मानवता को शर्मसार करने वाला सबसे क्रूर खेल था सर्कस, अच्छा है यह विलुप्त हो गया

सर्कस में जो आपकी आंखों के सामने दिखता है उससे बिल्कुल उलट है पर्दे के पीछे का खेल!

सर्कस

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सर्कस के बारे में तो आप जानते ही होंगे। जी हां, हम उसी सर्कस की बात कर रहे हैं, जहां जानवरों के कई खेल और ऊंची-ऊंची रस्सी पर लटकती लड़कियों और रंग-बिरंगे कपड़े पहने बौने को लेकर तमाम तरह के करतब दिखाए जाते हैं। कभी न कभी आपने भी सर्कस देखा ही होगा। लंबे समय तक सर्कस और इसके कलाकारों के हैरतअंगेज कारनामों के कारण यह आकर्षण का केंद्र बना रहा। परंतु अब धीरे धीरे यही सर्कस विलुप्त होने की कगार पर पहुंचता चला जा रहा है। दो दशक पहले तक देश के अलग अलग हिस्सों में 127 के करीब सर्कस हुआ करते थे, जो अब घटते-घटते 17 के आसपास पहुंच गए है। देखा जाए तो अच्छा ही है कि सर्कस समाप्त हो रहे हैं क्योंकि वह सर्कस ही थे जिन्हें मानव दुराचारता का सबसे क्रूर प्रदर्शन माना जा सकता है।

सर्कस में जानवरों के उत्पीड़न की बात तो किसी से छिपी नहीं है। शेर को जंगल का राजा कहा जाता है। शेर दुनिया का सबसे खतरनाक और खूंखार जानवर होता है, जिससे हर कोई खौफ खाता है। परंतु जंगल के इसी राजा को पिंजरे में बंद कर रिंग मास्टर के इशारे पर उठने-बैठने और तमाम तरह के करतब दिखाने को विवश किया जाता है। कई जानवरों को डरा धमकाकर, तंग कर छोटे पिंजरों में कैद कर दिया जाता है, जहां उन्हें खुलकर घूमने तक की अनुमति नहीं होती। Circus में इस्तेमाल होने वाले जंगली जानवर अपने पूरे जीवन का लगभग 96 प्रतिशत जंजीरों या पिंजरों में बिताते हैं। घोड़ों को अक्सर ऐसे बक्सों में बंद किया जाता है, जिसमें वो घूमने में असमर्थ होते हैं। बड़ी बिल्लियां अपने पिंजरों में हिल तक नहीं पाती। वहीं, हाथियों को स्थायी रूप से जंजीरों में बांधा जाता है। सोचिए अगर आपको अपना पूरा जीवन किसी इस तरह किसी बंद बक्से में बिताने को कहा जाए तो? इसकी कल्पना से भी आपको डर लगता है न?

केवल इतना ही नहीं, इनके साथ उत्पीड़न की हर हद को पार किया जाता है। उन्हें पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लाने के लिए अत्याचारों की हर सीमा को पार किया जाता है। सर्कस में जानवरों को मारना पीटना बेहद ही आम बात है। जैसे कि जब कोई शिशु हाथी Circus में आता हैं, तो कुछ हफ्तों तक उसके साथ लगातार मारपीट की जाती है, जिससे वह पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दे और प्रशिक्षकों की बातों का पालन करना सीखे। इसके अलावा यह जानवर प्रशिक्षकों पर हमला न कर दे, इसके लिए यह जानवरों को विकलांग तक बना देते हैं। इसके लिए उनके पंजे और दांतों को निकाल दिए जाते हैं। हम यह कल्पना नहीं कर सकते कि यह कितना भयानक और दर्दनाक होता होगा।

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कैसे हुई सर्कस की शुरुआत?

सोचिए अगर किसी जानवर को प्रताड़ित नहीं किया जाएगा तो भला वह क्यों किसी के इशारों पर कार्य करने को मजबूर होगा? क्यों वह तमाम तरह के करतब दिखाएगा? वह अवश्य इस काम के लिए तो कतई नहीं बना है। सर्कस हेतु तैयार करने के लिए जानवरों को हर हद तक प्रताड़ित किया जाता है। यही कारण है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सर्कस में भालू, बंदर और बड़ी बिल्लियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था। भारत में Circus को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त नहीं है। इसे देश में मनोरंजन के एक साधन के रूप देखा जाता है। सर्कस की शुरुआत की बात करें तो बताया जाता है कि इसकी उत्पत्ति प्राचीन रोम में हुई थी। तब सर्कस आज की तरह नहीं होते थे। उस दौरान रथ दौड़ाए जाते थे। रथ दौड़ाने के लिए बनाए गए वृत्ताकार मैदानों को ही सर्कस कहते थे। रथों की दौड़े के दौरान नट और घुड़सवार तरह तरह के करतब भी दिखाते थे।

परंतु हम जिस आधुनिक सर्कस की बात कर रहे हैं उसे शुरू करने का श्रेय लंदन के फिलिप एश्ले को दिया जाता है। वर्ष 1768 में उन्होंने लंदन के एक रिंग में घुड़सवारी के करतब दिखाए थे। भारत में सर्कस की शुरुआत की बात करें तो पहला आधुनिक भारतीय सर्कस “द ग्रेट इंडियन सर्कस” था, जिसे विष्णुपंत मोरेश्वर छत्रे द्वारा स्थापित किया गया। छत्रे कुर्दूवडी रियासत में चाकरी करते थे। वो घोड़े पर करतब दिखाकर राजा को प्रसन्न करने का काम करते थे। वर्ष 1879 की बात है, जब वो अपने राजा के साथ मुंबई में रॉयल इटैलियन सर्कस देखने के लिए गए थे परंतु इस दौरान सर्कस के मालिक ने भारतीयों का उपहास उड़ाया और यह कहा कि सर्कस में खेल दिखाना भारतीयों के बस की बात नहीं। छत्रे को यह बात चुभ गई। बस फिर क्या था उनसे अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ और अपनी पत्नी के साथ उन्होंने एक वर्ष के अंदर ही भारत की पहली सर्कस कंपनी की नींव रख दी। बाद में उन्हें इसमें साथ मिला किल्लेरी कुन्हिकन्नन का, जिन्हें भारतीय सर्कस का जनक भी कहा जाता है। सर्कस के कलाकारों को ट्रेनिंग देने के लिए उन्होंने स्कूल भी खोला था।

Circus की शुरुआत तो लोगों का मनोरंजन करने के लिए हुई थी और शुरू में यह अपने लक्ष्य में कामयाब भी रहा था। पहले का समय था जब लोग सर्कस की ओर काफी आकर्षित होते थे। इसे देखने के लिए लोगों की भारी इकट्ठी होती थी परंतु धीरे धीरे यह अपने लक्ष्य से भटकने लगा। सर्कस में इंसानों के भी कई तरह के करतब आपको देखने को मिलते होंगे। हवा में उड़ते लोगों से लेकर जादुई करतब दिखाने और साइकिल को एक पहिये से घुमाने जैसे ढेरों कलाकारियां हमें सर्कस में देखने को मिलती है। अपनी रोजी रोटी के लिए घरों से दूर रहकर लोग सर्कस में तमाम तरह के करतब दिखाने को विवश होते हैं। उन्हें देखने में तो मजा आता है परंतु जो कोई भी इसे कर रहा होता है, वह एक तरह से अपनी जान को भी खतरे में डालता है। हालांकि, इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता होगा परंतु फिर भी कुछ करतब ऐसे होते है, जिसमें जरा भी चूक पूरा का पूरा खेल खत्म कर सकती है।

सर्कस में मारपीट से लेकर छेड़खानी तक के मामले

Circus में केवल जानवरों के साथ ही उत्पीड़न नहीं होता बल्कि इसके अतिरिक्त उसमें अन्य कलाकारों को भी प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। सर्कस में कलाकारों को उचित सम्मान नहीं मिलता। उन्हें उनके काम के हिसाब से वेतन तक नहीं मिल पाता है। सर्कस में जो लोग तमाम तरह के करतब दिखाते हैं, वो उनका टैलेंट होता है। परंतु जिस तरह से वे अपने टैलेंट का उपयोग कर और जान को खतरे में डालकर करतब दिखाते है, उन्हें उनके हिसाब से वेतन नहीं दिया जाता। ऊपर से उनका शोषण होता है वो अलग।

इन सबके अतिरिक्त सर्कस में मारपीट व छेड़खानी के मामले भी अक्सर सामने आते ही रहते हैं। वहां वर्ष 2017 में हरियाणा के अंबाला में अपोलो सर्कस की लड़कियों ने सर्कस संचालकों की पोल खोलकर रख दी थी। उस दौरान अंबाला के सेक्टर आठ में चल रहे Circus से बरामद लड़कियों ने जबरदस्ती बंधक बनाने, 1500 रुपये मासिक वेतन को उनके फंड में जमा कराने, गंदा खाना, मारपीट इत्यादि के आरोप सर्कस मालिक पर लगाए थे। लड़कियों ने बताया था कि सर्कस में उन्हें रस्सी तक से पीटा जाता था। इसके अलावा यहां उनके साथ छेड़खानी भी की जाती थी। सर्कस में जो सुंदर सुंदर लड़कियां चेहरे पर एक मुस्कान लिए आपको तमाम तरह के करतब दिखाती नजर आती हैं परंतु इसके पीछे जो दर्द छिपा होता है, वो किसी को नहीं दिखता।

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Circus में वो क्या चीज है, जो लोगों को पसंद आती है? सर्कस में सबसे अधिक तालियां जोकरों के लिए बजती हैं। रंगे-बिरंगे चेहरे, नकली नाक व बाल लगाकर यह अलग-अलग हरकतों से लोगों को हंसाने का काम करते हैं। सर्कस में आम तौर पर जोकर वही लोग बनते हैं, जो शारीरिक रूप से पिछड़ जाते हैं या दूसरे शब्दों में कहे तो बौने! समाज में हर प्रकार के व्यक्ति होते हैं। कुछ लंबे हो जाते हैं, कुछ मोटे, कुछ पतले तो कुछ का कद छोटा रह जाता है। परंतु क्या बौने होने का मतलब यही है कि वो केवल सर्कस के लिए बने हैं? क्या वो इसके अलावा कुछ और नहीं कर सकते?

कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति बौना है तो वो केवल सर्कस का जोकर ही बन सकता है। परंतु अगर आप में टैलेंट है तो उसके दम पर आप हर मुकाम को हासिल कर सकते हैं और यह हमें एक्टर लिलिपुट ने साबित कर दिखाया है। लिलिपुट का असली नाम एमएम फारुखी है। बौने होने के कारण ही उन्होंने अपना नाम लिलिपुट रख लिया था। पिछले 35 वर्षों से वह फिल्मों से लेकर टीवी इंडस्ट्री में तरह तरह के रोल निभाते नजर आ रहे हैं। उन्होंने कॉमेडी से लेकर सीरियस तक हर रोल को निभाया है। परंतु Circus ने तो जैसे बौने लोगों की एक छवि जोकर के रूप में ही स्थापित कर दी। इनमें कोई संदेह नहीं कि एक लंबे अंतराल तक सर्कस लोगों का मनोरंजन करता आ रहा था। परंतु अपने कुछ मिनटों के मनोरंजन के लिए जानवर हो या इंसान किसी को इस तरह से प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। इसलिए अच्छा ही है कि सर्कस विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं।

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