प्राइवेसी की अवधारणा आजकल भारत के अंदर काफ़ी प्रचलित हो चुकी है, हर कोई अपने से जुड़े व्यक्तिगत डेटा के प्रति काफ़ी सजग है। सो कॉल्ड इलीट क्लास से लेकर एक गरीब व्यक्ति तक, व्यक्तिगत डेटा हर किसी के लिए महत्वपूर्ण तो है ही, साथ ही भारत की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी यह काफ़ी महत्वपूर्ण है। यदि भारतीयों की व्यक्तिगत जानकारी बाहरी देशों के हाथ लगती है तो इससे न सिर्फ़ भारत के आंतरिक सुरक्षा में बट्टा लग सकता है अपितु बाह्य सुरक्षा में भी सेंध लग सकती है।इस संदर्भ में डेटा लोकलाइजेशन की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में जस्टिस बी.एन श्रीकृष्णा कमेटी का गठन किया था, जिसने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल 2019 का मसौदा तैयार किया था, जिसमे डेटा लोकलाइज़ेशन की बात की गई थी।
किंतु बड़े-बड़े तकनीकी कंपनियों जैसे गूगल, फ़ेसबुक एवं कुछ छद्म बुद्धजीवियों के विरोध के कारण सरकार ने इस मसौदे को आगे नही बढ़ाया और तभी से यह सुगबुगाहट उठने लगी थी शायद सरकार अब डेटा लोकलाइजेशन को लेकर इतनी गंभीर नहीं है। परंतु तमाम अटकलों पर पूर्णविराम लगाते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अब यह साफ़ किया है कि सरकार जल्द ही व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल के एक बेहतर एवं नए संस्करण को पेश करेगी, जो पूर्व में तैयार किए गए मसौदे से कई गुना ज़्यादा बेहतर होगा, जिस पर सभी की बराबर सहमति बन सकेगी।
उन्होंने कहा, नए डाटा संरक्षण विधेयक और डिजिटल इंडिया कानून पर काम चल रहा है। हम चाहते हैं कि ऑनलाइन दुनिया कुछ भी प्रकाशित करने के मामले में ज्यादा जवाबदेह हो। कानून प्रवर्तन एजेंसियों और नीति निर्माताओं की इसमें भूमिका है। लेकिन यह भी जरूरी है कि हम सोशल मीडिया, इंटरनेट, तकनीकी जगत में जवाबदेही की ज्यादा भावना भरें।
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डेटा लोकलाइजेशन की आवश्यकता क्यों?
देश की सुरक्षा के साथ-साथ अन्य कई मुद्दे भी हैं जिसके कारण डेटा लोकलाइजेशन की आवश्यकता प्रतीत होती है। दरअसल Internet and Mobile Association of India की डिजिटल इन इंडिया रिपोर्ट, 2019 के अनुसार भारत में लगभग 504 मिलियन सक्रिय वेब उपयोगकर्त्ता हैं और भारत का ऑनलाइन बाज़ार चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। व्यक्तियों और उनकी ऑनलाइन खरीदारी आदतों के बारे में जानकारी, लाभ का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है। यह निजता के हनन का एक संभावित तरीका भी है क्योंकि यह अत्यंत व्यक्तिगत पहलुओं को प्रकट कर सकता है। इसे कंपनियां, सरकारें और राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि ये इसका उपयोग लोगों को ऑनलाइन विज्ञापन देने के लिये कर सकते हैं!
डेटा लोकलाइजेशन कानून ये तय करेंगे कि कैसे किसी देश के नागरिकों का डेटा कलेक्ट, प्रोसेस और स्टोर कैसे किया जाएगा। आसानी से समझना हो तो अपनी जिंदगी पर एक नजर दौड़ाइए। आप जब भी अपना क्रेडिट/डेबिट कार्ड स्वाइप करते है, किसी सोशल मीडिया वेबसाइट को यूज करते हैं, किसी कंपनी का प्रोडक्ट लेने के लिए अपनी जानकारी देते हैं तो आप अपना डेटा उनसे साझा कर रहे होते हैं। अभी इसमें से अधिकतर डेटा भारत के बाहर सेव होता है, वह भी क्लाउड स्टोरेज पर। इस डेटा पर भारतीय सरकार की उतनी पकड़ नहीं होती। लोकलाइजेशन से कंपनियों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह ग्राहकों से जुड़ा क्रिटिकल डेटा देश की सीमाओं के भीतर ही स्टोर करें। यानी इन कंपनियों को अगर भारत में व्यापार करना होगा तो उन्हें सर्वर भी भारत में ही रखना होगा।
देर आए दुरुस्त आए!
भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और इसके साथ ही यह आवश्यक हो जाता है कि देश अपने नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारियों के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं को संभालकर कर रखे। पश्चिमी देश जैसे ब्रिटेन एवं फ्रांस ने पहले ही डेटा लोकलाइज़ेशन को महत्व देते हुए अपने अपने देशों में डेटा स्थानीयकरण को ध्यान में रखते हुए कानूनो का निर्माण कर लिया, जिसे ब्रिटेन में GDPR के रूप में भी देखा जा सकता है, किंतु भारत ने अभी तक ऐसे किसी भी क़ानून का निर्माण नहीं किया है। हालांकि, विकास की रफ्तार में भारत ने इस महत्वपूर्ण चीज को नजरअंदाज कर दिया था लेकिन अब सरकार ने इसकी ओर कदम बढ़ा दिए हैं।
ख़ैर देर आए दुरुस्त आए, अभी भारत के समक्ष विकास के हर क्षेत्र में अनेकों संभावनाएं विद्यमान है और अभी भी डेटा स्थानीयकरण की प्रासंगिकता उतनी ही बनी हुई है। क्योंकि तमाम रिपोर्ट्स की माने तो भारत वर्ष 2029 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर कर सामने आएगा और ऐसे में भारत के ऊपर साइबर हमलों के साथ साथ डाटा चोरी के भी प्रयास अवश्य होंगे। कंपनियों द्वारा फ्रॉड भी बढ़ जाएंगे और इसका जीता जागता उदाहरण हमें हाल ही में देखने को मिला, जब कोरोना के बाद चीनी कंपनियों ने डाटा एकत्र कर लोगो को अपने ऋण जाल में फंसाया।
डेटा लोकलाइजेशन पर दुनिया में कैसे नियम?
आपको बताते चलें कि डेटा लोकलाइजेशन को लेकर रूस में सबसे ज्यादा पाबंदियां हैं। नियमों के उल्लंघन पर यहां भारी जुर्माना वसूला जाता है। अमेरिका में राज्य के हिसाब से नियम अलग-अलग हैं। चीन में हर ‘जरूरी डेटा’ को लोकली स्टोर करने का नियम है। किसी तरह के क्रॉस-बॉर्डर पर्सनल डेटा ट्रांसफर को बिना सुरक्षा एजेंसियों से चेक कराए पूरा नहीं किया जा सकता। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया अपना हेल्थ डेटा बेहद संभालकर रखते हैं। वियतनाम में किसी भी तरह के यूजर डेटा को कलेक्ट करने वाली कंपनी को एक कॉपी लोकली स्टोर करनी पड़ती है। ब्राजील, न्यूजीलैंड, जापान जैसे देशों में भी डेटा प्रोटेक्शन के कानून हैं। चिली में भी एक स्वतंत्र डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी तैयार की जा रही है और अब भारत सरकार भी इस ओर कदम बढ़ा चुकी है।
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