कभी-कभी बड़े बड़े सियासी धुरंधर भी वोटबैंक साधने के चक्कर में गलती कर बैठते हैं और इस सब में जनता की भलाई पीछे छूट जाती है। कुछ ऐसा ही अभी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई कर रहे हैं। जिस कर्नाटक को बेंगलुरु ने इतना कुछ दिया, उसे विश्वभर में सिलिकॉन वैली के नाम से जाना गया, आज उसी ख्याति के समूल नाश की कहानी राज्य के सीएम बोम्मई लिख रहे हैं। दरअसल, सरकारी कार्यालयों, बैंकों और उच्च शिक्षा में कन्नड़ के उपयोग के लिए एक वैधानिक तंत्र सुनिश्चित करने के लिए कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को कन्नड़ भाषा व्यापक विकास विधेयक 2022 पेश किया है। ऐसे में प्रिय सीएम बोम्मई कर्नाटक जीतने के लिए आप बैंगलुरु को मार देंगे यह प्रतीत हो रहा है।
यूं तो भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, जिसमें सभी राज्यों के साथ-साथ बेंगलुरु का योगदान भी अहम रहा है। आईटी क्षेत्र 2020 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7 से 8 प्रतिशत का योगदान देता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह क्षेत्र विकास की ओर अग्रसर है। यह सब तब ही है जब हर व्यक्ति का बल-बुद्धि-विवेक समान रूप से आईटी सेक्टर को मजबूत करने के लिए लगा रहा है। ऐसे में आरक्षण जैसी प्रक्रिया को मात्र वोटबैंक को समेटने के लिए जिस प्रकार कर्नाटक के मुख्यमंत्री उपयोग कर रहे हैं, यह उन उत्तर-भारतीयों के साथ अन्याय की तरह है जो अब तक बेंगलुरु को अपनी कर्मभूमि समझते थे। आज सिलिकॉन वैली का तमगा उन्हीं 70 प्रतिशत लोगों के कारण हासिल हुआ है जो हर क्षण अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में जुटे हुए थे।
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आरक्षण का प्रस्ताव
विधेयक की बात करें तो यह राज्य सरकार की औद्योगिक नीति के अनुसार उद्योगों और अन्य प्रतिष्ठानों में कन्नड़ लोगों को आरक्षण प्रदान करता है। कोई भी उद्योग जो इस प्रावधान का अनुपालन नहीं करता है, वह सरकार द्वारा दी जाने वाली किसी भी रियायत के लिए पात्र नहीं होगा। सरकार ने कहा कि वह उन उद्योगों से लाभ वापस ले सकती है जो कन्नड़ के लिए रोजगार में आरक्षण प्रदान करने में विफल रहते हैं।
उद्योगों को दंडित करने के अलावा राजभाषा को लागू करने का कर्तव्य सौंपे गए अधिकारियों पर कानून के प्रावधानों का पालन करने में विफल रहने पर कर्तव्य की अवहेलना के लिए भी मुकदमा चलाया जा सकता है। विधेयक में कहा गया है कि, “सरकारी और प्रशासनिक लेनदेन में कन्नड़ भाषा का उपयोग करने में सरकारी अधिकारियों की ओर से किसी भी विफलता को कर्तव्य की अवहेलना माना जाएगा।”
प्रस्तावित कानून राज्य, जिला और तालुका स्तरों पर राजभाषा को लागू करने के लिए एक राजभाषा आयोग और एक प्रवर्तन तंत्र की स्थापना का भी प्रावधान करता है। यह सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं, उच्च शिक्षा और होर्डिंग में कन्नड़ के उपयोग के लिए भी प्रावधान करता है। यह विधेयक विभिन्न कन्नड़ समूहों द्वारा ‘हिंदी थोपने’ की बहस और कर्नाटक विधि आयोग की 57वीं रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के बीच कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक कानून बनाने की मांगों का पालन करता है।
प्रस्तावित कानून का उद्देश्य बैंकों में कन्नड़ भाषी कर्मचारियों की कमी पर कन्नड़ समर्थक विभिन्न संगठनों द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करना है। बिल कहता है कि, कर्नाटक राज्य के भीतर स्थित बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों में कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति कन्नड़ भाषा का उपयोग जनता के साथ अपने सभी संचार और पत्राचार में भी करेगा। यह याद किया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में बैंक कर्मचारियों और जनता के बीच कई झगड़ों की सूचना मिली थी क्योंकि कई बैंक कर्मचारियों के पास कन्नड़ ज्ञान की कमी थी।
बेंगलुरु में प्रवासी आबादी
कर्नाटक के दक्षिणी राज्य में कन्नड़ का एक प्रमुख जातीय समूह शामिल है जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 67 प्रतिशत है। हालांकि, लगभग 42.12 प्रतिशत आबादी राज्य के बाहर से आती हैं। विशेष रूप से मुंबई के बाद बेंगलुरु में दूसरी सबसे बड़ी प्रवासी आबादी है।
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कर्नाटक में सबसे अधिक नौकरी के अवसर पैदा करने की क्षमता है, खासकर आईटी क्षेत्र में। बेंगलुरु के आईटी क्षेत्र में 4.5 लाख कर्मचारी शामिल हैं, जिनमें से केवल 30 प्रतिशत कन्नड़ हैं। भारत की यही सिलिकॉन वैली और उसका विकास बाकी अन्य भारतीयों के हाथ में है। फिर भी राज्य सरकार ऐसे विधेयक लाकर उन लोगों के साथ खिलवाड़ कर रही है जो अबतक हर पल अपना 100 प्रतिशत अपने काम को दे रहे थे जिससे आज राज्य इतना विकसित हो पाया।
प्रस्तावित विधेयक पर ध्यान केंद्रित करते हुए यह ध्यान दिया जा सकता है कि यह एक मात्र राजनीतिक रणनीति है जिसका उपयोग मौजूदा सीएम बसवराज सोमप्पा बोम्मई ने आगामी चुनावों को देखते हुए किया है।
यह विधेयक विभिन्न कन्नड़ समूहों द्वारा ‘हिंदी थोपने’ की बहस और कर्नाटक विधि आयोग की 57वीं रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के बीच कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक कानून बनाने की मांगों का पालन करता है। नया विधेयक पारित होने पर कर्नाटक राजभाषा अधिनियम 1963 और कर्नाटक स्थानीय प्राधिकरण (राजभाषा) अधिनियम 1981 की जगह लेगा।
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अब यह सोचना बोम्मई सरकार को है कि क्या उनके लिए यह नया प्रस्ताव महत्वपूर्ण है जहां कन्नड समूह को विशेष प्रावधान मिलें या उनकी राज्य की उन्नति पर और काम हो? आज जितना विकास कर्नाटक को हासिल हुआ है वो इसी आईटी क्षेत्र की देन है जो अबतक देश के विभिन्न राज्यों से आए कर्मचारियों की देन है। जिस राज्य ने अपनी भूमि से राजनीति के सफल आंकलनकर्ता स्वर्गीय अनंत सिंह जैसे नेताओं को निकाला, उन्हीं अनंत सिंह ने तेजस्वी सूर्य जैसे युवा नेता को तैयार किया और तो और बीएस येदियुरप्पा जैसे नेता, जिन्होंने बीजेपी को राज्य में लिंगायत समुदाय का समर्थन हासिल कराया। इन सभी के इतर बसवराज बोम्मई अब अपनी सियासी पारी को आगे बढ़ाने के लिए कर्नाटक के स्थानीय लोगों के समर्थन के लिए भाषाई रणनीति का उपयोग कर रहे हैं। चुनाव के लिए उनकी यह रणनीति अल्पावधि के लिए सफल हो सकती है, लेकिन यह लंबे समय में पूरे राज्य को गर्त में ले जाने का काम करेगी।
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