भाजपा बोम्मई को ‘नया येदियुरप्पा’ बनाना चाहती थी, वो ‘राज ठाकरे’ बन गए

बोम्मई, जो कर रहे हैं- कर्नाटक के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है!

Basavaraj Bommai

भारतीय जनता पार्टी ने सीएम बदलीकरण में कर्नाटक को बीते वर्ष जुलाई में चुना था। यहां अपने पुराने नेता और राज्य में लिंगायत समुदाय को एकमुश्त भाजपा से जोड़ने वाले बी एस येदियुरप्पा के उत्तराधिकारी के रूप में बसवराज बोम्मई को चुना। पर किसे पता था कि जिन बोम्मई को भाजपा येदियुरप्पा पार्ट-2 बनाना चाहती थी वो राज ठाकरे बन जाएंगे। कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई कुछ ऐसा कर रहे हैं जिससे वो कर्नाटक के मूल वोटरों को तो साधना चाह रहे हैं पर वो विकसित कर्नाटक के समूल नाश की नींव रख रहे हैं।

हिंदी दिवस मनाए जाने पर कड़ी आपत्ति

दरअसल, कर्नाटक में भाषाई प्रभुता को लेकर द्वंद्व इस हिन्दी दिवस पर सरकार पर हावी हो रहा था। 14 सितंबर को, कन्नड़ समूहों और विपक्षी नेताओं ने राज्य सरकार द्वारा हिंदी दिवस मनाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके बाद मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने एक बयान जारी किया कि उनकी सरकार कर्नाटक में कन्नड़ को अनिवार्य बनाने के लिए एक विशेष कानून ला रही है। इसी पृष्ठभूमि में गुरुवार 22 सितंबर को कन्नड़ भाषा व्यापक विकास विधेयक 2022 पेश किया गया। इस विधेयक को अगर यूं कहा जाए कि यह दबाव में आकर लाया गया है तो कोई बड़ी बात नहीं होगी पर इसके बिंदु अवश्य एक बड़े आघात की ओर इशारा कर रहे हैं जो आगामी भविष्य में भाजपा और बोम्मई सरकार को होने वाला है।

बता दें जो बसवराज बोम्मई अब कर रहे हैं, ऐसा महाराष्ट्र में राज ठाकरे करने का प्रयास कर चुके थे और आज वो और उनकी पार्टी कहां है इसका व्याख्यान करने की कोई आवश्यकता तो है ही नहीं। ज्ञात हो कि, फरवरी 2008 में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासियों के खिलाफ एक हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया जिसका सर्वाधिक असर राजधानी मुंबई पर हुआ। शिवाजी पार्क में एक रैली में राज ने उस दौरान यह चेतावनी दी कि अगर मुंबई और महाराष्ट्र में इन लोगों (उत्तर भारतीयों) की दादागिरी (डराने वाला प्रभुत्व) जारी रही तो उन्हें महानगर छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा। उस समय राज ठाकरे और समाजवादी पार्टी नेता अबू आज़मी को एक साथ गिरफ्तार किया गया था और ₹15,000 के जुर्माने पर रिहा कर दिया गया था।

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राज ठाकरे की सार्वजनिक चेतावनी

अब राज ठाकरे तो राज ठाकरे ठहरे, इन गिरफ्तारियों और केसों से उन्हें कभी फर्क ही नहीं पड़ा थ। फरवरी के बाद जुलाई 2008 में राज ठाकरे ने एक सार्वजनिक चेतावनी जारी की कि मुंबई में दुकानों को मौजूदा अंग्रेजी साइनबोर्ड के अलावा मराठी साइनबोर्ड होना आवश्यक हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि एक महीने के बाद उनकी पार्टी ‘मनसे’ के कार्यकर्ता गैर-मराठी साइनबोर्ड को काला करना शुरू कर देंगे। सितंबर 2008 में मनसे कार्यकर्ताओं ने मांग को लागू करने के लिए साइनबोर्ड को काला करना शुरू किया, जिसके बाद अधिकांश दुकान मालिकों ने इसका अनुपालन किया। छह मनसे कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया लेकिन बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया।

अब कर्नाटक की बात करें तो जिस विधेयक को बोम्मई सरकार की ओर से बीते गुरुवार को पेश किया गया है उसमें जिन आधारों का उल्लेख किया गया है, उन सभी में कर्नाटक को सर्वांगीण उन्नति के इतर उत्तर भारतीयों और जो लोग मूल रूप से कर्नाटक के नहीं है, यह विधेयक उनके विरुद्ध एक तुगलकी फरमान है। यहां मूल कन्नड भाषाई लोगों को हर क्षेत्र में प्राथमिकता देने की बात कही गई, ऐसा कर प्रवासी लोगों को हर ओर दरकिनार कर बहिष्कृत महसूस कराने का पुख्ता इंतज़ाम किया गया है।

नये विधेयक में प्रस्ताव है कि कन्नड़ को उच्च शिक्षा और तकनीकी पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाए। यह ठीक है कि राज्य की सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा को पढ़ाया जाना एक सार्थक कदम है पर इसे किसी भी छात्र पर थोपा न जाए इसका विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।

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उच्च शिक्षा में आरक्षण का भी प्रस्ताव

यह विधेयक उन छात्रों के लिए उच्च शिक्षा में आरक्षण का भी प्रस्ताव करता है, जिन्होंने कक्षा 1 से 10 तक कन्नड़ माध्यम से पढ़ाई की है। अब यह कितना विरोधाभासी है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जो कन्नड़ नहीं जानते उनकी क्षमता उस नौकरी में अन्य किसी कन्नड़ भाषी से कहीं अधिक है। ऐसे में ऐसा आरक्षण सामर्थ्यवान को पीछे धकेल देगा जो कि ठीक नहीं है।

यह विधेयक कर्नाटक औद्योगिक नीति 2020-25 में कंपनियों को कन्नडिगों के लिए 70% और ग्रुप डी के कर्मचारियों के लिए 100% आरक्षण देने का प्रावधान लाता है जो फिर से बहुत घातक है। और तो और नये विधेयक में लिखित है कि उन कंपनियों को उन सभी लाभों से वंचित कर दिया जाएगा जो इसका पालन नहीं करते हैं।

इस विधेयक के अनुसार, आरक्षण के प्रतिशत का पालन नहीं करने वाली निजी कंपनियों को राज्य सरकार द्वारा भूमि रियायतों और कर छूट से वंचित किया जाएगा और साथ ही सूक्ष्म रूप से जुर्माना वसूला जाएगा जो कि जायज़ नहीं है।

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इस पूरे विधेयक में सारे बिंदु प्रवासियों के खिलाफ जाते प्रतीत हो रहे हैं। जो प्रवासी बेंगलुरु को सिलिकॉन वैली बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाते आए आज उन्हीं प्रवासियों को राज्य में अछूत बना छोड़ दिया है। यह निश्चित रूप से भाजपा और बोम्मई सरकार के लिए घातक साबित होगा क्योंकि यह न्याय नहीं अन्याय है।

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