा जमीन का मालिकाना हक

जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को लेकर एक बड़ा निर्णय लिया गया है। सरकार ने शरणार्थियों को भूमि का स्वामित्व अधिकार देने की प्रक्रिया की शुरुआत की है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए और भूमि का स्वामित्व देने के लिए परिवारों की कुल संख्या, कब्जे के अंतर्गत की कुल भूमि और भूमि की स्थिति के बारे मे जानकारी जुटाई जाएगी।

सरकारी आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1947 के पश्चात पाकिस्तान से लगभग 5,400  परिवारों ने जम्मू के सीमावर्ती इलाकों में जाकर शरण ली थी। इन सभी पाकिस्तानी शरणार्थी में अधिकांश हिंदू और सिख परिवार शामिल थे। वर्ष 1954 में इन परिवारों के लिए जम्मू, सांबा और कठुआ के इलाको में 5,833 एकड़ भूमि आवंटित की गई थी।

भूमि आवंटित होने के बावजूद भी इन परिवारों को आज तक जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाया था। अनुच्छेद-370 लागू होने के कारण माना जाने लगा था कि इन लोगों इन लोगों को कभी भी जम्मू-कश्मीर के नागरिक के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा और इन्हें इनका अधिकार नहीं मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोगों को ना तो किसी भी तरह की जमीन खरीदने का अधिकार था और ना ही किसी सरकारी नौकरी करने का अधिकार प्राप्त था।

हालांकि मोदी सरकार ने वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद-370 की बेड़ियों से मुक्त कराया, जिसके बाद इनमें एक उम्मीद की किरण जगी। इसके साथ ही सरकार ने शरणर्थियों के प्रत्येक परिवार को 5.5 रुपये की राशि भी प्रदान कर रही है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार पाकिस्तानी शरणार्थियों को उनकी जमीन का मालिकाना अधिकार देने हेतु राजस्व विभाग के द्वारा जम्मू, सांबा और कठुआ जिला प्रशासन को निर्देश दे दिए गए है। विभाग के अनुसार इस प्रक्रिया को शीघ्र ही पूरा कर लिया जाएगा। खबरें तो ऐसी भी आ रही है कि बहुत जल्द एक बड़े समारोह के आयोजन के जरिए इन सभी शरणार्थियों को उनकी जमीन का अधिकार देने की घोषणा भी की जा सकती है।

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वोट डालने का भी मिलेगा अधिकार

केवल इतना ही नहीं इन पाकिस्तानी शरणार्थी परिवारों को जमीन का मालिकाना हक मिलने के साथ ही वोट डालने का अधिकार भी मिलने जा रहा है। पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकेंगे। आंकड़ों पर गौर करें तो मालूम चलता है कि पश्चिमी पाकिस्तानी में आए शरणार्थियों की आबादी एक लाख से भी अधिक है। बीते कुछ वर्षों में यहां शरणार्थी परिवारों की संख्या बढ़कर 22 हजार तक पहुंच चुकी है। ऐसे में यह सभी शरणार्थी मिलकर एक मजबूत वोट बैंक बनकर सामने आएंगे। माना जा रहा कि इन शरणार्थी परिवारों को वोट देने का अधिकार मिलने से भाजपा को विधानसभा चुनाव में काफी लाभ हो सकता है। बता दें कि इस वर्ष के अंत आखिरी में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी हो रही है।

आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान की गंदी नजरें कश्मीर पर पड़ने लगी थी। 1947 में ही पाकिस्तान ने कश्मीर में हिंदू और सिखों का कत्लेआम शुरू कर दिया था। 22 अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर हमला करके पाकिस्तान ने कश्मीर के एक तिहाई हिस्से पर कब्जा जमा लिया था। इस हमले में पाकिस्तानी सेना भी शामिल थी। इस दौरान कई सारे ऐसे दर्दनाक ओर भयानक किस्से हुए जो सुनकर अपनी रूह ही कांप जाए। इसमें बड़ी संख्या में हिंदुओं और सिखों को मौत के घाट उतारा गया। उनके साथ मारपीट हुई और महिलाओं के साथ बलात्कार तक किए गए। रिपोर्ट्स के अनुसार इस दौरान 50 हजार से भी अधिक हिंदुओं और सिखों ने अपनी जान गंवाई थी। इस दौरान सबसे बड़ा नरसंहार मीरपुर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। विभाजन के समय आज के पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों में संपन्न हिंदू और सिख आबादी हुआ करती थी। इस क्षेत्र में आज हिंदुओं या सिखों का कोई नहीं बचा है।

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