अफगानिस्तान से बेंगलुरु तक- ड्रग्स की जटिल श्रृंखला जो भारत के भविष्य को लील रही है

क्या इसके पीछे है तालिबान का हाथ?

बेंगलुरु ड्रग्स

भारत में बीते कुछ सालों में ड्रग्स का कारोबार बहुत तीव्रता से बढ़ा है। ड्रग्स की लत एक ऐसा ‘दीमक’ है जो मनुष्य के शरीर को धीरे-धीरे खोखला बना देती है। विशेषकर युवा पीढ़ी इससे बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। हमारे देश के भिन्न-भिन्न भागों में जिस प्रकार बाहर से चोरी-छिपे लाए जाने वाले ड्रग्स बरामद हो रहे हैं, यह चिंता का विषय है। आखिर क्यों बढ़ रहा है ड्रग्स का चलन? क्या इसके पीछे कोई बड़ा षड्यंत्र है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस लेख के माध्यम से मिलेंगे।

जड़ों की तरह फैल रही है ड्रग्स की चेन

यदि इस ड्रग्स की बढ़ती हुई चेन पर ध्यान दें तो जान पाएंगे कि इसकी शुरुआत पंजाब, दिल्ली, हरियाणा से हुई तो है लेकिन यह चेन अब बिल्कुल भी रुकती हुई नहीं दिखायी दे रही है। अब यह चेन कर्नाटक के बेंगलुरु में भी तेजी से फैल रही है। पुलिस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक में बीते 5 सालों में कोकीन का उपयोग दोगुने से भी बहुत अधिक हो गया है। जबकि बेंगलुरु शहर तो अब ड्रग्स का एक नया ‘हब’ ही बन गया है।

एक बात और भी ध्यान देने वाली है कि ये सभी ड्रग्स के कारोबारी कॉस्मोपोलिटिन सिटी को ही अपना शिकार बनाते जा रहे हैं। वहीं दिल्ली और पंजाब पुलिस के कई प्रयासों के बाद भी देश की राजधानी में नशे का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है। नशे के कारोबारी नये-नये रास्ते निकालकर शहरों में ड्रग्स की तस्करी करते जा रहे हैं।

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कर्नाटक के बेंगलुरु में टेक्नोलॉजी जितनी अधिक तीव्रता से बढ़ती जा रही है उतनी ही तीव्रता से अब यहां नशा करने वालों की संख्या में भी बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 10 साल पहले यहां पर हुए एक ड्रग्स के सर्वे में पता चला था कि बेंगलुरु के कॉलेजों और स्कूलों में 25 % स्टूडेंट्स चोरी चोरी ड्रग्स का उपयोग कर रहे हैं।

पुलिस की एक ओर रिपोर्ट के अनुसार बेंगलुरु शहर में साल 2015-16 में 500 किलो ड्रग्स पकड़ा गया था।  जिनमें हेरोइन, अफीम, गांजा, हशीश, मॉर्फिन और एफेड्रिन जैसे नशीले पदार्थ शामिल थे। ज़ब्त किए गए ड्रग्स की मात्रा अब बढ़कर 2000 किलो से भी अधिक हो चुकी है।

इन ड्रग्स कारोबारियों की बात करें तो ये इतनी चालाकी से अपने कारोबार को बढ़ा रहे हैं कि  साल 2021 में केवल बेंगलुरु पुलिस ने ड्रग्स की बिक्री के मामले में 8,505 लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था और 5 हज़ार से भी अधिक गिरफ्तारियां की थीं। साल 2015-16 के नेशनल मेंटल हेल्थ के सर्वे की माने तो 18 वर्ष और उससे ज्यादा की आयु के 22.25 % लोग शराब, तंबाकू और अन्य दूसरे अवैध ड्रग्स का उपयोग कर रहे हैं। इस पर विशेषज्ञों की राय है कि यह और भी अधिक हो सकती है। क्योंकि इस सर्वे में केवल उन्हीं लोगों पर फोकस किया गया था जो पहले से ही ड्रग्स से प्रभावित हैं।

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भारत को तालिबान से बचना होगा

ध्यान देने वाली बात है कि हमारे देश में सबसे पहले जम्मू-कश्मीर और पंजाब से लगी हुई पाकिस्तान की सीमा से ही नशीले पदार्थों का आना बढ़ा था लेकिन अब तो समुद्री और हवाई मार्ग के माध्यम से भी नशे की खेप आती जा रही है। इन सभी बातों से इस बात की भी आशंका है कि भारत में तब से नशीले पदार्थों की आवक बढ़ी है जब से अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आया है। वहां पर अफीम की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है और तालिबान उस पर रोक लगाने के बजाए उसे और बढ़ावा देने में जुटा हुआ है। भारत को तालिबान के नापक इरादों से बच के रहना चाहिए क्योंकि ड्रग्स के कारोबार से हुई अवैध कमाई को वो अपने आतंकी संगठनों को और अधिक सशक्त करने में उपयोग कर सकता है।

इन ड्रग्स कारोबारियों का सीधा लक्ष्य देश की युवा शक्ति को ध्वस्त करना है। यह ड्रग्स कारोबारियों की बढ़ती हुई संख्या का भी परिणाम है। बीते कुछ महीने से नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो देश के अलग-अलग स्थानों से जिस बड़ी मात्रा में ड्रग्स बरामद कर रहे हैं उससे तो यही जान पड़ता है कि कि भारत को बर्बाद करने का यह बड़ा षड्यंत्र है।

पूरी दुनिया में कुल अफीम उत्पादन में अफगानिस्तान अकेले 80% का उत्पादन करता है। यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम के अनुसार, साल 2017 में अफगानिस्तान में अफीम का उत्पादन लगभग 9,900 टन का रहा था। अफीम की बिक्री से किसानों ने करीब-करीब 10 हजार करोड़ रुपये का लाभ कमाया था जो देश की GDP का 7%  था।

नाटो की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में तालिबान ने ड्रग्स के व्यापार से लगभग 11 हजार करोड़ रुपये कमा लिए थे। वहीं साल 2001 में अफीम का उत्पादन 180 टन का था जो कि  साल 2007 में बढ़कर 8,000 टन तक पहुंच गया है।

वो बात और है कि अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान ने इसी साल अप्रैल में अफीम की खेती पर बैन लगाने का फरमान जारी किया था। इससे पहले अफगानिस्तान में 1990 के दशक में अफीम की खेती को सरकार ने गैरकानूनी घोषित किया था। देखा जाए तो ऐसी घोषणाएं तब धरी की धरी रह गयीं जब 2001 में वहां तालिबान की हुकूमत खत्म हुई तो वहां के कई क्षेत्रों में किसानों ने कथित रूप से गेंहू की खेती करते हुए ही साथ-साथ अफीम की फसल की बुआई भी कर दी थी। हालांकि हाल के ऐसे फरमानों के इतर देखें और अफगानिस्तान में अफीम के उत्पादन के आंकड़े को देखें तो ये फरमान केवल और केवल दिखावा ही प्रतीत होता है।

युवाओं को लील रहे इस ड्रग्स की तस्करी ने देश के भविष्य पर प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है, आवश्यक है तो यह कि इस पर बहुत कड़ई के साथ नकेल कसी जाए।

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