साल 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर विपक्षी दलों ने विपक्षी एकता का झुनझुना बजाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी, सपा, टीएमसी एनसीपी, आप जैसे राजनैतिक दल इस कवायद में जुट गए हैं। इन सभी राजनैतिक दलों की मंशा बस इतनी सी है कि किसी भी कीमत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 के चुनाव में सत्ता से हटाया जाए, लेकिन TFI आपको पहले ही बता चुका है कि किस तरह से यह बिखरा हुआ विपक्षी कुनबा प्रधानमंत्री मोदी के लिए 2024 की राजनैतिक लड़ाई को आसान बनाने का कारण बनेगा। भले ही विपक्ष बिखरा हो लेकिन जिन राज्यों में भाजपा के सामने दो से ज्यादा राजनैतिक दलों का चक्रव्यूह है, वहां पार्टी ने अपनी चुनावी प्लानिंग शुरू कर दी है और मैदान पर भाजपा के राजनैतिक चाणक्य यानी गृहमंत्री अमित शाह उतर चुके हैं।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे अमित शाह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बिहार में ‘उत्तर-प्रदेश 2014‘ की पुनरावृति करने जा रहे हैं।
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2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां
दरअसल, विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। ऐसे में भाजपा भी धीरे-धीरे चुनावी मोड में आ चुकी है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि पार्टी आने वाले चुनावों को लेकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद में कोई बदलाव नहीं करने वाली है। अर्थात 2024 के लोकसभा चुनावों तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद जेपी नड्डा के पास ही होगा। वहीं अब भाजपा के चाणक्य अमित शाह भी राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज़ से जनता की नब्ज टटोलने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। अहम बात यह है कि उन्होंने अब चुनावी लिटमस टेस्ट की शुरुआत बिहार से की है।
वर्तमान राजनैतिक समीकरणों में भाजपा को सबसे बड़ा झटका बिहार में लगा है। यहां उसके पुराने सहयोगी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी को एक बार फिर झटका देते हुए विपक्षी गठबंधन आरजेडी कांग्रेस के महागठबंधन का दामन थाम लिया। चुनाव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बिहार एक महत्वपूर्ण राज्य है ऐसे में भाजपा बिहार को लेकर सक्रिय हो गई है। हाल ही गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार के पूर्णिया में एक जनसभा को संबोधित किया और इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर तगड़ा हमला बोला है।
अमित शाह गठबंधन टूटने के बाद पहली बार बिहार पहुंचे और यहां उन्होंने सीमांचल से बिहार सरकार और विपक्षी दलों की सरकार पर तगड़ा हमला बोला है। अमित शाह ने कहा, “स्वार्थ के लिए नीतीश कुमार लालू यादव की गोदी में जाकर बैठ गए। मोदी सरकार में किसी को डरने की जरूरत नहीं है। नीतीश कुमार ने स्वार्थ और सत्ता के चलते धोखा दिया है।” शाह ने कहा, “आज मैं जब बिहार में आया हूं तब लालू और नीतीश की जोड़ी को पेट में दर्द हो रहा है। वो कह रहे हैं कि बिहार में झगड़ा लगाने आए हैं, कुछ करके जाएंगे। लालू जी झगड़ा लगाने के लिए मेरी जरूरत नहीं है, आप झगड़ा लगाने के लिए पर्याप्त हैं, आपने पूरा जीवन यही काम किया है।”
अपनी सीमांचल की रैली के दौरान अमित शाह ने कहा, “नीतीश जी, लालू जी की गोद में बैठ गए हैं. अब यहां डर का माहौल बन गया है लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है। आपके साथ मोदी जी की सरकार है।” अमित शाह ने सीमांचल में कहा, “हमने जो वादा किया था, उसका हिसाब लेकर आया हूं. नीतीश जी मेरा भाषण सुन रहे होंगे। उनसे कहना चाहूंगा कि कागज-कलम लेकर बैठें और इस हिसाब को नोट करें।” अमित शाह ने बिहार में भाजपा की जीत का दावा किया है। उन्होंने कहा है कि बिहार की जनता ने आपको (सीएम नीतीश कुमार) लंबे समय तक संदेह का लाभ दिया, अब वे जानते हैं कि इस बार न तो लालू की पार्टी आएगी और न ही आपकी पार्टी। केवल इस बार बिहार में पीएम मोदी का कमल खिलेगा।”
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अमित शाह अचानक बिहार क्यों पहुंच गए?
अब अहम बात यह है कि फिलहाल बिहार में कोई चुनाव नहीं है और फिर भी अमित शाह अचानक बिहार क्यों पहुंच गए? तो इसकी इसकी वजह है कि वे राजनैतिक लिटमस टेस्ट कर रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साल 2024 की चुनावी रणनीति बनाना शुरू कर दिया है और उन्होंने सबसे पहले बिहार के उस हिस्से का दौरा किया है जहां पर भाजपा की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। दरअसल, सीमांचल के इस क्षेत्र में अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया जिले आते हैं। भाजपा को इन जिलों में कभी कोई विशेष लाभ होता नहीं दिखायी दिया। पार्टी की स्थिति यहां निम्न स्तर की रही है।
अहम बात यह है कि सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी रहती है जोकि इस क्षेत्र में चुनावी समीकरणों को सबसे अधिक प्रभावित करने के साथ ही यह निर्णय भी करती है कि किस पार्टी की विजय यहां सुनिश्चित होगी। मुस्लिम समुदाय के बहुसंख्यक होने के चलते यह स्वाभाविक है कि सीमांचल के क्षेत्र में भाजपा की स्थिति दयनीय है। इस क्षेत्र में एक समय आरजेडी का दबदबा था, इसके बाद पप्पू यादव ने भी सीमांचल की भूमि पर मुस्लिम यादव समीकरण बनाया। वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सभी राजनैतिक दलों का खेल खराब कर दिया और पार्टी ने 5 सीटें जीत लीं।
सीमांचल की जनसांख्यिकी की बात करें तो क्षेत्र में बांग्लादेश से पलायन करके आए मुस्लिम घुसपैठियों की एक बड़ी आबादी है जिन्होंने अवैध तरीके से नागरिकता प्राप्त कर ली है। ऐसे में अमित शाह सीमांचल की भूमि पर आकर यह संभावनाएं तलाश रहे हैं कि क्या इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र में हिंदुत्व के माध्यम से पार्टी कुछ सफलता प्राप्त कर सकती है या नहीं? कोरोना महामारी के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय यह कह चुका था कि कोरोना के बाद देश में सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर कदम उठाए जाएंगे। ऐसे में यह माना जा रहा है कि अमित शाह सीमांचल में एनआरसी का गणित सेट कर रहे हैं।
जानकारों की मानें तो अमित शाह अब जल्द ही एनआरसी लागू करने की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। ऐसे में यह संभव है कि घुसपैठियों से भरी सीमांचल की इस भूमि से एनआरसी के माध्यम से मुसलमानों की संख्या में कमी आए जिससे इस क्षेत्र में हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनैतिक सफलता पायी जा सके। महत्वपूर्ण बात यह है कि बिहार में जेडीयू और आरजेडी समेत सभी विरोधी दल भी मुस्लिम वोटों को अपने समीकरण में अवश्य रखते हैं, जिसके चलते यह माना जा रहा है कि यदि NRC लागू होता है तो उसका लाभ न केवल सीमांचल बल्कि पूरे बिहार में भाजपा के हिस्से आ सकता है।
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महागठबंधन का चक्रव्यूह
बिहार में नीतीश कुमार के कथित महागठबंधन वाले चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए अमित शाह 2014 में उत्तर प्रदेश में चला गया दांव अपना सकते हैं। बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण सबसे ज्यादा है और जेडीयू और आरजेडी इसी जातिगत समीकरण के दम पर भाजपा को बिहार से बुरी तरह हराने का दावा कर रही है। सबसे पहले इस बात पर ध्यान देना होगा कि भाजपा को आज भी बिहार की शहरी सीटों पर लाभ देखने को मिलता है, पटना, मुजफ्फरपुर, गया जैसे जिलों में भाजपा की अच्छी पकड़ मानी जाती है। जिसके चलते माना जा रहा है कि अमित शाह को बिहार की 3 सीटों पर अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे। यहां पूरी रणनीति के तहत भाजपा ने क्षत्रिय वोट बैंक को साधने के लिए राजनाथ सिंह को आगे किया, ब्राह्मण वोट के लिए कलराज मिश्र, ओबीसी वोट बैंक के लिए केशव प्रसाद मौर्य आगे आए। भाजपा ने यहां छोटी-छोटी जातियों को भी साधने के प्रयास किए। पार्टी ने राज्य में अलग-अलग जातियों के अलग-अलग प्रतिनिधि खड़े कर दिए जिस से प्रत्येक जाति के लोगों को यह भान हो कि भाजपा में उनकी पकड़ मजबूत हैं।
इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने और दूसरी पार्टियों को साधने के लिए उन्हीं की जाति के नेताओं को खड़ा कर लोगों के मन में पार्टी के प्रति विश्वास पैदा करने का प्रयास किया। प्रत्येक जाति के शीर्ष नेताओं को अहमियत देकर पार्टी ने उन्हें चुनावों में वोट दिलाने का जिम्मा दिया और अमित शाह का यह दांव सही साबित हुआ, भाजपा ने यहां अपने दम पर 80 में से 71 सीटें जीत ली थी। इसी के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में भगवाकरण का शंखनाद भी हो गया।
ऐसे में माना जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश का 2014 वाला फार्मूला बिहार में भी लागू कर सकते हैं बिहार में यादव, भूमिहार, ब्राह्मïण, राजपूत, कायस्थ, कोईरी, कुर्मी, दलित, बनिया, कहार, धानुक, मल्लाह आदि जातियां अति सक्रिय मानी जाती हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार ने यहां दलित महादलित का कार्ड भी खेला हुआ है। अब बिहार के चुनावी जातिगत समीकरण के लिहाज से देखें तो इन प्रमुख जातियों में चुन-चुनकर अपने बेहतरीन नेता आगे कर सकते हैं जो कि इन जातियों के बीच जिला स्तर से लेकर बूथ स्तर तक सम्मेलनों का आयोजन कर अपनी जाति के लोगों को लुभाने की कोशिश करेंगे।
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हिंदुत्व का मुद्दा
वहीं भाजपा को यह पता है कि राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी का हिंदुत्व का मुद्दा अन्य राजनैतिक दलों पर सबसे अधिक भारी पड़ता है। ऐसे में पार्टी यहां हिंदुत्व के रास्ते पर चलकर बड़े वोट बैंक को अपनी तरफ कर सकती है। पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में, साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में इसी हिंदुत्व की राह पर चलकर जातिगत समीकरणों को बुरी तरह तोड़ा दिया था। माना जा रहा है कि इस बार बिहार में भी भाजपा इसी राह पर चलकर नीतीश के कथित महागठबंधन वाले चक्रव्यूह को ध्वस्त कर जीत को पा सकेगी।
साल 2014 के लोकसभा चुनावों को देखें तो आरजेडी जेडीयू सभी के विपरीत लगने के बाद भी भाजपा ने यहां पर एक बड़ी राजनैतिक बढ़त बनायी थी जिसका परिणाम यह था कि NDA ने राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 28 पर अपना कब्जा जमाया था। यह दिखाता है कि भाजपा की केंद्रीय राजनीति को लेकर बिहार में एक विशेष लोकप्रियता है जोकि पार्टी के लिए लाभप्रद हो सकती है। 2019 के चुनावों में भाजपा को एक बड़ी क्षति इसलिए पहुंची क्योंकि उसने जदयू से गठबंधन कर लिया और उसे अपने जीते सांसदों को बैठाना पड़ा।
बिहार में साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और नीतीश का गठबंधन था लेकिन इस गठबंधन की जीत की महत्वपूर्ण कड़ी भाजपा साबित हुई जिसने जेडीयू की सत्ता विरोधी लहर के बाद भी 70 से अधिक सीटें जीती पर इसी का परिणाम था कि एनडीए ने सरकार बनायी। ऐसे में माना जा रहा है कि साल 2024 के लोकसभा चुनावों में जिन्होंने मजबूरी में जेडीयू को भाजपा को जिताने के उद्देश्य से वोट किया था, वे जेडीयू से नाराज होकर भाजपा के पाले में जा सकते हैं जिसका बड़ा लाभ भाजपा को होगा।
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बिहार के वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य और अमित शाह की अति सक्रियता यह दर्शा रही है कि एक तरफ जहां देश में एनआरसी की आहट हो सकती है तो वहीं जातिगत समीकरणों को तोड़ने के लिए पार्टी उत्तर प्रदेश का 2014 वाला फार्मूला लागू कर सकती है जिससे साल 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी एकता का गुब्बारा एक छोटी सी पिन से फोड़ सके।
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